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सोशल मीडिया में उग्रपंथ से मुकाबला

१३ जून २०१४

अल कायदा समेत कई आतंकवादी संगठन अपने संदेश लोगों तक पहुंचाने के लिए इंटरनेट का सहारा लेते हैं. इससे निपटने के लिए अमेरिका ने भी उन्हीं का मॉडल अपनाना शुरू कर दिया है.

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तस्वीर: Fotolia/Thesimplify

जर्मनी के एक रैपर डेसो डॉग का वीडियो. सेना की वर्दी पहने डॉग जंग के लिए तैयार नजर आ रहा है और अपने वीडियो में लोगों को यही समझाने की कोशिश कर रहा है कि उन्हें भी उसका साथ देना चाहिए. लेकिन डॉग कोई सिपाही नहीं है, वह खुद को जिहादी कहता है. वीडियो में वह लोगों को सीरिया में अल कायदा का हिस्सा बनने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है. उसके शब्द कुछ ऐसे हैं, "मैं तुम सब को जिहाद से जुड़ने के लिए बुला रहा हूं. जिहाद, जिहाद, जिहाद. यह किसी डरावनी फिल्म जैसा नहीं है, यह जिहाद है और जिहाद में मजा है."

जिहाद ने नाम पर

अजीब बात यह है कि इस वीडियो को अमेरिकी सरकार ने इंटरनेट पर पोस्ट किया है. डॉग का संदेश खत्म होते ही मार धाड़ की तस्वीरें दिखने लगती हैं. गोलियां चल रही हैं. खून ज्यादा ना दिखे, इसलिए तस्वीरों को धुंधला कर दिया गया है. अगले दृश्य में डेनिस कस्पर्ट उर्फ डेसो डॉग का शव दिखता है. आसपास कुछ जिहादी खड़े हैं. वीडियो के अंत में अरबी भाषा में लिखा आता है कि जर्मनी के इस युवक के लिए "जिहाद मजा नहीं था".

इस तरह के वीडियो से अमेरिकी सरकार लोगों तक यह संदेश पहुंचाना चाहती है कि जिहाद के नाम पर आतंकवाद से जुड़ कर अपनी और बाकियों की जिंदगियों को जोखिम में ना डालें. सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक काउंटरटेररिज्म कम्युनिकेशंस (सीएससीसी) इस तरह के अभियान चला रहा है. इस प्रोजेक्ट के संचालक अल्बर्टो फर्नांडिस का कहना है, "हम साइबर पुलिस नहीं हैं. हम लोगों को चुप नहीं करा रहे, बल्कि हम उनका सामना कर रहे हैं, उन्हें चुनौती दे रहे हैं. हम उनसे सीधे यह सवाल करते हैं कि लोगों को मार कर वे इस्लाम को बचाने का काम कैसे कर रहे हैं."

सीरिया में अल कायदा

सीरिया में चल रहे गृह युद्ध में अल कायदा के तार फैले हुए हैं. इस बीच दर्जनों अमेरिकी और सैकड़ों यूरोपीय भी सीरिया में जिहाद की जंग से जुड़ गए हैं. सुरक्षा एजेंसियों को चिंता सता रही है कि इन लोगों के कारण बाकियों को भी प्रोत्साहन मिलेगा और कुछ वैसे ही हालात खड़े हो जाएंगे जैसे अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ लड़ाई से बने. उसी स्थिति ने अल कायदा को जन्म दिया था.

जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस और नीदरलैंड्स जैसे देशों से करीब 800 से 900 लोग सीरिया में हो रही जंग में शामिल हैं. लेकिन सुरक्षा एजेंसियां ना तो उन्हें हिरासत में ले पा रही हैं और ना ही उनकी वेबसाइटों को ही बंद करवा पा रही हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि उनके बारे में कोई औपचारिक आंकड़े मौजूद नहीं हैं.

Bin Ladens Versteck in Abbottabad , Pakistan
पाकिस्तान में बिन लादेन का ठिकानातस्वीर: Reuters

फेसबुक और ट्विटर पर

अल्बर्टो फर्नांडिस बताते हैं कि अमेरिकी सरकार ने सितंबर 2011 से इंटरनेट पर इस समस्या से निपटना शुरू किया, "हम ये सब अब कर रहे हैं, पर उन्होंने (अल कायदा ने) तो बारह साल पहले ही शुरुआत कर दी थी." फर्नांडिस बताते हैं कि अल कायदा ने इंटरनेट के सहारे अपना पहला फतवा 1998 में जारी किया, "वे लोग मीडिया के जरिए अपना संदेश फैलाने पर बहुत जोर देते हैं."

पिछले साल दिसंबर में सीएससीसी ने फेसबुक, ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया के जरिए संदेश फैलाने शुरू किए. इनमें आतंकवाद की कई तस्वीरें शामिल हैं. एक तस्वीर ओसामा बिन लादेन की भी है. लादेन पाकिस्तान के अपने गुप्त ठिकाने पर टीवी के आगे बैठा है. तस्वीर के नीचे लिखा है, "क्या आप ऐसे लोगों के लिए अपनी जिंदगी बर्बाद करना चाहते हैं, जो दूर कहीं जा कर छिप जाते है?"

अमेरिका की फिजूल कोशिश

कुछ लोग अमेरिका की इस कोशिश को फिजूल बता रहे हैं. पत्रकार और ब्लॉगर जोनाथन क्रोन का कहना है कि अमेरिका के बनाए ट्विटर अकाउंट हास्यास्पद हैं, "ट्विटर पर जो थोड़े बहुत जिहादी मौजूद हैं, उन पर इसका कोई असर नहीं पड़ता. वे तो बस इसे देखते हैं और हंस देते हैं या फिर वहां उलटे सीधे जवाब लिख देते हैं."

क्रोन का कहना है कि अगर अमेरिकी सरकार इस बारे में वाकई संजीदगी से कुछ करना चाहती, तो वह इन जिहादियों को भी आम इंसान समझ कर इनसे बात करने की कोशिश करती, "इस तरह से वीडियो बना कर या फिर बेकार क्वॉलिटी की मरे हुए बच्चों की तस्वीरें पोस्ट कर के सरकार अपनी ही खिल्ली उड़वा रही है."

वहीं फर्नांडिस को इस तरह की आलोचना से कोई फर्क नहीं पड़ता. उनका मानना है कि इस लड़ाई में लोग लगातार उन्हें चुप होने के लिए कहते रहेंगे, और वह इसके खिलाफ आवाज उठाते रहेंगे.

आईबी/एमजे (डीपीए)