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सोशल मीडिया से जासूसी

५ जुलाई २०१३

लोगों ने अपनी सामाजिक जिंदगी सोशल मीडिया के हवाले कर दी है और खुफिया एजेंसियां इसका इस्तेमाल कर रही हैं. सोशल मीडिया और खुफिया तंत्र का सहयोग आशंकाएं बढ़ा रहा है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

जानकारी जुटाने की अमेरिकी सनक अब दुश्मनों से निकल कर दोस्तों तक पहुंच गई है लेकिन एक बड़ा सवाल यह भी है कि उसके पास ताक झांक करने की यह दक्षता आती कहां से है. जहां तक आंकड़े जुटाने की बात है तो एक डिजिटल उद्योग जरूर जन्मा है जो इस काम में बड़ा काबिल है. महज दशक भर पहले पैदा हुए इस उद्योग ने हमारे जीवन के हर पहलू में अपनी पहुंच बना ली है और जो सोशल मीडिया के नाम से मशहूर हुआ है.

आंकड़ों की सुरक्षा और उनकी निगरानी में बड़ा महीन फासला है. ऐसे में सीमाओं को मिटाना बड़ा आसान है. पिछले महीने अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने बताया कि 2010 में फेसबुक के मैक्स केली अपनी नौकरी छोड़ कर अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी एजेंसी में काम करने चले गए. अमेरिकी रक्षा विभाग के इस अंग की जिम्मेदारियों में डिजिटल आंकड़ों की आवाजाही के बारे में जानकारी जुटा कर उनकी पड़ताल करना भी शामिल है. उधर फेसबुक में खाताधारकों की जानकारी की सुरक्षा मैक्स केली की जिम्मेदारी थी.

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तस्वीर: Reuters

दुनिया की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म से खुफिया एजेंसी में मैक्स केली एजेंसी के प्रिज्म प्रोग्राम शुरू होने के कुछ ही दिन बाद आए. इसी प्रोग्राम के तहत अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने फेसबुक से आंकड़े जुटाए. केली के एनएसए में जाने के बारे में जानकारी 3 साल तक गोपनीय रखी गई. अमेरिकी खुफिया एजेंसी और सोशल मीडिया के बीच रिश्ते को समझने के लिए केली का उदाहरण काफी है. अखबार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, "खुफिया एजेंसियां जो चाहती हैं वह सिलिकॉन वैली के पास है. बड़ी मात्रा में निजी जानकारियां और उनकी पड़ताल करने के लिए बेहद उन्नत सॉफ्टवेयर. वास्तव में एजेंसी सिलिकॉन वैली के सबसे तेजी से बढ़ते डाटा एनालिटिक्स बाजार की सबसे बड़े ग्राहकों में है."

अखबार ने यह भी खबर दी कि अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए एनएसए ने भारी निवेश किया है. अनुमान है कि सिलिकॉन वैली की नई कंपनियों पर एनएएस ने करीब 8-10 अरब डॉलर खर्च किए हैं.

रक्षा ठेकों की तलाश में गूगल

यह तो जाहिर ही है कि खुफिया एजेंसियों की दिलचस्पी जानकारी जुटाने में है और आईटी कंपनियां इसके लिए जरूरी उपकरण और दक्षता अमेरिकी सरकार को बेच रही हैं. लेकिन लोगों से जुड़ी जानकारियों में दिलचस्पी विशुद्ध कारोबारी कंपनियों को भी है. एक इसके इस्तेमाल खुफिया जानकारी के लिए करना चाहता है तो दूसरा फायदे के लिए. आंकड़ों को जमा करने में तकनीक की उन्नति ने दोनों के लिए फायदेमंद आपसी सहयोग का रास्ता खोल दिया है.

वॉशिंगटन की गैरसरकारी संस्था डिजिटल डेमोक्रैसी के कार्यकारी निदेशक जेफरी चेस्टर के लिए सोशल मीडिया और सरकारी एजेंसियों के बीच रिश्ते की बात कोई नई नहीं है. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "फोन कंपनियां और सरकारी एजेंसियों के बीच हमेशा से ही खुला दरवाजा रहा है. गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां रक्षा विभाग के ठेके चाहती हैं."

USA Hauptquartier NSA Fort Meade
तस्वीर: Getty Images

इसके साथ ही चेस्टर ने कहा, "मेरे ख्याल में यह बहुत परेशान करने वाली बात है कि एनएसए किसी ऐसे शख्स को नौकरी दे रहा है जो फेसबुक में बहुत ऊंचे पद पर रहा है. एनएसए वास्तव में सोशल मीडिया की निगरानी की नकल कर रहा है." फेसबुक और दूसरे सोशल मीडिया सशक्तिकरण का उपकरण होने का दावा करते हैं लेकिन इनका इस्तेमाल बड़े पैमान पर राजनीतिक और कारोबारी निगरानी के लिए हो रहा है.

आकार और जटिलता

एनएसए और सोशल मीडिया के बीच सहयोग कितना बड़ा है यह तो अभी भी रहस्य है लेकिन सोशल नेटवर्कों की तकनीकी दक्षता के बारे में तो सब जानते हैं. चेस्टर का कहना है कि वे किसी भी शख्स की उस वक्त और उससे पहले के ठिकाने के बारे में जान रहे हैं. ग्राहकों और उनकी गतिविधियों के बारे में जानकारी जुटाने के लिए वो नए नए तरीकों का विस्तार कर रहे हैं. इंटरनेट आजादी की वकालत करने वाली जर्मनी की पाइरेट पार्टी से जुड़े सिमोन वाइज का कहना है कि और ज्यादा पारदर्शिता की जरूरत है. उन्होंने कहा, "हम यह मान सकते हैं कि बड़ी सोशल मीडिया कंपनियां सरकारी एजेंसियों के साथ सहयोग करती हैं लेकिन बिना सार्वजनिक जानकारी के हम सिर्फ अंदाजा ही लगा सकते हैं कि यह सहयोग कैसा और कितना है." उन्होंने "ट्रांसपैरेंसी रिपोर्ट" का हवाला देकर बताया कि गूगल के पास सोशल नेटवर्क के बारे में सरकारी एजेंसियों की ओर से जानकारी मांगने के लिए अनुरोध पिछले कुछ सालों में बड़ी तेजी से बढ़ गए हैं.

यही है वह 'सवाल का निशान' जिसे आप तलाश रहे हैं. इसकी तारीख 05/07 और कोड 8002 हमें भेज दीजिए ईमेल के जरिए hindi@dw.de पर या फिर एसएमएस करें +91 9967354007 पर.
यही है वह 'सवाल का निशान' जिसे आप तलाश रहे हैं. इसकी तारीख 05/07 और कोड 8002 हमें भेज दीजिए ईमेल के जरिए hindi@dw.de पर या फिर एसएमएस करें +91 9967354007 पर.तस्वीर: Fotolia/Doc RaBe

गोपनीयता और बाधा

एडवर्ड स्नोडेन से मिली जानकारियों ने यह बता दिया है कि क्या हो रहा है और क्या बताया जा रहा है इसके बीच में कितना फर्क है. सोशल मीडिया लगातार यह कह रहे हैं कि वो सिर्फ उतनी ही जानकारी सरकार को दे रहे हैं जितनी कि कानून जरूरी है. पर सच्चाई यह है कि वो उससे कहीं ज्यादा सक्रियता दिखा रहे हैं. यह कंपनियां संयुक्त टीमें बना कर जानकारियों को सीधे सरकारी एजेंसियों तक पहुंचने के रास्ते बना रही हैं.

इंटरनेट की आजादी के लिए काम कर रहे लोगों का कहना है कि निगरानी के कार्यक्रमों से समस्या नहीं बल्कि उनकी गोपनीयता से दिक्कत है. अब प्रिज्म और टेम्पोरा को ही लीजिए पिछले महीने तक लोगों ने इसका नाम भी नहीं सुना था. जानकार यह मान रहे हैं कि सुरक्षा एजेंसियों के पास सोशल मीडिया की जानकारियों में दिलचस्पी की वाजिब वजहें भी हैं क्योंकि लोगों ने एक तरह से अपना सामाजिक जीवन ही इन नेटवर्कों पर डाल रखा है. इसके साथ ही यह अपराध और अपराधियों के लिए मददगार भी हो रहा है. ऐसे में उनकी निगरानी तो जरूरी है ही जरूरत सिर्फ संतुलन बनाए रखने की है.

रिपोर्टः बेन नाइट/एनआर

संपादनः ए जमाल

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