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हजार अरब गंध पहचान सकता है इंसान

२४ मार्च २०१४

खाने पीने की, इत्र या फिर इंसानी शरीर की खुशबू, या किसी भी और तरह की खुशबू हो. कई बार नाम भले न याद आए लेकिन हमें गंध जरूर याद रह जाती है. ऐसा इसलिए क्योंकि इंसानी नाक करीब एक हजार अरब तरह की गंध पहचान सकती है.

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Film Das Parfum
तस्वीर: picture-alliance/dpa

दशकों तक वैज्ञानिकों का मानना रहा है कि मानव नाक करीब 10,000 तरह की गंध पहचान सकती है. वहीं इंसान की नजर और सुनने की क्षमता को इससे ज्यादा सक्षम माना जाता रहा है. लेकिन नई रिसर्च से चौंकाने वाले परिणाम सामने आए हैं. अमेरिका की रॉकफेलर यूनिवर्सिटी की रिसर्चर लेस्ली वॉशैल बताती हैं, "हमारा विश्लेषण बताता है कि इंसान की नाक की अलग अलग तरह की गंध को पहचानने की क्षमता उससे कहीं ज्यादा है जितना कभी किसी ने सोचा होगा."

घ्राण क्षमता के बारे में पहले की जा चुकी रिसर्चों में करीब 400 तरह के गंध रेसेप्टरों यानि अभिग्राहकों की मदद ली गई. ये रिसर्च 1920 के दशक की हैं जिनके समर्थन में डाटा भी उपलब्ध नहीं है. रिसर्चरों ने अनुमान लगाया कि इंसान की आंख मात्र तीन अभिग्राहकों की मदद से लाखों रंगों के बीच अंतर कर सकती है. वहीं इंसान का कान तीन लाख चालीस हजार तरह की आवाजें पहचान सकता है. वोशैल के अनुसार नाक की क्षमता पर कभी ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया.

कैसे हुआ टेस्ट

इस रिसर्च को अंजाम देने के लिए वैज्ञानिकों ने 128 अलग अलग तरह की गंध वाले कणों को 26 लोगों पर टेस्ट किया. उन्होंने इन गंधों को अलग अलग रखने के बजाय करीब 30 गंधों के ग्रुप बनाए. वोशैल ने बताया, "हम नहीं चाहते थे कि ये अलग अलग पहचान में आएं, इन्हें मिलाकर कई मिश्रण काफी अजीब तरह महक रहे थे. हम चाहते थे कि लोग गंध को कुछ ऐसे पहचानें जैसे कोई अजीब महक पहचान रहे हैं. हम देखना चाहते थे कि क्या वे दूसरी अजीब महक पहचान सकते हैं."

उन्हें एक बार में तीन तरह की गंध सुंघाई गई. जिनमें दो पहले जैसे थीं लेकिन एक नई थी. मकसद था यह देखना कि क्या वे यह पहचान पाते हैं कि मिश्रण में तीसरी अलग गंध भी शामिल है.

उन्होंने इस तरह के 264 तुलनात्मक अध्ययन किए. हालांकि इस टेस्ट में हिस्सा लेने वालों की क्षमता में भी एक दूसरे के मुकाबले अंतर पाया गया. इसके बाद उन्होंने आकलन किया कि लोग औसतन कितनी तरह की गंध पहचान पा रहे हैं. उन्होंने पाया कि इंसानी नाक करीब एक हजार अरब तक गंधों को पहचान सकती है.

Vom Affen zum Menschen
मनुष्य के जमीन से उठ कर सीधे होकर चलने की विकास प्रक्रिया से भी सूंघने की क्षमता घटी है.तस्वीर: picture-alliance / KPA/TopFoto

जीवनशैली का असर

इस शोध के प्रमुख रिसर्चर आंद्रेआस केलर मानते हैं कि असल संख्या इससे भी ज्यादा हो सकती है क्योंकि वास्तविक दुनिया में कई और तरह की गंध हैं जो एक दूसरे से मिलकर नई तरह की गंध बना सकती हैं.

उन्होंने बताया कि इंसानों के पूर्वजों की जीवनशैली मूल रूप से सूंघने की शक्ति पर निर्भर थी. लेकिन आधुनिक जीवन में सफाई और चीजों को फ्रिज में रखने के कारण हमारे इर्द गिर्द मौजूद गंधों की संख्या भी घटी है, "इससे हमारा रवैया जाहिर होता है कि हमारे लिए सुनने और देखने के मुकाबले सूंघना कम महत्वपूर्ण है."

उन्होंने बताया कि मनुष्य के जमीन से उठ कर सीधे होकर चलने की विकास प्रक्रिया से भी सूंघने की क्षमता में कमी आई है. सूंघने की क्षमता का इंसान के रहन सहन से सीधा संबंध है. अभिग्राहकों के जरिए जब संकेत मस्तिष्क तक पहुंचते हैं, तब गंध को पहचानने का काम मस्तिष्क करता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तरह की जानकारी से इंसानी मस्तिष्क के बारे में और जटिल जानकारियां हासिल करने में मदद मिलेगी.

एसएफ/आईबी (एएफपी)