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नियम कायदे तय करने में कर दी देरी

मुरली कृष्णन
२७ मार्च २०१९

भारत में राजनीतिक दलों को आदेश दिए गए हैं कि वे अपने सोशल मीडिया अकाउंट से अभद्र भाषा और गलत जानकारियों को साफ करें. वहीं विशेषज्ञ मान रहे हैं कि सोशल मीडिया में आचार संहिता लागू करना आसान नहीं होगा.

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Indien Wahlen
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Paranjpe

भारत में इस बार आम चुनावों से पहले राजनीतिक मुद्दों से अलग जिस मुद्दे पर सबसे अधिक बात हो रही है वह है सोशल मीडिया और फेक न्यूज. हाल में चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया कंपनियां मसलन फेसबुक, व्हाट्सऐप, गूगल, टिकटॉक और टि्वटर के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की. चुनावों के दौरान सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों का गलत इस्तेमाल न हो इस पर भी खास चर्चा की गई.

दो दिन तक चले ऐसे सत्र का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना था कि राजनीतिक दल और उनके उम्मीदवार अपने एकाउंट से सोशल मीडिया पर अपुष्ट विज्ञापन, अभद्र भाषा और आपत्तिजनक मीम और फर्जी खबरें न डाल सकें. मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "हम चाहते हैं कि सोशल मीडिया क्षेत्र में सक्रिय कंपनियां अपने मंच के सही इस्तेमाल के लिए एक आचार संहिता बनाएं. साथ ही कंपनियां अपने प्लेटफॉर्मों का गलत इस्तेमाल न होने दें."

देश दुनिया में हुए अब तक कई चुनावों में फेक न्यूज और गलत जानकारियों का दखल बढ़ा है. कई मौकों पर सोशल मीडिया पर चलने वाली जानकारियों और खबरों ने समाज में हलचल और हिंसा को भी हवा दी है. ऐसे में माना जा रहा है कि भारत में सोशल मीडिया एक आम मतदाता को प्रभावित करने में काफी हद तक अहम  भूमिका निभा सकता है.

भारत में तकरीबन 46 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. चीन के बाद भारत दुनिया का सबसे बड़ा ऑनलाइन बाजार है. कयास हैं कि साल 2021 तक देश में तकरीबन 63.5 करोड़ लोग इंटरनेट के दायरे में होंगे. मोबाइल कंपनियों के हालिया अध्ययन बताते हैं कि भारत में 80 फीसदी शहरी लोग तो वहीं 92 फीसदी ग्रामीण क्षेत्रों के लोग ऑनलाइन आने के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं. वहीं मैसेजिंग ऐप व्हाट्सऐप के भारत में करीब 20 करोड़ सक्रिय यूजर हैं तो यही कुछ आंकड़ा फेसबुक यूजरों का भी है. टि्वटर का इस्तेमाल करीब तीन करोड़ भारतीय करते हैं. तेजी से ऑनलाइन होती दुनिया में अब नियामकों को चिंता है कि कैसे फेक न्यूज से पार पाया जा सके.

कौन तय करेगा?

फैक्ट चेकिंग वेबसाइट आल्टन्यूज के संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने डीडब्ल्यू से कहा, "क्या सही है और क्या गलत ये तय करना मुश्किल है. यह सब काफी पहले सोचा जाना चाहिए था, तब नहीं जब चुनाव सिर पर हैं." प्रतीक कहते हैं कंटेट जांचने के चुनाव आयोग के नियम कायदे स्पष्ट नहीं हैं. ऐसे में यह कौन तय करेगा कि क्या आपत्तिजनक है और क्या नहीं? प्रतीक की ही तरह कई लोग व्हॉट्सऐप पर आने वाले मैसेजों पर नियम कायदे तय करने में संशय व्यक्त करते हैं. डिजिटल एक्सपर्ट सुनील प्रभाकर कहते हैं, "जो भी सोशल मीडिया पर पोस्ट किया जाता है उसे वायरल होने में चंद सेंकडों का वक्त लगता है. जब तक किसी पोस्ट की सच्चाई का पता किया जाता है तब तक उसका नुकसान हो चुका होता है."

फेसबुक के साथ पार्टनरशिप में काम करने वाल वेबसाइट बूम के मैनेजिंग एडिटर जेंसी जैकब कहते हैं कि यह अब तक स्पष्ट नहीं है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म चुनाव आयोग के अनुरोधों का कैसे जवाब देगा. बूम फेसबुक के साथ मिलकर सोशल मीडिया पोस्ट को जांचने का काम करती है. उन्होंने कहा कि अब तक काफी कुछ अस्पष्ट है.

फेसबुक और व्हॉट्सऐप

फेसबुक ने कहा है कि वह दिल्ली में एक ऑपरेशन सेंटर शुरू करने की योजना बना रहा है जो चुनाव संबंधी सामग्री की निगरानी करेगा. कंपनी के मुताबिक नया ऑफिस डबलिन और सिंगापुर में फेक न्यूज के खिलाफ काम रहे दफ्तरों के साथ मिलकर काम करेगा. भारत और दक्षिण एशिया क्षेत्र में फेसबुक के पब्लिक पॉलिसी डायरेक्टर शिवनाथ ठुकराल ने कहा, "चुनाव आयोग के साथ करीब से काम करके हम जान सकेंगे कि कैसे चुनावों के दौरान किसी भी गलत जानकारी को रोका जा सकता है."

इतना ही नहीं फेसबुक ने कई सारी मीडिया कंपनियों और तथ्यों को जांचने के लिए लोगों को अपने साथ जोड़ा है. हालांकि इन सब के बावजूद कई सोशल मीडिया एक्सपर्ट मानते हैं कि आपत्तिजनक कंटेट को रोकना और उसे ब्लॉक करना कंपनियों के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि सोशल मीडिया का दखल भी कई स्तर पर है. कुछ अकाउंट्स किसी भी राजनीतिक दल से आधिकारिक तौर पर नहीं जुड़े हैं लेकिन फिर भी वे राजनीतिक हित पहुंचाने वाले संदेश लिखते हैं.

वहीं व्हाट्सऐप भी दो ऐसे नए फीचर को टेस्ट कर रहा है जो गलत जानकारियों को आगे बढ़ने से रोक सकते हैं. पिछले कुछ महीनों से व्हाट्सऐप मैसेजों पर फॉरवर्ड का लेबल भी लगा रहा है, ताकि यूजर यह समझ सकें कि मैसेज उसे भेजने वाले ने तैयार नहीं किया है. व्हाट्सऐप इंडिया के प्रमुख अभिजीत बोस ने कहा, "साफ-सुथरे चुनाव हमारी प्राथमिकता है और इसलिए हम चुनाव आयोग और अन्य पार्टनरों के साथ करीब से काम कर रहे हैं."

यूजर भी कम नहीं

स्थानीय रिपोर्टों के मुताबिक सत्ता में काबिज बीजेपी और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस व्हाट्सऐप पर पहले ही अपने अभियान छेड़ चुकी है. एक अनुमान के मुताबिक बीजेपी के तकरीबन दो से तीन लाख व्हाट्सऐप ग्रुप हैं वहीं कांग्रेस के वाट्सऐप ग्रुप की संख्या 80 हजार से एक लाख के करीब बैठती है. सोशल मीडिया विश्लेषक जिग्नेश तिवारी कहते हैं, "ऑनलाइन यूजरों की बढ़ती संख्या के बीच सोशल मीडिया ने राजनीतिक प्रचार के तौर-तरीकों को ही बदल कर रख दिया है. अब देश के राजनीतिक दल और उनसे जुड़े संगठन अपने मतलब का समाचार फैलाने में काफी आगे हो गए हैं और आचार संहिता देर से आई है."

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