1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

हर सांस के साथ मुश्किल होती जिंदगी

२२ फ़रवरी २०१९

कोयले के पाउडर को जलाकर तमिलनाडु के पावर हाउस बड़े शहरों के लिए बिजली बनाते हैं. लेकिन इस प्रक्रिया में बारीक राख भी बनती है, जो गांव वालों की हालत खस्ता किए हुए है.

https://p.dw.com/p/3DqID
Indien Seppakkam - Kraftwerk
तस्वीर: Karthikeyan Hemalatha

चेन्नई से करीब 30 किलोमीटर दूर समुद्री तट पर बसे सेपाक्कम गांव में करीब 60 परिवार रहते हैं. सेपाक्कम गांव की कच्ची सड़क के साथ साथ पांच लंबे और जंग लगे पाइप भी आगे बढ़ते हैं. पाइपों के भीतर राख के साथ मिला हुआ गंदा पानी है. पाइप लीक कर रहे हैं.

इस लीकेज की वजह से सेपाक्कम गांव का बड़ा हिस्सा भूरा दिखता है. जमीन बारीक राख से पटी पड़ी है. घर उजड़े से दिखते हैं. वहां किसी चिड़िया की आवाज भी नहीं सुनाई देती.

तीन बच्चों की मां डी मारियम्मल कहती हैं, "बरसात में कीचड़ हमारे घर के अंदर घुस जाता है. साथ ही पुराने जंग लगे पाइप भी लगातार लीक करते रहते हैं. जुकाम और कफ की शिकायत हमेशा बनी रहती है. हमारे बच्चों को खुजली भी रहती है."

Indien Seppakkam - Kraftwerk
उजड़े इलाके की तरह दिखता सेपाक्कम गांवतस्वीर: Karthikeyan Hemalatha

सेपाक्कम गांव तमिलनाडु राज्य के एन्नोर इलाके में आता है. इलाके में कोयले से चलने वाले तीन बिजली घर हैं; एन्नोर थर्मल पावर स्टेशन, वल्लूर थर्मल पावर स्टेशन और नॉर्थ चेन्नई थर्मल पावर स्टेशन. 2017 में बंद किए गए एन्नोर थर्मल पावर स्टेशन की जगह अब राज्य सरकार 1,320 मेगावॉट वाला नया कोयला बिजली घर बनाना चाहती है. बाकी के दो संयत्र लगातार लगातार पास के गांव को राख से भर रहे हैं.

बिजली घरों में तापमान पैदा करने के लिए कोयले के पाउडर को जलाया जाता है. लेकिन इस दौरान बारीक राख के साथ हेवी मेटल गैस भी निकलती है. गैस में आर्सेनिक, निकेल और मैग्नीज जैसी भारी धातुएं होती हैं. सेपाक्कम गांव के आस पास 400 हेक्टेयर के इलाके में यही राख फैली हुई है. बरसात में राख कीचड़ बनकर गांव में घुसती है और सूखे दिनों में हवा में घुलकर.

नियमों के मुताबिक कोयला संयत्रों की राख को सीमेंट उद्योग को मुफ्त में मुहैया कराया जाना चाहिए. प्रदूषण को रोकने और रिसाइक्लिंग को बढ़ावा देने के लिए यह नियम बनाया गया है. लेकिन सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी की ताजा वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक 67 फीसदी राख ही इस्तेमाल हो पा रही है.

Indien Seppakkam - Kraftwerk
एन्नोर में कोयले से चलने वाले पावर प्लांटतस्वीर: Karthikeyan Hemalatha

पर्यावरण में घुली 33 फीसदी राख स्थानीय इकोसिस्टम को तबाह कर रही है. 344 एकड़ जमीन और पानी का बड़ा हिस्सा दूषित हो चुका है. मछुआरे कम मछली पकड़ पाने के लिए राख को जिम्मेदार ठहराते हैं. शोध दिखा रहे हैं कि हवा में घुली राख इंसानों के फेफड़ों और श्वास नली को नुकसान पहुंचा रही है. लोगों को दमे की शिकायत हो रही है.

तमिलनाडु को भारत में अक्षय ऊर्जा का अग्रणी राज्य माना जाता है. मार्च 2017 तक राज्य की 35 फीसदी बिजली अक्षय ऊर्जा स्रोतों से आ रही थी. पवनचक्कियों से राज्य 7.58 गीगावॉट बिजली बनाता है. लेकिन दक्षिण भारत के इस राज्य में कम से कम पांच थर्मल पावर प्लांट भी हैं.

एन्नोर में नए पावर प्लांट का स्थानीय स्तर पर काफी विरोध हो रहा है. काटुकुप्पम फिशर वेलफेयर कॉपरेटिव सोसाइटी के अध्यक्ष आरएल श्रीनिवासन कहते हैं, "हम अपनी आंखों के सामने सरकार को नियमों का उल्लंघन होते हुए देख रहे हैं और अब समय आ गया है कि हम एकजुट हों. बड़े शहरों की ऊर्जा की मांग पूरी करने का खामियाजा हम क्यों भुगतें? सरकार अक्षय ऊर्जा के स्रोतों में ज्यादा निवेश क्यों नहीं कर रही है?"

Indien Seppakkam - Kraftwerk
परेशान हैं सेपाक्कम गांव के लोगतस्वीर: Karthikeyan Hemalatha

सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि ऊर्जा कंपनियां भी हवा की क्वालिटी से जुड़ी गलत रिपोर्टें पेश कर रही हैं. वे राख को पानी में घोलकर बहा रही हैं. इससे मछुआरों के आजीविका चौपट हो रही है.

अब सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से गांव वालों ने हवा, जमीन और पानी की क्वालिटी की छानबीन खुद शुरू कर दी है. जांच के लिए वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है. स्थानीय लोगों की उम्मीद है कि अगर उनकी जांच पुख्ता साबित हुई तो अदालत ऊर्जा कंपनियों और प्रशासन को जरूर कसेगी.

रिपोर्ट: कार्तिकेयन हेमलता (चेन्नई)