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हमारी दुनिया में स्वागत अमेरिका

महेश झा
९ नवम्बर २०१६

ऐसा क्यों हो कि ये सब हमारी आपकी असली दुनिया में ही हो. रूस में, तुर्की में, हंगरी में, भारत में. अब अमेरिका ने भी ऐसा ही किया है. पश्चिमी दुनिया के लोग सदमे में हैं, लेकिन अमेरिका विश्व बिरादरी में बराबरी की ओर बढ़ा है.

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US-Präsidentschaftswahl 2016 - Sieg & Rede Donald Trump
तस्वीर: Getty Images/C. Somodevilla

अमेरिकी लोकतंत्र सदियों से उदारवादी लोकतंत्र की राह दिखाने वाला देश रहा है. और लोकतंत्र में फैसला आम लोगों के हाथों में होता है. अमेरिकी जनता ने संस्थानों के खिलाफ अपना फैसला सुना दिया है. एक ऐसे उम्मीदवार को राष्ट्रपति चुना है जिसने कभी सार्वजनिक पद नहीं संभाला है. संस्थानों को उस पर भरोसा नहीं था, लेकिन लोगों को भरोसा था कि वह संस्थानों को बदलेगा और लोकोन्मुखी बनाएगा या उन्हें तोड़ देगा. ट्रंप की जीत मतदाताओं की जीत है, लोकतंत्र की जीत है.

पश्चिमी देशों के साथ बहुत से विकासशील देशों में भी हड़कंप मचा है. सभी को पता था कि ट्रंप जीत सकते हैं लेकिन सभी उम्मीद कर रहे थे कि वे न जीतें. व्यवस्था स्वयं एक अनचाहे उम्मीदवार को निबटा दे. लेकिन मतदाताओं ने इसका मौका नहीं दिया. बहुत से लोग परेशान हैं क्योंकि उन्हें पहली बार पता नहीं है कि अमेरिकी राष्ट्रपति कैसा है, वह क्या फैसले लेगा, कौन से साथी चुनेगा? विश्व राजनीति पहली बार अकलनीय हो गई है. लेकिन क्या यह दूसरे देशों में पहले से ही नहीं होता रहा है? दरअसल लोकतंत्र का सही पैमाना अब तक नहीं बन पाया है. पश्चिम के उदारवादी लोकतंत्रों को छोड़ दें तो ज्यादातर देशों में चुनाव करवाने को ही लोकतंत्र का पर्याय माना जाता रहा है. इस पर अब व्यापक बहस की जरूरत है.

ट्रंप की जीत भारत के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर सकती है, लेकिन दुनिया में एक नए प्रकार की आर्थिक व्यवस्था संभव होगी. ट्रंप खुले बाजार के विरोधी हैं और अमेरिका को फिर से महान बनाना चाहते हैं. इसके लिए उन्हें संरक्षणवाद का सहारा लेना होगा. और इसका मुख्य तौर पर मतलब होगा विकासशील देशों से आयात में कटौती. वैश्वीकरण से दुनिया को बहुत फायदा हुआ है, लेकिन यह फायदा पश्चिमी दुनिया की बड़ी कंपनियों को हुआ है, नुकसान आम जन ने झेला है. अमेरिकी चुनाव का नतीजा इसी तकलीफ की अभिव्यक्ति है. दुनिया भर के आम लोगों की तकलीफ को आवाज देने में आज अमेरिका भी शामिल हो गया है. सवाल ये है कि क्या वह समाधान ढूंढने में अगुआ हो पाएगा. आने वाले दिनों में महत्वपूर्ण ये होगा कि सुधार के कदम सब मिलकर उठाएं. आखिरकार वसुधैव कुटुंबकम सबसे बड़ी सच्चाई है.