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हैजा बना और खतरनाक

२६ जनवरी २०११

हैजा के लिए जिम्मेदार कीटाणु हाल के कुछ वर्षों में काफी बदला है. बैक्टीरिया में जेनेटिक बदलाव यानी म्यूटेशंस की वजह से बीमारी और लंबे समय तक रहती है और इससे लोगों के मारे जाने का खतरा भी ज्यादा हो गया है.

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हैती में हैजे से जूझते कार्यकर्तातस्वीर: AP

पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ साइंस की पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट का कहना है कि हैजे के फैलने के बाद भी बड़े पैमाने पर टीके लगाए जाने चाहिए. अब तक विश्वेषकों का कहना था कि हैजे के फैलने के बाद टीके लगाने से कोई खास फायदा नहीं होता है. हैती में बीमारी के फैलने के बाद वैज्ञानिक एक बार फिर मुद्दे पर बहस कर रहे हैं.

बैक्टीरिया की खतरनाक नस्ल

अमेरिका के मैसेचूसेट्स जनरल अस्पताल और हार्वर्ड विश्वविद्यालय में शोधकर्ता एड्वर्ड रायन कहते हैं कि हैजे की बैक्टीरिया में भारी बदलाव आए हैं. पहले आनुवंशिक परिवर्तन से निकले हाइब्रिड बैक्टीरिया की नस्ल यानी स्ट्रेन से उन लोगों को भी हैजा हुआ जिन्हें पहले हैजे के टीके दिए गए थे. इसके बाद बैक्टीरिया में जो आनुवंशिक यानी जैनेटिक बदलाव आए, उससे बैक्टीरिया. और भी खतरनाक हो गए. रायन कहते हैं, "हाइब्रिड स्ट्रेन से जब हैजा होता है तो बीमारी और सख्त हो सकती है..इसलिए हैजे से अब 1 से लेकर 5 प्रतिशत मरीजों की मौत होती थी. पहले यह संख्या एक प्रतिशत से भी कम थी." कई विश्लेषक हैजे के टीकों के खिलाफ हैं क्योंकि उनका मानना है कि हैजा फैलने के बाद ज्यादा ध्यान मरीजों के लिए साफ पानी और स्वास्थ्य सुविधाओं पर दिया जाना चाहिए. 2010 में हैती में हैजा फैलने के बाद इससे 2,000 से ज्यादा लोग मारे गए हैं और एक लाख से ज्यादा लोग बीमारी का शिकार बने हैं. रायन का कहना है कि हैजा के बैक्टीरिया के नए स्ट्रेन से टीके पर दोबारा सोचने का वक्त आ गया है.

Flash-Galerie Haiti Baby sitz neben mutter Cholera
हैती में हैजे के मरीजों के लिए राहत शिविरतस्वीर: AP


खुराक पर बहस

पत्रिका में वियतनाम पर हुए एक शोध में बताया गया है कि हनोई में बीमारी को टीकों की मदद से नियंत्रण में रखा गया. मूंह से लिए जाने वाले टीकों की खुराक के बाद केवल 15 प्रतिशत लोगों को हैजा हुआ. इससे पहले 30 प्रतिशत लोगों को हैजा होता था. दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में हुए एक शोध के मुताबिक जिंबाबवे में 2008-2009 में हैजा हुआ था. इसमें 4,287 लोग मारे गए थे और एक लाख से ज्यादा लोग बीमार पड़े थे. गणित और सांख्यिकीय जानकारी के जरिए वैज्ञानिकों ने कहा कि अगर पहले 400 मामलों में हैजे के टीके दिए जाते, तो लगभग 35,000 लोग बीमारी से बचते और 1500 से ज्यादा लोगों को मौत से बचाया जा सकता था.

हैजे की कहानी

हैजा विब्रियो कॉलेरा नाम के बैक्टीरिया से होता है. जब मानव शरीर के गंदे अवशेष पानी या खाने या फिर किसी दूसरे के हाथों तक पहुंचते हैं तो बीमारी फैलती है. इस बीमारी में दस्त और उल्टियां होती हैं जिससे मरीज शरीर का सारा पानी खो देते हैं. साफ पानी न मिलने पर मरीज की मौत घंटों के अंदर अंदर हो सकती है. ज्यादातर मरीजों को नमक वाला पानी पिलाया जाता है और गंभीर मामलों में कीटाणु नाशक एंटीबायॉटिक दवाईयां देनी पड़ती हैं.

हैजे के लिए विश्व भर में दो से लेकर तीन लाख टीकों के खुराक अपलब्ध हैं. दुनिया में केवल दो कंपनियां इन्हें बनाती हैं, भारत में शांता बायोटेक्निक्स की शांचोल जिसके दाम एक खुराक के लिए लगभग 50 रुपए हैं, और नीदरलैंड्स की क्रूसेल, जिसके टीके का नाम ड्यूकोराल है. दुनिया भर में हर साल तीस से लेकर 50 लाख लोग हैजे से पीड़ित होते हैं. एक से लेकर एक लाख 20,000 लोग बीमारी से मारे जाते हैं.

रिपोर्टः एजेंसियां/एमजी

संपादनः उज्ज्वल भट्टाचार्य

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