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कश्मीर दौरे पर 16 देशों के राजदूत और राजनयिक

आमिर अंसारी
९ जनवरी २०२०

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद 16 देशों के राजदूत और राजनयिक कश्मीर के दो दिवसीय दौरे पर हैं. विदेशी राजदूत वहां जमीनी हालात का जायजा लेंगे और नागरिक संगठनों के प्रतिनिधियों से बात करेंगे.

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Indien Besuch von EU Parlamentarier in Kaschmir Proteste
फाइल चित्र: अक्टूबर 2019 के दौरे के पहले की तैयारी.तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS.com/M. Mattoo

विदेशी राजनयिकों का दल श्रीनगर पहुंचने के बाद गुरुवार को उप राज्यपाल जीसी मर्मू के साथ ही नागरिक संगठनों के प्रतिनिधियों से मुलाकात करेगा. शुक्रवार को वे जम्मू-कश्मीर से वापस लौट जाएंगे. भारतीय मीडिया में ऐसी खबरें हैं कि यूरोपीय संघ के सदस्यों ने वहां जाने को लेकर कहा है कि वे किसी और तारीख को जाएंगे. रिपोर्टों के मुताबिक ईयू के सदस्यों ने वहां जाने को लेकर कुछ शर्तें भी लगाई हैं.

अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने के बाद यह पहला मौका है जब राजदूत हालात का जायजा लेने जम्मू-कश्मीर जा रहे हैं. इंस्टीट्यूट फॉर कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट के कार्यकारी निदेशक और लेखक अजय साहनी के मुताबिक, "ऐसा कदम सरकार को बहुत समय पहले ही ले लेना चाहिए था. जहां तक कश्मीर का सवाल है सरकार हमेशा से खुली नीति अपनाती आई है. लेकिन 5 अगस्त के बाद की जो चीजें हैं वह सरकार की स्थापित नीति के खिलाफ जाती हैं. क्योंकि खुलापन एक लाभ के रूप में देखा जाता रहा है. भारत हमेशा से कहता आया है कि उसके पास कश्मीर को लेकर छिपाने को कुछ नहीं है."

इस प्रतिनिधिमंडल में अमेरिका, लैटिन अमेरिकी और अफ्रीकी देशों के राजदूतों के साथ ही साथ बांग्लादेश, विएतनाम, मालदीव, दक्षिण कोरिया, ब्राजील के राजनयिक शामिल हैं. पिछले साल अक्टूबर में विदेशी दल ने दो दिनों के लिए जम्मू-कश्मीर का दौरा किया था. यूरोपीय संसद के जिन सदस्यों ने कश्मीर का दौरा किया था उनमें ज्यादातर यूरोपीय देशों की दक्षिणपंथी पार्टियों के थे और तीन सांसद उदार वामपंथी दलों से जुड़े थे. ऐसी खबरें हैं कि इस बार यूरोपीय देशों के राजनयिकों ने हिरासत में लिए गए नेताओं से मुलाकात की मांग की थी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ईयू के प्रतिनिधि किसी भी तरह के "गाइडेड टूर" के पक्ष में नहीं हैं और वे बाद में वहां जाएंगे. वे स्वेच्छा से खुद के चुने लोगों से मिलना चाहते हैं.

अजय साहनी कहते हैं, "इस बार पूरी नजर इस पर रहेगी कि यह दौरा किस तरह से मैनेज होता है और दौरे को किस तरह से प्रोजेक्ट किया जाता है. सिर्फ यह कहना है कि राजनयिक जम्मू-कश्मीर जा सकते हैं इससे कुछ नहीं होगा, आप राजनयिकों को किस तरह की छूट देते हैं यह देखने लायक होगा. स्टेज मैनेज्ड कार्यक्रम से फायदा नहीं हो सकता है." साहनी कहते हैं कि राजनयिकों को किससे मिलने की और किससे बात करने की छूट दी जाती है यह गौर करने वाला विषय रहेगा. भारत सरकार दावा करती है कि कश्मीर में हालात सामान्य हो रहे हैं और पाबंदियों में ढील दी जा रही है लेकिन संचार के माध्यम खासकर इंटरनेट सेवा अब तक बहाल पूरी तरह से बहाल नहीं हो पाए हैं.

Indien Besuch von EU Parlamentarier in Kaschmir
अक्टूबर 2019 में ईयू के सांसदों के कश्मीर दौरे की तस्वीर.तस्वीर: Reuters/D. Ismail

कश्मीर पर भारत-मलेशिया के कड़वे होते संबंध

दूसरी ओर मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद के कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद दिए बयान से भारत और मलेशिया के बीच रिश्तों में खटास पड़ती दिख रही है. इसी के साथ मलेशिया के नागरिकता संशोधन कानून पर नए बयान ने आग में घी डालने का काम किया है. बुधवार को भारत ने मलेशिया से पाम ऑयल आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है. सूत्रों के मुताबिक यह फैसला मलेशिया के मोदी सरकार के कश्मीर और नागरिकता कानून की आलोचना के बाद लिया गया है. भारतीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी कर आयात नीति को संशोधित करते हुए रिफाइंड पाम ऑयल और पामोलीन के आयात को मुक्‍त श्रेणी से हटाकर प्रतिबंधित श्रेणी में रखा गया है. 

समाचार एजेंसी रॉयटर्स को उद्योग जगत से जुड़े चार सूत्रों ने बताया कि मेमो के मुताबिक मलेशिया से रिफाइंड पाम ऑयल के आयात पर प्रभावी प्रतिबंध लग गया है, जिसका मतलब है कि भारत सिर्फ कच्चा पाम ऑयल आयात कर सकता है. इस कदम से मलेशिया को सबसे बड़ा नुकसान होगा क्योंकि वह भारत को रिफाइंड पाम ऑयल का सबसे बड़ा सप्लायर है.

वहीं इस फैसले से इंडोनेशिया को अधिक लाभ होगा क्योंकि वह कच्चे पाम ऑयल का सबसे बड़ा निर्यातक है. सरकार और उद्योग जगत के सूत्रों का कहना है कि मलेशिया के प्रधानमंत्री द्वारा भारत सरकार की आलोचना के बाद सरकार उस पर निशाना साधना चाहती है. भारत हर साल करीब 9 लाख टन पाम ऑयल आयात करता है. 2019 में करीब 5 लाख टन पाम ऑयल मलेशिया से आयात किया गया था. कश्मीर और उसके बाद नागरिकता कानून पर मलेशिया के रवैये से भारत सरकार विशेषतौर पर नाराज है. मलेशिया को जीडीपी का 2.8 प्रतिशत पाम ऑयल के निर्यात से मिलता है और य उसके कुल निर्यात का 4.5 प्रतिशत हिस्सा है. पाम ऑयल से होने वाली कमाई मलेशिया की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत अहम है.

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