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हैलो डार्लिंगः दफ्तरों में यौन शोषण की कहानी

२८ अगस्त २०१०

यौन शोषण के जितने मामले सामने आ पाते हैं, जानकार मानते हैं कि उनसे कहीं ज्यादा छिपे रह जाते हैं. यानी असल कहानी क्या है, पता ही नहीं चल पाता. अब एक फिल्म आई है जो ऐसे मामलों की असली कहानी होने का दावा करती है.

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तस्वीर: AP

शुक्रवार को रिलीज हुई फिल्म हैलो डार्लिंग 1980 में हॉलीवुड में बनी एक कॉमेडी फिल्म नाइन टु फाइव से प्रेरित है. नाइन टु फाइव में जेन फोंडा, लिली टॉमलिन और डॉली पार्टन ने अपने खड़ूस बॉस की अक्ल ठिकाने लगाई थी. हैलो डार्लिंग उसी तर्ज पर आधुनिक भारत की नई समस्याओं की बात करती है.

ईशा कोपिकर, सेलिना जेटली, गुल पनाग और जावेद जाफरी ने इस फिल्म में मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं और ईशा कोपिकर का कहना है कि यह फिल्म समाज को एक गंभीर संदेश देने की कोशिश है. वह कहती हैं, "कॉरपोरेट जगत में ऐसे बहुत से पुरुष हैं जो हमेशा महिलाओं के साथ फ्लर्ट करने की संभावनाएं तलाशते रहते हैं. फिल्म ऐसे ही पुरुषों की पोल खोलती है और महिलाओं को बताती है कि उन्हें ऐसे पुरुषों से कैसे निबटना चाहिए."

Sunil Shetty und Samira Reddy
हाल ही में माओवाद पर बनी फिल्म रेड अलर्टतस्वीर: UNI

बढ़े मामले

ऑल इंडिया डेमोक्रैटिक वुमन्स असोसिएशन की महासचिव सुधा सुंदरम कहती हैं कि भारत में अब महिलाएं ज्यादा संख्या में घरों से बाहर निकलकर कामकाज कर रही हैं और इसके साथ ही यौन शोषण और छेड़छाड़ के मामले भी तेजी से बढ़े हैं. सुधा बताती हैं, "महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार के मामले सिर्फ कॉरपोरेट जगत में ही नहीं होते, बल्कि गैर संगठित क्षेत्र में भी ऐसी घटनाएं बहुत होती हैं, जहां महिलाएं बहुत कम पैसे पर काम करती हैं. लेकिन कॉल सेंटर्स जैसी जगहों पर, जहां महिलाओं को असामान्य वक्त पर भी काम करना पड़ता है, इस तरह की घटनाओं की आशंका ज्यादा होती है."

सुधा कहती हैं कि हमारे समाज में लोगों का नजरिया अब भी पुरुषवादी है और ऐसी भावना है कि जो महिलाएं बाहर काम कर रही हैं उन तक आसानी से पहुंचा जा सकता है. हाल के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि यौन शोषण और छेड़छाड़ के मामलों में भारी बढ़ोतरी हुई है. साल 2008 में ही यौन शोषण के 12 हजार मामले दर्ज हुए जबकि छेड़छाड़ के 40 हजार. कुछ ही दिन पहले भारतीय महिला हॉकी टीम में खिलाड़ियों से छेड़छाड़ की खबरों पर बवाल हुआ. लेकिन कुछ ही खिलाड़ियों ने सामने आकर सच्चाई बताई, जबकि ज्यादातर ने चुप्पी साधे रखी.

1997 में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कंपनियों के लिए निर्देश जारी किये थे कि उन्हें अपने यहां यौन शोषण की घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे. लेकिन सुधा सुंदरम कहती हैं कि निर्देश को मानना जरूरी नहीं है. सुधा सुंदरम चाहती हैं कि इस सिलसिले में एक कड़ा कानून बनाया जाए.

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः आभा एम