1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

सेना की नजर में ज्यादा शरीफ हैं शहबाज

शामिल शम्स
८ अगस्त २०१७

पाकिस्तान में प्रधानमंत्री की कुर्सी से नवाज शरीफ की विदाई के बाद उनके छोटे भाई शहबाज शरीफ को इस पर बिठाने की कोशिश हो रही है. माना जाता है कि शहबाज अपने बड़े भाई की तुलना में सेना को ज्यादा पसंद आयेंगे.

https://p.dw.com/p/2hpao
Pakistan Shabaz Sharif
तस्वीर: picture alliance/dpaEPA/PMLN

28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच ने नवाज शरीफ को अपनी संपत्ति घोषित नहीं करने का दोषी पाया हालांकि उन्हें पनामा पेपर लीक विवाद में सीधे तौर पर दोषी नहीं माना गया. भ्रष्टाचार के इन मामलों को अब नेशनल अकाउंटिबिलिटी कोर्ट यानी नैब को सौंप दिया गया है जो आगे की कार्रवाई तय करेगी.

नवाज शरीफ के भ्रष्टाचार के मामले में फंसने के बाद पाकिस्तान की नेशनल असेंबली यानी संसद के निचले सदन ने शाहिद खाकान अब्बासी को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया है. पाकिस्तान में प्रधानमंत्री बनने से पहले उम्मीदवार को नेशनल असेंबली का सदस्य बनना पड़ता है. इसके तहत अब शहबाज शरीफ चुनाव लड़ेंगे. इस दौरान सत्ता कार्यवाहक प्रधानमंत्री अब्बासी के हाथ में रहेगी. सितंबर तक ये प्रक्रिया पूरी कर ली जायेगी और फिर अब्बासी को हटा कर शहबाज शरीफ प्रधानमंत्री बनेंगे. नवाज शरीफ की अयोग्यता से खाली हुई लाहौर की सीट से शहबाज शरीफ चुनाव लड़ेंगे और उनकी जीत पक्की मानी जा रही है क्योंकि बीते तीन दशक से यह शरीफ परिवार के लिए गढ़ जैसा रहा है. हालांकि स्थानीय मीडिया यह भी कयास लगा रही है कि शायद शहबाज शरीफ को लंबे समय के लिए प्रधानमंत्री ना बनाया जाए. पाकिस्तान में अगले साल चुनाव होने हैं और पंजाब के मुख्यमंत्री के तौर पर वह अपनी पार्टी की जीत में बड़ी भूमिका निभाएंगे. अब तक का इतिहास बताता है कि इस्लामाबाद की सरकार का रास्ता पंजाब की जीत से तय होता है. नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) से जुड़ी उज्मा बुखारी कहती हैं, "हमारे ज्यादातर सदस्य चाहते हैं कि शहबाज शरीफ पंजाब के मुख्यमंत्री बने रहें. प्रांत में उनकी जगह कोई नहीं ले सकता. वह पंजाब से अगले साल चुनाव प्रचार का भी नेतृत्व करेंगे."

Nawaz Sharif Rede in Lahore
तस्वीर: picture alliance/AP Photo

नवाज शरीफ की राजनीतिक छवि को इस घटना से काफी नुकसान हुआ है और माना जा रहा है कि शहबाज शरीफ ऐसे में स्थिति को थोड़ा संभाल सकते हैं. पाकिस्तान में भी वंशवादी राजनीति खूब फलती फूलती आयी है और 66 साल के शहबाज कुछ समय के लिए नवाज शरीफ की विरासत संभाल सकते हैं.

शहबाज शरीफ अपने भाई नवाज की तरह ही सबसे पहले कारोबारी हैं. शरीफ भाइयों ने अपना राजनीतिक करियर 1980 के दशक में शुरू किया था तब देश में सैन्य शासक जनरल जिया उल हक का राज था. शहबाज और नवाज संयुक्त रूप से इत्तेफाक ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के मालिक हैं. बेनजीर भुट्टो के पिता और पूर्व प्रधानमत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने इस कारोबारी ग्रुप का राष्ट्रीयकरण कर दिया. इस घटना ने शरीफ भाइयों को जिया उल हक के करीब पहुंचा दिया. जिया उल हक ने ना सिर्फ भुट्टो की सरकार हटा दी बल्कि एक विवादित फैसले में भुट्टो को फांसी भी दे दी.

शरीफ शुरुआती दौर में रुढ़िवादी थे और सेना के प्रति समर्थन का भाव रखते थे. 1988 में जब बेनजीर भुट्टो सत्ता में आयीं तो दोनों भाई उनके खिलाफ विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व कर रहे थे. कई जानकार मानते हैं कि तब उन्हें सैन्य खुफिया एजेंसियों से मदद मिल रही थी. पाकिस्तान में डॉन अखबार के पूर्व संपादक सलीम असमी कहते है, "हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि शरीफ भाइयों के राजनीतिक करियर को सेना की इंटर सर्विसेंस इंटेलिजेंस ने खाद पानी दिया था."

1990 के दशक में नवाज ने राष्ट्रीय राजनीति पर ध्यान लगाया और दो बार प्रधानमंत्री बने. दूसरी तरफ शहबाज पंजाब की राजनीति में रहे और चौथी बार स्टेट असेंबली के सदस्य चुने जाने पर मुख्यमंत्री बने. नवाज शरीफ के दोनों कार्यकालों में बाधा आयी. इस बार उन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में कुर्सी छोड़नी पड़ी है जबकि 1999 में जनरल परवेज मुशर्रफ ने उन्हें बर्खास्त कर देश से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. जनरल मुशर्रफ ने दोनों भाइयों को निर्वासित कर सऊदी अरब भेज दिया था. इसके बाद शरीफ की राजनीति में बड़ा बदलाव आया. देश के बाहर रहते इन्होंने बेनजीर भुट्टो से हाथ मिलाया जो खुद भी निर्वासन में थीं. दोनों ने साथ मिल कर आठ साल पुरानी परवेज मुशर्रफ की सत्ता के खिलाफ और लोकतंत्र के लिए मुहिम चलायी. शरीफ भाइयों ने निर्वासन से लौट कर सेना के खिलाफ राजनीतिक सत्ता को मजबूत किया. 2008 में पंजाब में फिर पार्टी जीती और शहबाज मुख्यमंत्री बने. 2013 में उनकी पार्टी नेशनल असेंबली में भी जीती और नवाज शरीफ प्रधानमंत्री बने. 

नवाज से उलट शहबाज को ज्यादा व्यवहारिक माना जाता है और सेना के साथ भी उनके रिश्ते बेहतर हैं.

ब्रसेल्स में रहने वाले पाकिस्तानी पत्रकार खालिद हमीद फारुकी कहते हैं, "वह शहबाज ही थे जिन्होंने निर्वासन के दौर में भी सेना के साथ बातचीत चालू रखी. आखिरकार इसी वजह से उनकी पाकिस्तान में वापसी भी हुई." फारुकी यह भी कहते हैं कि नवाज की राजनीति में निर्वासन के दौरान भारी बदलाव आया. फारुकी के मुताबिक, "नवाज सेना प्रमुखों को सत्ता में ज्यादा भागीदारी के खिलाफ हो गये." हालांकि पाकिस्तान के उदारवादी गुट शहबाज शरीफ पर कट्टरपंथियों के साथ बेहतर संबंध रखने का भी आरोप लगाते हैं. हालांकि उनकी पार्टी इस बात से साफ इनकार करती है.

विकास की राजनीति

राजनीति के अलावा शहबाज शरीफ ने खुद की एक मेहनती मुख्यमंत्री की छवि बनायी है और पंजाब में विकास की कई परियोजनायें उन्हीं की देन हैं खासतौर से भारत से लगती सीमा पर. इस कारण से उन्हें खादिम-ए-आला की पदवी भी मिली है. कई विश्लेषक मानते हैं कि पंजाब पाकिस्तान का सबसे विकसित प्रांत है और इसमें शहबाज के किये कामों की भी बड़ी हिस्सेदारी है. पाकिस्तान के बजट में सबसे बड़ा हिस्सा पंजाब को मिलता है. फारुकी कहते हैं, "शहबाज शरीफ बेहद अनुशासित और ऊर्जा से भरे इंसान हैं. वह बिना थके अपने राज्य के विकास के लिए काम करते हैं."

विपक्षी पार्टियां शहबाज पर दिखावे के लिए काम करने का आरोप लगाती हैं और परिवहन, हाइवे और शॉपिंग मॉल्स को अस्थायी मानती हैं. उनका कहना है कि स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मामलों में उनकी योजनाओं का कहीं कुछ पता नहीं है.

बहुत से लोग मानते हैं कि शहबाज शरीफ प्रधानमंत्री बने तो देश की राजनीति में थोड़ी स्थिरता आयेगी. इसके साथ ही नवाज के दौर में सेना से जो दूरी बनी उसे भी शहबाज भरने में कामयाब हो सकेंगे.