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सैकड़ों बच्चों की मौत से भी नहीं सीखती सरकार

क्रिस्टीने लेनन
१ सितम्बर २०१७

दिमागी बुखार, निमोनिया, डायरिया या दूसरी बीमारियों की वजह से हर साल सैकड़ों बच्चे मारे जाते हैं. सालों से लगातार जारी मौतों के बावजूद सरकारें सबक सीखने को तैयार नहीं हैं.

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Indien Kinderarmut
तस्वीर: picture-alliance/AP Images

हर साल की तरह ही इस साल भी सैकड़ों ग्रामीण बच्चों की जान चली गयी है. कुछ जापानी बुखार से मरे तो कुछ श्वसन प्रणाली में आयी अवरोध के चलते इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं. अकेले गोरखपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में 1250 बच्चों की जान जा चुकी है. वहीं जमशेदपुर के एक अस्पताल में पिछले चार महीने में 164 बच्चे जिंदगी की जंग हार चुके हैं. एनएचआरसी यानी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इन मामलों में संज्ञान लेते हुए बच्चों और नवजातों की मौत पर चिंता जतायी है.

मौतों का कारण

जापानी इंसेफेलाइटिस को आम बोलचाल की भाषा में ‘दिमागी बुखार' कहा जाता है. हर साल भारत में होने वाली सैकड़ों बच्चों की मौतों का इसे जिम्मेदार माना जाता है. मानसून के दौरान पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार झारखण्ड,ओडिशा और असम में दिमागी बुखार के चलते बच्चों की मौतें होती हैं. देश के 100 से अधिक जिले इसके संक्रमण की चपेट में हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश में जापानी बुखार के चलते 1980 से लेकर अब तक बारह हजार से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है.

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तस्वीर: AFP/Getty Images

हालांकि सिर्फ दिमागी बुखार ही नहीं बल्कि कई और कारणों के चलते नवजातों की सांसे टूट जाती हैं. बर्थ एस्फिक्सिया यानी जन्म के बाद नवजात को सांस लेने में तकलीफ के चलते भी मौतें हुई हैं. गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर पीके सिंह का कहना है कि स्थिति गंभीर होने के बाद बच्चों को अस्पताल में लाया जाता है जिसके चलते उन्हें बचाना मुश्किल हो जाता है. वे कहते हैं कि एनआईसीयू में ज्यादा गंभीर हालत वाले नवजात, जिनमें समय से पहले जन्मे, कम वजन वाले, पीलिया, निमोनिया और संक्रामक बीमारियों से पीड़ित बच्चे इलाज के लिए आते हैं, जबकि इंसेफलाइटिस से पीड़ित बच्चे भी अस्पताल में गंभीर स्थिति में पहुचते हैं.

कुपोषण

पिछड़े राज्यों में गर्भवती महिलाओं और बच्चों में कुपोषण की समस्या अधिक पायी जाती है. गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान पूरी तरह से पोषाहार नहीं मिलने से उनके बच्चे अत्यधिक कमजोर पैदा होते. ऐसे बच्चों को बचा पाना चुनौती भरा होता है. झारखण्ड में हुई बच्चों की मौत में पाया गया कि गर्भवती मां प्रसव पूर्व और बाद  के स्वास्थ जांचों के प्रति लापरवाह रहती हैं. जिस कारण उन्हें सही खुराक नहीं मिल पाती. जन्म के बाद भी नवजात को जो टीका मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पाता. परिणामस्वरूप नवजात की स्थिति बिगड़ जाती है.

Indien Mädchen leiden an Hunger Symbolbild
तस्वीर: picture-alliance/dpa

जमशेदपुर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पिछले चार महीने में ही 164 बच्चों की मौत हुई है. अस्पताल के अधीक्षक डाक्टर भारतेंदु भूषण का कहना है कि अधिकतर बच्चों की मौत का कारण कुपोषण है. वैसे,नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में पांच वर्ष तक के 47.8 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं. इनमें से चार लाख बच्चे अति कुपोषित हैं. पूरे देश में सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे झारखंड में हैं. बिहार और उत्तर प्रदेश की स्थिति भी खराब है. रिपोर्ट यह भी बताती है कि एक साल तक के बच्चों की मौत के मामले में उत्तर प्रदेश पूरे देश में पहले नंबर पर है.

बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की कमी

मरीजों के लिए बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है. उत्तर प्रदेश सहित देश के अधिकतर पिछड़े राज्यों का स्वास्थ तंत्र जर्जर अवस्था में है. आबादी के हिसाब से सुविधा युक्त अस्पतालों की कमी है. बढती आबादी के हिसाब से स्वास्थ केन्द्रों में इजाफा नहीं हो रहा है.उत्तर प्रदेश में जरूरत की तुलना में 40 फीसदी स्वास्थ्य केन्द्रों की कमी है. 8 हजार से अधिक डॉक्टरों के पद भरे नहीं जा सके हैं. प्राथमिक स्वास्थ केन्द्रों का नेटवर्क सही तरीके से खड़ा नहीं हो पाया है. ये केंद्र या तो सुविधा विहीन है या उसकी पहुंच दूर दराज के क्षेत्रों तक नहीं है. बड़े अस्पतालों में भी पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं. बर्थ एस्फिक्सिया होने पर मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और जान बचाने के लिए फौरन वेंटीलेटर की ज़रूरत होती है. ज्यादातर अस्पतालों में वेंटीलेटर और इन्क्यूबेटर की पर्याप्त सुविधा नहीं होती.

Schweinebauer in Gorakhpur
तस्वीर: picture-alliance/dpa

जागरूकता की कमी

स्वास्थ्य जानकारों का मानना है कि इनमें से अधिकतर बच्चों की जान बचायी जा सकती थी, वह भी केवल जागरूकता और साफ सफाई रखकर ही. ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य जागरूकता का आभाव है, जिसके चलते बीमारी गंभीर रूप ले लेती है. स्वास्थ्य सेवाएं गांवों तक नहीं पहुंची हैं और जानकारी के आभाव में ग्रामीण स्वास्थ केन्द्रों तक नहीं पहुंच पाते उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य विभाग के पूर्व महानिदेशक डॉ. सत्यमित्र का मानना है, ‘ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य तंत्र का ढांचा मजबूत करके मौतों की संख्या में काफी कमी लाई जा सकती है.'