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हेल्पलाइन से भी कोई हेल्प नहीं

१२ जनवरी २०१३

महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बंगाल में पुलिस ने ल्पलाइन शुरू की है. इसके बावजूद छेड़छाड़ की घटनाएं बढ़ रही हैं. राजधानी दिल्ली में पहले से ऐसी हेल्पलाइन है जो अक्सर काम ही नहीं करती.

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तस्वीर: dapd

दिल्ली में हुई सामूहिक बलात्कार की घटना और पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अत्याचार व छेड़छाड़ के मामलों को ध्यान में रखते हुए कोलकाता पुलिस ने अब महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक नई योजना बनाई है. इसके तहत उसने कुछ खास टेलीफोन नंबर जारी किए हैं. पुलिस का दावा है कि मुसीबत में फंसी किसी महिला के इन नंबरों पर फोन करते ही पुलिस उसकी लोकेशन का पता लगा कर वहां पहुंच जाएगी.

एक महिला मुख्यमंत्री के सत्ता में होने के बावजूद राज्य में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के मामलों में कोई कमी नहीं आई है. इन घटनाओं से सरकार की भी काफी किरकिरी हो रही है. इसी को देखते हुए पुलिस ने यह नई योजना शुरू की है. गौरतलब है कि कोई छह महीने पहले इसी कोलकाता पुलिस ने महिलाओं को अपनी सुरक्षा खुद करने की सलाह दी थी.

पुलिस ही बलात्कारी

पुलिस की इस योजना के बावजूद महानगर में छेड़छाड़ और बलात्कार के मामले कम होने की बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं. दिल्ली की घटना की तर्ज पर ही दिसंबर के आखिरी सप्ताह में एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ. घटना महानगर से सटे बारासात की है जहां यह महिला अपने पति के साथ काम से लौट रही थी. छह लोगों ने बलात्कार करने के बाद उसकी हत्या कर दी और पति के मुंह पर तेजाब फेंक दिया गया.

Indien Frau telefoniert mit Handy
तस्वीर: TAUSEEF MUSTAFA/AFP/Getty Images

पुलिस हेल्पलाइन चालू होने के बाद अभी इसी सप्ताह महिलाओं के साथ बदसलूकी की कम से कम आधा दर्जन घटनाएं हुई हैं. दो दिन पहले पुलिस के एक सब-इंस्पेक्टर को मानसिक तौर पर विकलांग के एक महिला के साथ बलात्कार करते रंगे हाथों पकड़ा गया, तो एक छात्रा ने शराब के नशे में डूबे चार युवकों के चंगुल से बचने के लिए चलती बस से छलांग लगा दी. राज्यपाल एमके नारायणन ने भी कानून और व्यवस्था बनाए रखने में पुलिस पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है.

पुलिस से उम्मीद नहीं

सवाल यह उठता है कि क्या पुलिस की इस नई योजना से क्या महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों पर अंकुश लगाने में कामयाबी मिलेगी. जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता महाश्वेता देवी कहती हैं, "अगर पुलिस गंभीर हो तो ऐसे मामलों पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है. यह योजना तो बढ़िया है, लेकिन इसकी कामयाबी पुलिस वालों की मुस्तैदी पर निर्भर है."

सूचना तकनीक के क्षेत्र में काम करने वाली सुनंदा सान्याल कहती हैं, "ऐसी किसी योजना की कामयाबी पुलिस वालों पर निर्भर है. फिलहाल तो इस योजना के बावजूद महानगरों में छेड़छाड़ की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं." कलकत्ता विश्वविद्यालय की एक छात्रा ज्योति मल्लिक कहती है, "पुलिस ऐसे मामलों में उदासीनता बरतती है. हमें रोजाना छेड़छाड़ और अश्लील फब्तियों का शिकार होना पड़ता है. लेकिन पुलिस वाले चुप्पी साधे रहते हैं. अब इस योजना के कारगर होने पर शायद हालात में बदलाव हो." लेकिन एक गृहिणी सुप्रिया देवनाथ का कहना है, "हमें ऐसे मामलों में खुद ही सावधानी बरतनी होगी. पुलिस से ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती."

कोई आंकड़ा नहीं

पुलिस आयुक्त आरके पचनंदा कहते हैं, "इस नई और अनूठी व्यवस्था से छेड़छाड़ की घटनाओं पर अंकुश लगाने में काफी सहायता मिलेगी." उन्होंने महिलाओं से इन नंबरों को अपने मोबाइल में रखने की सलाह देते हुए कहा है कि उनके मिस काल देने पर भी पुलिस उनके पास पहुंच जाएगी. पचनंदा कहते हैं कि महिलाओं की शिकायतों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी और ऐसे मामलों में दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा.

Protest Banner Schild Stoppt Gewalt an Frauen Indien
तस्वीर: dapd

पुलिस नियंत्रण कक्ष के एक प्रवक्ता बताते हैं कि हेल्पलाइन चालू होने के बाद अब तक इस नंबर पर कुछ फोन आए हैं,  लेकिन उनमें से ज्यादातर फोन इस नंबर को आजमाने के लिए किए गए थे. उनके पास इस बात का कोई आंकड़ा नहीं है कि इस हेल्पलाइन नंबर के जरिए छेड़छाड़ की कितनी घटनाओं की सूचना मिली और उन पर क्या कार्रवाई की गई. लेकिन पुलिस आयुक्त कहते हैं कि इसका असर धीरे-धीरे नजर आएगा क्योंकि शुरूआती दौर में लोग पुलिस को फोन करने में हिचकते हैं.

विरोध प्रदर्शन जारी

दिल्ली की घटना व राज्य में महिलाओं के प्रति अत्याचार की घटनाओं में कथित बढ़ोतरी के खिलाफ राजधानी कोलकाता में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला अब तक थमा नहीं है. कभी तृणमूल कांग्रेस की सहयोगी रही सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (एसयूसीआई) की महिला कार्यकर्ताओं ने महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अत्याचारों के विरोध में राजभवन अभियान किया. एसयूसीआई की महिला नेता अदिति दास कहती हैं, "देश के साथ ही राज्य में भी ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं. एक महिला के राज में भी बंगाल में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं. ऐसे मामलों में दोषियों के खिलाफ कड़े कानून बनाए जाने चाहिए." इसी मामले में एक अन्य संगठन ने कोलकाता में हस्ताक्षर संग्रह अभियान शुरू किया है.

रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: ईशा भाटिया

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