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हादसों पर भारतीय सेना गंभीर नहीं

२५ मार्च २०१५

कहने को तो भारत दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा आयातक है, उसका सैन्य साजोसामान और हवाई लावलश्कर भी कम नहीं. लेकिन सेना के विमानों और जहाजों के दुर्घटनाग्रस्त होने की खबरें आएं दिन छाई रहती हैं. मौतें जो होती हैं सो अलग.

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तस्वीर: Reuters

आखिर सैन्य बुलंदियों के मामले में इतराता हुआ महादेश इन दुर्घटनाओं को रोकने में नाकाम क्यों नजर आता है? क्या उसके साजोसामान में गड़बड़ी है या उसके पायलट या नाविकों की दक्षता में कमी है या दुर्घटना का शिकार बनने वाले जहाजों की उम्र पूरी हो चुकी होती है और उन्हें उड़ाने वाले सैनिक असल में जान हथेली पर लेकर ड्यूटी कर रहे होते हैं? अफसोस की बात ये है कि ये सभी बातें ही कमोबेश मिलेजुले रूप में कारण के रूप में सामने आती हैं.

और नौसेना में इधर तो पिछले कुछ समय से इस तरह के हादसे चौंकाते ही है. मिसाल के लिए जहाजों में लगी आग के मामले हों या फिर नौसेना के हेलीकॉप्टरों में गड़बड़ी की शिकायतें जिनकी परिणिति बड़ी दुर्घटना और मौतों में होती है. ताजe मामला भले ही नौसेना से जुड़ा हो लेकिन वायुसेना हो या थलसेना, उनके हेलीकॉप्टरों की उड़ानें भी गाहेबगाहे हादसों का शिकार हो जाती हैं.

संयोग ही है कि इस ताजा हादसे से करीब एक सप्ताह पहले ही देश के रक्षा मंत्री ने कहा था कि सेना में चीता और चेतक हेलीकॉप्टरों के 60 प्रतिशत हादसे ह्युमन एरर यानी इंसानी गल्ती का नतीजा होती हैं. उन्होंने सेना के अधिकारियों की पत्नियों के एक डेलीगेशन के साथ मुलाकात में कहा कि ये विमान पुराने नहीं है और न ही उनमें कोई तकनीकी गड़बड़ आमतौर पर होती है.

रक्षा मंत्री के इस बयान से क्या समझें. क्या विमान बिल्कुल चाकचौंबद हैं और गलती उन्हें उड़ाने वाले पायलटों या सैन्यकर्मियों की है. तो इसी से एक और सवाल जुड़ा हुआ है जो ज्यादा महत्त्वपूर्ण बन जाता है, वो ये कि क्या हमारे पायलटों की ट्रेनिंग, कौशल या उड़ान दक्षता में कोई कमी है? और अगर कमी है तो इसके लिए सेना का क्या कार्यक्रम है. मंत्रालय के पास ऐसी कोई कार्ययोजना जरूर होगी जो अपने ही मुखिया मंत्री के बताए आंकड़ों पर गौर करते हुए दक्षता अभियान को मजबूती दिलाए.

रक्षा मंत्री मनोहर पारिकर का कहना है कि 1986 से अब तक 93 हेलीकॉप्टर हादसों का शिकार हुए हैं और सिर्फ 22 फीसदी मामलों में ही तकनीकी समस्या पाई गई है. अब इस आंकड़े के नजरिए से भी देखें तो ये कोई अच्छी स्थिति नहीं है. अपनी बुलंदी का दावा करती रहने वाली सेना के पास, और ऐसी सेना जो बड़े पैमाने पर खरीद में जुटी रही है, उसके साजोसामान में ये तकनीकी गड़बड़ियां मामूली तो नहीं कही जा सकती हैं.

विमानों की डिजाइन या उसकी उम्र का मसला ही लें. चेतक और चीता जैसे हेलीकॉप्टर दुनिया के अन्य देशों में अब नहीं उड़ाए जाते हैं. 1960 के बाद से तो इनका उत्पादन भी बंद हो गया है. हैरानी ही है कि इन्हें अभी तक इस्तेमाल में लाया जा रहा है और पायलटों की और अन्य लोगों की जानें जोखिम भी डाली जा रही हैं. ये शिकायत और वेदना और किसी की नहीं, सेना के ही अधिकारियों की पत्नियों द्वारा पिछले साल गठित एक संगठन (आर्मी वाइव्स एजिटेशन ग्रुप) की है जिसने पिछले दिनों रक्षा मंत्री से मिलकर उन्हें अपना ज्ञापन सौंपा था. वैसे पारिकर का दावा है कि पिछले पांच साल में हादसों की संख्या प्रति दस हजार उड़ान घंटो में 1.5 से घटकर 0.39 रह गई है.

नहीं भूलना चाहिए कि इसी देश में हथियारों की खरीद में महाघोटाले हो चुके हैं और केंद्र सरकारें और उनके मंत्रियों पर गाज भी गिर चुकी हैं. बोफोर्स घोटाले को लोग नहीं भूले हैं. तहलका पत्रिका ने जिस बड़े घोटाले को उजागर किया था कि उसकी स्याह छायाएं अब भी डराती और चौंकाती हैं. यह गहरी चिंता का विषय है कि परीक्षण उड़ानें गिर जाती हैं, विमान हवा में टकरा जाते हैं. कोई विमान किसी इमारत पर कभी किसी मैदान पर कभी किसी रिहायश पर गिर जाता है. जानें जाती हैं और देश का रक्षा सिस्टम ह्यमुन एरर या टेक्नीकल एरर कहकर रह जाता है.

ब्लॉगः शिवप्रसाद जोशी