1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

स्त्रीधन पर पत्नी का हक जायज

२३ नवम्बर २०१५

सुप्रीम कोर्ट ने स्त्रीधन पर महिलाओं का हक बताकर मिसाल कायम कर दी है. भारत में महिलाओं के हक में कानूनों का रुख करने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट का स्त्रीधन का फैसला एक और मील का पत्थर साबित होगा.

https://p.dw.com/p/1HAvs
Bildergalerie Gold in Indien Hinduistische Hochzeitszeremonie
तस्वीर: imago/Sommer

दरअसल भारतीय कानून व्यवस्था में महिलाओं के हक में कानून तो बहुत से है लेकिन अदालतों द्वारा इनकी व्याख्या सही ढंग से न कर पाने के कारण इनका प्रवर्तन प्रभावी ढंग से सुनिश्चित नहीं हो रहा है. स्त्रीधन के मामले में भी निचली अदालत और हाई कोर्ट हिन्दू विधि और घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण कानून की सही व्याख्या नहीं कर सके और नतीजा यह हुआ कि पीड़ित महिला को सुप्रीम कोर्ट तक कानूनी संघर्ष करना पड़ा. इस मामले में महिला पहले से अपने पति से अलग रह रही थी. कानूनी तौर पर अलगाव की स्थिति को निचली अदालतों ने तलाकशुदा स्थिति के समान मानने की भूल कर दी और पीड़ित महिला की पीड़ा में निरंतर इजाफा करते रहे.

सर्वोच्च अदालत ने पिछले फैसलों में विधि प्रवर्तन अधिकारियों की कानूनी समझ पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि दम्पति के अलगाव और तलाक की अवस्था में साफ कानूनन भेद है. एक दूसरे से अलग रह रहे दम्पति कानून की नजर में तब तक पति पत्नी ही माने जाएंगे जब तक कि उनका तलाक नहीं हो जाता. ऐसे में पति से अलग रहने के बावजूद पत्नी का स्त्रीधन पर पूरा हक है और वह उसे अपनी मर्जी से उपयोग में लाने का भी अधिकार रखती है. न सिर्फ उपयोग अधिकार बल्कि उसे अपने संरक्षण में लेने का भी पत्नी का अधिकार है.

अब सवाल उठता है कि स्त्रीधन के दायरे में किस तरह की सम्पति को रखा जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में भी संशय को खत्म कर दिया है. अदालत ने कहा शादी के पहले और शादी के बाद पति एवं ससुराल वालों की ओर से महिला को गिफ्ट में जो कुछ भी मिला हो वह सब कुछ स्त्रीधन के दायरे में आएगा. इसमें चल और अचल सम्पति शामिल है. तलाक की कानूनी प्रक्रिया पूर्ण होने तक महिला स्त्रीधन की पाई पाई अपने पति और ससुराल वालों से वसूल कर सकती है.

फैसले से एक बात तो स्पष्ट हो गई कि महिला स्त्रीधन पर आत्यंतिक अधिकार रखती है लेकिन दहेज प्रथा की बहुलता वाले देश में शादी में मिले सामान में दहेज और उपहार का भेद अभी भी कानून में परिभाषित नहीं है. कानूनविदों का एक वर्ग है जो मानता है कि दहेज पूरी तरह से बेटी को उसके परिजनों की ओर से उपहार स्वरूप दिया गया सामान है जो स्त्रीधन ही है और इस पर बेटी अर्थात विवाह के बाद किसी की पत्नी बनी बेटी का ही हक होता है. जबकि एक तबका ऐसा भी है जो मानता है कि दहेज में बहुत सा उपहार पति को भी मिलता है. ऐसे में पति को मिले उपहार को स्त्रीधन का हिस्सा नहीं माना जा सकता है. हालांकि हिन्दू विधि में साफ कहा गया है की शादी में वर और वधु पक्ष की ओर से अलग अलग अलग उपहार दिए जाते है और उन पर पति पत्नी का समान हक होता है.

ऐसे में पारिवारिक विवाद के बढ़ते मामलों को देखते हुए जटिल सवाल स्त्रीधन के निर्धारण का है. इसमें मौजूदा हालात के मद्देनजर वधु पक्ष को ध्यान रखना होगा की दहेज का सामान बेटी के नाम से ले और लिखित में इसकी सूची भी तैयार कर वर पक्ष को दी जाए जिससे भविष्य में किसी अनहोनी की स्थिति में कम से कम स्त्रीधन के निर्धारण में संकट का सामना न करना पड़े. हालांकि नाम ही साफ है कि स्त्रीधन स्त्री के लिए ही नियत है और इस पर पुरुष का हक किसी भी सूरत में अनुमान्य नहीं हो सकता है.