1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

सेक्स का अभाव, विलुप्ति का खतरा

२६ जनवरी २०१६

वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने पाया है कि अफ्रीका में हर साल लाखों लोगों को होने वाली स्लीपिंग सिकनेस की बीमारी का परजीवी खुद ही अपने खात्मे का कारण बनने वाला है. कारण है उसका अनोखा सेक्स-चक्र.

https://p.dw.com/p/1HkE6
तस्वीर: picture-alliance/dpa

एक असामान्य सेक्स चक्र खुद इस जानलेवा अफ्रीकी परजीवी को विलुप्ति की ओर ले जा रहा है. केवल पश्चिमी और केंद्रीय अफ्रीका में ही हर साल लाखों लोगों को अपनी चपेट में लेने वाले स्लीपिंग सिकनेस के रोगाणु 'टी बी गैंबियेनसी' ने हजारों सालों से सेक्स नहीं किया है. आज की तारीख में ऐसे जितने भी परजीवी बचे हैं वे एक ही पूर्वज की संतान से आए हैं और गुणात्मक रूप से उपजे एक दूसरे के क्लोन हैं.

यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लासगो के बायोइन्फॉर्मेटिक्स विशेषज्ञ विली वियर बताते हैं, "हमने पाया कि अफ्रीकी स्लीपिंग सिकनेस की बीमारी का परजीवी हजारों सालों से अस्तित्व में है, वो भी बिना सेक्स किए. लेकिन अब ये इस कार्यप्रणाली के नतीजे भुगतने जा रहा है." साइंस जर्नल ईलाइफ में छपी इस स्टडी के मुख्य लेखक वियर ने आगे कहा, "सैद्धांतिक रूप से...इसके परिणाम के बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है कि आने वाले समय में यह विलुप्त हो जाएगा."

सेक्सुअल प्रजनन से किसी भी जीव की प्रजाति में आनुवंशिक संरचना डीएनए में बदलाव आया रहता है. इससे प्रजाति की एक पीढ़ी से दूसरी में विविधताएं आती हैं और अवांछित म्यूटेशन मिटते जाते हैं. इन सबकी मदद से ही किसी प्रजाति का अस्तित्व निरंतर बना रहता है.

वियर का कहना है कि जल्द ही वैज्ञानिक इस परजीवी की संरचना को और अच्छी तरह समझ कर स्लीपिंग सिकनेस की बीमारी का इलाज खोजने में सफल हो सकते हैं. इस परजीवी को सीसी मक्खी फैलाती है और ग्रामीण इलाकों में रहने वाले इसकी चपेट में अधिक आते हैं.

एक बार इससे संक्रमित हो जाने वाले व्यक्ति में परजीवी कई सालों तक सुप्त अवस्था में भी रह सकता है. बाद में इसके बुरे असर उस व्यक्ति के तंत्रिका तंत्र पर दिख सकते हैं जिससे प्रभावित व्यक्ति कोमा की स्थिति में भी जा सकता है. फिलहाल इसके इलाज में भी खतरनाक रसायनों का इस्तेमाल होता है जिसके काफी साइड इफेक्ट होते हैं.

करीब 10,000 साल पहले यह परजीवी जानवरों से इंसान में पहुंचा था. इसका आखिरी सबसे बड़ा फैलाव 1970 के दशक में देखा गया जो करीब 1990 के अंत तक जारी रहा. विश्व स्वास्थ्य संगठन 2020 तक जन स्वास्थ्य समस्या के रूप में इसे मिटा देना चाहता है. लेकिन क्या पता अगर यह परजीवी उससे पहले खुद ही अपने सेक्स-दुष्चक्र में फंस कर खत्म हो जाए.

आरआर/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)