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सोवियत अतीत की ओर लौटता यूक्रेन

ऊटे शेफर/एनआर३१ मई २०१३

''नारंगी क्रांति'' के दस साल के बाद यूक्रेन लोकतंत्र की राह छोड़ अपने सोवियत अतीत की ओर लौटता दिख रहा है. क्या इसका रास्ता बदला जा सकता है?

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

एक लाख से ज्यादा यूक्रेनी लोगों ने जब 2004 में लोकतंत्र के लिए आवाज बुलंद की तो ''नारंगी क्रांति'' के नाम से मशहूर हुई उनकी क्रांति ने ना सिर्फ दुनिया भर की मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचा बल्कि ट्यूनीशिया, मिस्र और लीबिया जैसे देशों में क्रांति के लिए रास्ता भी बना गया.

कीव की मुख्य सड़क से अब नारंगी बैनर हट चुके हैं. इन्हीं बैनरों से कभी यूक्रेन की क्रांति को यह खास नाम मिला था. पूरे देश से प्रदर्शनकारी राजधानी में जमा हो गए थे और बदलाव के लिए आवाज उठा रहे थे. तब फिजाओं में बस यही गूंज रहा था, ''अब वक्त आ गया है.'' विचारों की आजादी का वक्त, लोकतंत्र का वक्त, भ्रष्टाचार को रोकने का वक्त, लेकिन एक दशक बीत जाने के बाद भी ऐसा कुछ हुआ नहीं. अब कोई यूक्रेनी लोकतंत्र के नाम पर सड़कों पर विरोध करने नहीं उतरेगा. अब वो इससे उकता चुके हैं.

कीव शहर में रहने वाली नताल्या हताश हैं और मानती हैं कि राजनेताओं के उच्चवर्ग ने सारी समस्या खड़ी की, ''हम निराश हैं. हम नहीं मानते कि जिस सुधार, न्याय और ईमानदारी का हमें इंतजार है वो वापस आएगी. मछली हमेशा सिर से ही खराब होती है.'' क्रांति के बाद राजनीतिक रूप से इसे आगे बढ़ाने वाले विक्टर यूशेंको राष्ट्रपति और यूलिया टीमोशेंको प्रधानमंत्री चुने गए. क्रांति के नायक नायिका रहे ये दोनों राजनेता अपने वादों को पूरा करने में नाकाम रहे. हाना नाम की छात्रा कहती हैं, ''दोनों में किसी ने अपना वादा पूरा नहीं किया. यूशेंको ने बुनियादी अर्थव्यवस्था, सामाजिक और नैतिक सुधारों की बात की थी लेकिन वो उसे पूरा नहीं कर सके.'' हाना ने बताया कि शिक्षकों को आज भी महीने भर के काम के बदले 7000 रूपये ही मिल रहे हैं जितने उस वक्त मिलते थे.

ukrainische Politiker Juschtschenko und Janukowitsch
यूशेंको और यानुकोविच

सब कुछ परिवार के लिए

भ्रष्टाचार को मिटाने, सुधार की प्रक्रिया को लागू करने और देश के ज्यादा से ज्यादा लोगों को साथ लेकर चलने में नाकामी ने लोकतंत्र की ओर बढ़ते कदमों को कमजोर किया. नतीजा यह हुआ कि विपक्ष मजबूत होता चला गया. 2010 में विक्टर यानुकोविच राष्ट्रपति चुने गए हालांकि उन्हें बहुत मामूली अंतर से ही जीत मिली. कार्यभार संभालने के बाद उन्होंने क्रांति के बाद के सालों में लागू कुछ लोकतांत्रिक सुधारों को खत्म कर दिया. 2004 में किए गए एक संवैधानिक सुधार को खत्म कर दिया गया है और राष्ट्रपति को ज्यादा अधिकार मिल गये हैं. इसके साथ ही प्रेस की आजादी और बोलने की आजादी पर पाबंदियां लग गई हैं. सिर्फ इतना ही नहीं चुनाव जीतने के कुछ ही दिन बाद यानुकोविच ने अपने पूर्व सहयोगियों को न्यायतंत्र में कई प्रमुख जगहों पर बिठा दिया.

दोनेत्स्क के इलाके से आने वाले इस अर्थशास्त्री के शासन में संसद, सेना या न्यायतंत्र में कहीं भी लोकतंत्र नहीं नजर आता, बल्कि कुछ नई परिभाषाएं जरूर गढ़ ली गई हैं. यूक्रेनी लोगों के लिए ''ताकत'' का मतलब अब सरकार और सरकारी तंत्र है, जो अपने निजी संबंधों के सहारे हर जगह अपनी इच्छा से प्रभुत्व हासिल करने के लिए तैयार रहता है. इसी तरह ''परिवार'' मतलब है राष्ट्रपति के रिश्तेदार, दोस्त और सहयोगी जो इस ताकत के केंद्र में हैं. इन लोगों में फोर्ब्स के अरबपतियों में शामिल रिनात अख्मेतोव हैं, जिनकी अनुमानित निजी संपत्ति करीब 15.4 अरब डॉलर है. अख्मेतोव के अलावा पूर्व राष्ट्रपति लियोनिड कुचमा के दामाद विक्टर पिंचुक हैं और मौजूदा राष्ट्रपति के सबसे बड़े बेटे ओलेक्सांद्र यानुकोविच भी जिनका निर्माण, खनन, बैंकिंग और ऊर्जा क्षेत्र में बड़ा कारोबार है.

यूक्रेन में कुछ ''तकनीकी'' पार्टियां भी हैं. इन्हें बड़ी विपक्षी पार्टियों को कमजोर करने के लिए खड़ा किया गया और इसकी बानगी 2012 के संसदीय चुनावों में देखने को भी मिली. इसके अलावा कुछ संदिग्ध ''प्रशासनिक स्रोत'' भी हैं जो चुनाव के नतीजे तय करने के लिए कुछ खास शहरों और गांवों में स्कूल और अस्पताल खोलने के लिए पैसा देते हैं.

Tetiana Chornovol
तेतियाना चोर्नोवोलतस्वीर: DW/U. Schaeffer

भ्रष्टाचार का शासन

इस तरह के हालात में ज्यादातर यूक्रेनी ये मानने लगे हैं कि लोकतंत्र का मतलब है पूंजीवाद का संवर्धन और भ्रष्टाचार की महामारी. पेशे से वकील वैलेंटिना तेलित्शेंको का कहना है कि यूक्रेनी हर स्तर पर भ्रष्टाचार में शामिल हैं, ''यह स्थानीय प्रशासन को गुमटियों में पैनकेक बेचने की अनुमति हासिल करने के लिए रिश्वत देने से ही शुरू हो जाता है.'' उन्होंने बताया कि भ्रष्टाचार की यह कड़ी ऊंची अदालतों के जजों के फैसले खरीदने तक जाती है जिनसे कानून को बेकार करने वाले फैसले दिलवाए जाते हैं.

तेलित्शेंको ने 2004 के विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था और तभी उनकी कानून की पढ़ाई पूरी हुई थी. आज भी वो उसी समर्पण के साथ अपने देश में न्याय के लिए संघर्ष कर रही हैं. वह पत्रकार गियॉर्गी गोनगाडसे के परिवार की ओर से वकालत कर रही हैं जिनकी साल 2000 में हत्या कर दी गई थी. यह मामला राजनीतिक पृष्ठभूमि से जुड़ा है जिसे सरकार और अदालतें जल्दी से निपटा कर भूल जाना चाहती हैं लेकिन सुनवाइयों के एक लंबे दौर के बाद भी यह अनसुलझा है.

जो बेहतर हैं वो बाहर हैं

खोजी पत्रकार तेतियाना चोर्नोवोल ने देश में मौजूद भ्रष्टाचार को उजागर करने को अपना मिशन बना लिया है. वो कहती हैं, ''पहले लाखों के गायब होने का मसला होता था, अब तो यह अरबों की बात हो गई है.'' जानकारी हासिल करने के लिए वह मेहमान या वेटरेस बन कर अमीरों के पारिवारिक समारोहों में जाती हैं. उन्होंने हाल ही में कैमरे से लैस एक ड्रोन भी हासिल कर लिया है. तेतियाना कहती हैं, ''मैं ऐसा कहीं और नहीं करती लेकिन यूक्रेन जैसे देश में सत्ता ने जनता से सब कुछ छिपा रखा है. मुझे लगता है कि यहां इस तरह से काम करना सही है.'' तेतियाना की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उनके जरिए सामने आई बातों का वास्तव में कुछ खास असर अब तक नहीं हुआ है.

Ukraine Proteste Opposition Kiew
विपक्ष का प्रदर्शनतस्वीर: DW/A. Sawitskij

ज्यादातर लोगों ने मौजूदा परिस्थितियों के आगे समर्पण कर दिया है और जो इस तरह नहीं रहना चाहते वो देश से बाहर जा रहे हैं. अनुमान है कि करीब 40 लाख यूक्रेनी देश के बाहर रहे हैं, अब वो चाहे स्थायी तौर पर हों या अस्थायी रूप से. इनमें से बहुत सारे मध्यमवर्गीय परिवारों के अच्छे खासे पढ़े लिखे लोग हैं.

निर्णायक दो साल

सरकार, मीडिया या सार्वजनिक जीवन में राजनीतिक विरोध की जगह न होने की वजह से उन गैर सरकारी संगठनों का महत्व बढ़ गया है जिन्होंने देश के बाहर जाने से इनकार कर दिया. ''ओपोरा'' यानी ''तीर'' इसी तरह का एक संगठन है. संगठन चलाने वाले ओलेक्सांद्र नेबेरिकुट और ओल्गा स्ट्रेलयुक खुले पत्रों और विरोध प्रदर्शनों के जरिए नए कानूनों को पारित करने की प्रक्रिया में शामिल होते हैं. इसके जरिए वो यह संदेश भी दे रहे हैं कि यूक्रेनी राजनीति पर निगाह रखी जा रही है.

ओपोरा के साथ करीब 50 लोग हैं. इसका दफ्तर लवीव शहर की एक पुरानी इमारत में है. साथ मिल कर यह लोग 2004 के लोकतांत्रिक अभियान का माहौल बचाए रखने की कोशिश में है. स्ट्रेलयुक कहती हैं कि नारंगी मूवमेंट के बदलाव लाने में नाकाम रहने से काफी निराशा हुई है लेकिन वो अब भी मानती हैं कि नागरिक समाज अपनी आवाज का इस्तेमाल करता रहे यह बहुत जरूरी है.

स्ट्रेलयुक ने कहा, ''यूक्रेन अपने सोवियत अतीत की ओर लौट रहा है.'' उनका मानना है कि दो साल बाद होने वाले राष्ट्रपति चुनाव बेहद अहम हैं और उनके जैसे संगठन चलाने वालों के लिए बेहद मुश्किल भी. हालांकि वह और उनके साथी रुकेंगे नहीं और 10 साल पहले किए गए वादों को पूरा करने के लिए जो कुछ भी संभव है जरूर करेंगे. जनता के सामने दूसरा विकल्प तानाशाही का है और उसके बारे में वो सोचना नहीं चाहतीं.

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