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समाज

स्कूलों में यौन शोषण पर अंकुश के लिए बनाई आचार संहिता

प्रभाकर मणि तिवारी
११ फ़रवरी २०१९

पश्चिम बंगाल सरकार ने सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के लिए नई आचार संहिता बनाई है जिसका मकसद स्कूली छात्र छात्राओं को यौन शोषण से बचाना है.

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Indien Saraswati Puja
पश्चिम बंगाल के एक स्कूल में सरस्वती पूजा मनाती स्कूल की छात्राएं. तस्वीर: DW/P. Mani

पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य के सरकारी और सरकार की ओर से वित्तपोषित स्कूलों के शिक्षकों के लिए एक आचार संहिता तैयार की है. हाल के दिनों में स्कूलों में यौन शोषण की बढ़ती घटनाओं को ध्यान में रखते हुए तैयार इस संहिता में क्या करें और क्या न करें, की एक 24-सूत्री सूची भी शामिल है. तमाम शिक्षकों व गैर-शिक्षण कर्मचारियों के लिए इसका पालन करना अनिवार्य है. इसके उल्लंघन का दोषी पाए जाने की स्थिति में जुर्माने से लेकर निलंबन व नौकरी से बर्खास्त करने तक की सजा का प्रावधान है. बंगाल संभवत: ऐसी आचार संहिता बनाने वाला देश का पहला राज्य है.

बढ़ती घटनाएं

पश्चिम बंगाल के स्कूलों में छात्र छात्राओं के यौन शोषण की घटनाएं हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ी हैं. अकेले राजधानी कोलकाता में ही बीते दो-ढाई वर्षों के दौरान ऐसी एक दर्जन से ज्यादा घटनाएं दर्ज की गई हैं. इनमें एक दर्जन से ज्यादा शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की गिरफ्तारी हुई है. ऐसे घटनाओं से संबंधित अभियुक्त के साथ ही स्कूल की भी बदनामी होती है. यही वजह है कि सरकार ने दो साल पहले इस आचार संहिता के मसविदों पर काम शुरू किया था. तमाम संबंधित पक्षों से राय लेने के बाद अब इसे मंजूरी दी गई है. सरकार की ओर से जारी एक अधिसूचना में तमाम स्कूलों में इसका पालन अनिवार्य कर दिया गया है.

इसमें शिक्षकों और दूसरे कर्मचारियों से स्कूल परिसर के अलावा बाहर भी छात्रों के साथ संबंधों की गरिमा बहाल रखने और आपसी सम्मान का माहौल बनाए रखने को कहा गया है. आचार संहिता में कहा गया है कि हर शिक्षक व गैर-शिक्षण कर्मचारी को छात्रों और उनके अभिभावकों के साथ भी सम्मानजनक रवैया अपनाना होगा. विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि अभिभावकों की अनुमति के बिना कोई भी शिक्षक छुट्टी के दिन छात्र को किसी निजी कार्यक्रम में नहीं बुला नहीं सकता है. स्कूल के दौरान भी शिक्षक को स्कूल के प्रिंसिपल से इसकी अनुमति लेनी होगी. तमाम शिक्षकों को अपने स्कूल के छात्र-छात्राओं को निजी ट्यूशन पढ़ाने से भी मना कर दिया गया है.

जरूरत क्यों

लेकिन आखिर ऐसी आचार संहिता बनाने की जरूरत क्यों पड़ी? इस सवाल पर शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी कहते हैं, "इसकी कई वजहें हैं. कई कर्मचारियों ने विभाग के खिलाफ सैकड़ों मामले दर्ज करा रखे हैं. इससे विभाग को कानून प्रक्रिया पर काफी समय व रकम खर्च करनी पड़ती है." वह कहते हैं कि विभागीय अधिकारियों के कोर्ट-कटहरी का चक्कर लगाने की वजह से फैसलों की प्रक्रिया प्रभावित होती है. ऐसे मामले दर्ज कराने वाले शिक्षकों के भी कोर्ट में ज्यादा समय बिताने की वजह से स्कूली पाठ्यक्रम समय पर पूरा नहीं हो पाता. मंत्री का दावा है कि इस आचार संहिता के जरिए शिक्षकों के कानूनी सहायता लेने के अधिकारों पर अंकुश लगाने की कोई मंशा नहीं है.

लेकिन शिक्षा विभाग के एक अधिकारी मनोज मित्र बताते हैं, "स्कूल परिसरों में यौन उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं से चिंतित होकर ही विभाग ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के निर्देश पर यह आचार संहिता बनाने का फैसला किया. इसका मकसद ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाना है."

आचार संहिता की शुरुआत में कहा गया है कि कोई भी शिक्षक या गैर-शिक्षण कर्मचारी ऐसा कोई काम नहीं करेगा जो उसके पद की गरिमा के प्रतिकूल हो और जिससे संस्थान की छवि पर नकारात्मक असर पड़े.  इसके उल्लंघन की स्थिति में उन पर जुर्माना लगाया जा सकता है. अगर किसी शिक्षक के खिलाफ कोई शिकायत मिलती है तो राज्य सेकेंडरी शिक्षा बोर्ड उसकी जांच के लिए सब-इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल्स स्तर के अधिकारी की नियुक्ति करेगा. आचार संहिता में शिक्षकों पर सरकारी अनुमोदन वाले स्कूलों में नौकरी के दौरान कोई निजी व्यापार करने, रुपये के लेन-देन का काम करने या पुस्तकें लिखने तक पर पाबंदी लगा दी गई है.

इसमें छात्रों के साथ संबंधों में गरिमा बरतने की हिदायत देते हुए ऐसा करने वालों के खिलाफ कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी दी गई है.

शिक्षक संगठनों में चुप्पी

आम तौर पर कर्मचारियों पर बंदिश लगाने की ऐसी कोशिशों का बंगाल में विरोध होता रहा है. लेकिन यौन उत्पीड़न पर अंकुश लगाना ही मुख्य मकसद होने की वजह से राज्य के ताकतवर शिक्षक संगठन ऑल बंगाल टीचर्स एसोसिएशन (एबीटीए) ने भी इसका विरोध नहीं किया है. संगठन के एक पदाधिकारी श्यामल राय कहते हैं, "स्कूलों में बढ़ती यौन शोषण की घटनाएं एक गंभीर मुद्दा बन गई हैं. एकाध लोगों के लिए पूरी कौम और स्कूल को बदनामी झेलनी पड़ती है."

कुछ शिक्षाविदों ने उक्त फैसले को शिक्षकों के लोकतांत्रिक अधिकारों में हस्तक्षेप करार दिया है. इस पर शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी की दलील है कि शिक्षकों में अनुशासन जरूरी है. उसके बिना छात्रों में अनुशासन की भावना नहीं पनप सकती. वह कहते हैं कि सरकार निजी स्कूलों से भी इस आचार संहिता को लागू करने के बारे में बात करेगी. अगर तमाम स्कूलों में इसे लागू किया जा सके तो शिक्षण परिसरों में यौन शोषण की घटनाओं पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है.

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