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16 साल की स्वीडिश एक्टिविस्ट को वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार

२५ सितम्बर २०१९

जलवायु परिवर्तन के खतरों की ओर ध्यान दिलाने के लिए ग्रेटा थुनबर्ग को राइट लाइवलिहुड एवार्ड दिए जाने की घोषणा हुई. स्वीडन की किशोरी के अलावा तीन अन्य के काम को सराहने के लिए दिए जाएंगे 2019 के "वैकल्पिक नोबेल" पुरस्कार.

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Bildkombo: Preisträger des Alternativen Nobelpreises, des Right Livelihood Awards 2019

साल 2019 के राइट लाइवलिहुड अवार्ड से सम्मानित किए जाने वाले चार लोगों में थुनबर्ग भी शामिल हैं. स्वीडन की इस क्लाइमेट एक्टिविस्ट के बारे में "वैकल्पिक नोबेल" कहे जाने वाले इस पुरस्कार के फाउंडेशन ने कहा कि उन्होंने "वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर जलवायु परिवर्तन से निपटने के कदम उठाने की राजनीतिक मांगों को प्रेरणा और बढ़ावा देने" का काम किया है. फाउंडेशन ने कहा कि नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भी नामांकित की गई 16 साल की थुनबर्ग "इस धारणा को चरितार्थ करती हैं कि हर किसी में बदलाव लाने की शक्ति होती है. उनकी मिसाल से हर तरह के लोग राजनीतिक कदमों की मांग करने के लिए प्रेरित और सशक्त हुए हैं."

सालाना राइट लाइवलिहुड अवार्ड दिए जाने की शुरुआत सन 1980 में हुई. इसके संस्थापक एक स्वीडिश-जर्मन समाजसेवी याकोब फॉन उएक्सकुल थे जिनका मकसद उनको सम्मान देना था जिन्हें नोबेल पुरस्कार समिति नजरअंजाद कर देती थी. इसीलिए इसे वैकल्पिक नोबेल पुरस्कारों के तौर पर पहचान मिली.

2019 के चारों विजेताओं को 10 लाख क्रोनोर (यानि लगभग 103,000 डॉलर) की राशि भी दी जाएगी. फाउंडेशन ने थुनबर्ग के अलावा जिन तीन लोगों को इस सम्मान के लिए चुना है उनमें दावी कोपेनावा और हुतुकारा यानोमामी एसोसिएशन शामिल है. यह एसोसिएशन ब्राजील में अमेजन के जंगलों और वहां रहने वाले आदिवासियों के संरक्षण के काम में लगी है. इसके अलावा मोरक्को की एक्टिविस्ट अमीनातू हैदर को पश्चिमी सहारा में "उनकी दृढ़ अहिंसक कदमों के लिए" और चीनी वकील गुओ जियानमेई को चीन में महिला अधिकारों पर उनके काम के लिए सम्मानित किया गया है. पुरस्कार स्वीडन के स्टॉकहोम में 4 दिसंबर को एक समारोह में दिए जाएंगे. इसके छह दिन बाद नोबेल पुरस्कार दिए जाएंगे.

थुनबर्ग ने अपना आंदोलन 20 अगस्त, 2018 को तब शुरु किया जब वे स्वीडन की संसद के बाहर अकेली ही धरने पर बैठ गईं. इस तरह उन्होंने हफ्ते दर हफ्ते एक दिन स्कूल जाने के बजाए संसद के सामने जाकर जलवायु परिवर्तन को लेकर ठोस कदम उठाने की मांग रखी. एक अकेले इंसान के साहस और दृढ़ता से धीरे धीरे पूरे विश्व में लोग प्रभावित हुए और उनकी प्रेरणा से कई देशों में लाखों लोग प्रदर्शन कर नेताओं से जलवायु परवर्तन की गंभीरता को समझ जल्द से जल्द कदम उठाने की मांग करने लगे.

आरपी/एनआर (एपी, डीपीए)

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