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भारत की पहली महिला ब्लेड रनर

एम अंसारी२९ जनवरी २०१६

पैर खोने के बाद वह जिंदगी में उस दौर से गुजर रही थी जहां कई लोग हार मान लेते हैं. लेकिन किरन कनौजिया ने कमजोरी को सबसे बड़ा हथियार बनाया और बन गईं भारत की पहली महिला ब्लेड रनर.

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30 Jährige Kiran Kanojia ist erste weibliche Blade Runnerin Indien
तस्वीर: Kiran Kanojia

जिंदगी की हार को उन्होंने जीत में बदल दिया. किरन के इरादों के सामने नामुमकिन भी बौना साबित होता लगता है, जिंदगी की रेस में वह कभी रुकती नहीं और अपने सपनों को पूरा करने के लिए कृत्रिम पैर का सहारा लेती हैं. अपने हौसलों के दम पर किरन कनौजिया देश की पहली महिला ब्लेड रनर हैं.

एक ब्लेड रनर की कहानी

24 दिसंबर 2011 की शाम उनकी जिंदगी बदलने वाली साबित हुई. 25 दिसंबर को फरीदाबाद में परिवार के साथ जन्मदिन मनाने के लिए किरन हैदराबाद से ट्रेन में सवार हुईं. किरन स्टेशन आने का इंतजार कर रही थीं तभी दो लोग उसके पास आए और उसका बैग छीनकर भागने लगे. निडर किरन ने बदमाशों का सामना किया लेकिन एक बदमाश ने किरन को धक्का दे दिया और वह ट्रेन से गिर गईं. किरन का एक पैर प्लेटफार्म और चलती ट्रेन के बीच फंस गया.

उन्हें अस्पताल ले जाया गया लेकिन 24 दिसंबर यानि क्रिसमस की छुट्टियों का समय होने की वजह से अस्पताल में डॉक्टर मौजूद नहीं थे. जब तक डॉक्टर आते बहुत देर हो चुकी थी. डॉक्टरों को किरन का एक पैर काटना पड़ा. जब किरन को यह अहसास हुआ कि उसका एक पैर कट चुका है तो उनकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया. किरन इस उधेड़बुन में पड़ गईं कि अब उनकी जिंदगी आगे कैसे चलेगी. हादसे के 6 महीने तक किरन डिप्रेशन में रही और घर की चारदीवारी में सिमट कर रह गईं. किरन के मुताबिक, "उस दौरान मेरे पिता ने मेरा बहुत साथ दिया और मेरा हौसला बढ़ाया कि मैं जिंदगी में हार नहीं मानूं और अपने लक्ष्य को हासिल करूं. मेरे पिता एक किसान हैं लेकिन उन्होंने मुझे पढ़ाया लिखाया और मेरे मुश्किल समय में प्रेरणास्रोत बने."

30 Jährige Kiran Kanojia ist erste weibliche Blade Runnerin Indien
तस्वीर: Kiran Kanojia

किरन ने खुद पर भरोसे और हौसले के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया. लेकिन 6 महीने बाद जब किरन उठी तो दोबारा गिर पड़ीं. डॉक्टरों ने किरन को सलाह दी कि वह खेलकूद में भाग ना लें जिससे उनके पैरों पर जोर पड़े. किरन हैदराबाद स्थित अपने इंफोसिस दफ्तर दोबारा काम पर लौटीं. यहां उन्हें हैरान करने वाला माहौल मिला. उनके सहकर्मी उसे इस बात का अहसास नहीं होने देते कि उनके साथ कुछ हादसा हुआ है. पहले किरन इस बात से घबराती थीं कि वह दफ्तर कैसे जाएंगी और वहां लोगों की क्या प्रतिक्रिया होगी. हैदराबाद में ही किरन ने दक्षिण रिहेबलिटेशन सेंटर जाना शुरू किया. वहां उन्होंने देखा कि कई एमप्यूटी खेल की ट्रेनिंग ले रहे हैं. सेंटर में भी डॉक्टरों ने किरन को कृत्रिम पैर लगाने और रनिंग शुरू करने की सलाह दी. कृत्रिम पैर लगाने के बाद किरन को कुछ दिक्कतें भी पेश आईं लेकिन मजबूत इरादों वाली किरन आगे बढ़ती गईं. समाज में भी उनको भारी समर्थन मिला. माता पिता, दफ्तर और सेंटर में अथाह समर्थन के बाद किरन मैराथन दौड़ने लगीं.

शोहरत की सीढ़ियां

ब्लेड लगाकर दौड़ने वाली किरन जल्द ही एक प्रोफेशनल ब्लेड रनर बन गईं. किरन अपने जैसे और लोगों के साथ ब्लेड लगाकर दौड़ती हैं और ग्रुप में शामिल अन्य लोग एक दूसरे का हौसला बढ़ाते हैं. ट्रेनिंग और रनिंग के साथ समय बीतता गया और किरन ने ग्रुप के साथ 5 किलोमीटर का मैराथन पूरा किया. किरन कहती हैं, "मेरा सफर रुकने वाला नहीं था, लोग मुझसे कहते कि आपके पास एक पैर नहीं है लेकिन फिर भी आप इतने साहस के साथ दौड़ रही हैं. मुझे यह सब सुनकर बहुत अच्छा लगता है." वह अपने जैसे लोगों के साथ ट्रेनिंग कर 21 किलोमीटर के लिए तैयारी करती रहीं. ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उन्होंने 21 किलोमीटकर मैराथन को साढ़े तीन घंटे में पूरा किया. "मुझे लगा कि भले ही मेरा एक पैर नहीं है लेकिन मैं किसी भी सामान्य व्यक्ति से कम नहीं हूं. मैं यही कहना चाहूंगी कि जिंदगी में कभी किसी पल भी हार नहीं मानना चाहिए."

किरन का सफर यहीं रुकने वाला नहीं है वह अंतरराष्ट्रीय मैराथन दौड़ना चाहती हैं. किरन के मुताबिक, "खुद पर भरोसा रखना चाहिए और हमेशा एक कदम आगे चलना चाहिए. तभी जाकर आप अपने लक्ष्य को पा सकते हैं. जीत और हार दोनों चीजें आपके दिमाग में होती है. हमें खुद पर भरोसा करना होगा और अपनी सोच सकारात्मक बनानी होगी. जब आप खुद पर भरोसा करेंगे तभी दुनिया भी आप पर भरोसा करेगी. दुनिया में कुछ भी नामुमकिन नहीं. बस इच्छाशक्ति होनी चाहिए."