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समाज

जब हवा में टकराते टकराते बचे भारतीय विमान

प्रभाकर मणि तिवारी
३ सितम्बर २०१८

हवाई जहाज के सफर को आम तौर पर सबसे सुरक्षित माना जाता है. लेकिन क्या भारत में भी यह इतना ही सुरक्षित है? सरकार की ओर से हाल में संसद में पेश आंकड़ों ने इस सवाल को जन्म दिया है.

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Russland Sukhoi Superjet SSJ 100
तस्वीर: picture-alliance/dpa/TASS/S. Savostyanov

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस साल जून तक ऐसी 26 घटनाएं दर्ज हुई हैं जिनमें हवा में दो विमान आपस में टकरात-टकराते रह गए. वर्ष 2015-16 के दौरान ऐसी 30 घटनाएं हुई थीं जबकि 2016-17 के दौरान इनमें कमी आई थी और यह आंकड़ा 24 रह गया था. लेकिन इस साल जून तक ही ऐसे मामलों की तादाद बढ़ने की वजह से हवाई सुरक्षा पर सवाल पैदा हो रहे हैं.

इन घटनाओं के लिए देश में एयर ट्रैफिक कंट्रोलरों (एटीसी) की कमी और विदेशी पायलटों के अंग्रेजी में दिए जाने वाले निर्देशों को ठीक से नहीं समझने को जिम्मेदार ठहराया जाता है. अब इन बढ़ती घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए सरकार और केंद्रीय नागरिक उड्डयन निदेशालय जरूरी कदम उठा रहा है.

केंद्रीय नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने हाल में लोकसभा में बताया कि इस साल जून तक 26 ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनमें दो विमान हवा में आमने-सामने टकराने की स्थिति में आ गए. सिन्हा का कहना था कि वर्ष 2016 में ऐसी 32 घटनाएं हुई थीं जबकि बीते साल 28 घटनाएं.

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केंद्रीय मंत्री बताते हैं, "ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए हवाई क्षेत्र का लचीला इस्तेमाल सुनिश्चित करने की एक प्रणाली के साथ ही तमाम हवाई अड्डों पर सुरक्षा प्रबंधन लागू किया जा रहा है. एयरलाइंस कंपनियों को समान या भ्रामक काल साइनों से बचने का भी निर्देश दिया गया है.”

वह बताते हैं कि भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) भी इसके लिए चार उड़ान सूचना क्षेत्रों के बीच समानता बहाल करने की एक योजना पर काम कर रहा है. इसके तहत 25 हजार फीट से ऊपर के हवाई क्षेत्र को चार महानगरों में स्थित एयर ट्रैफिक कंट्रोल केंद्रों की ओर से नियंत्रित किया जाएगा. चेन्नई और कोलकाता केंद्रों पर यह काम पूरा हो गया है. अब जल्दी ही दिल्ली और मुंबई में भी इसे लागू किया जाएगा.

नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) की दलील है कि इन घटनाओं से चिंतित होने की जरूरत नहीं है. हवाई क्षेत्र को और सुरक्षित बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जा रहे हैं. नागरिक उड्डयन मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, "हमारा मकसद इन घटनाओं को न्यूनतम स्तर पर लाना है. ऐसी तमाम घटनाओं की जांच डीजीसीए की ओर से गठित एयरपोर्ट इन्वेस्टीगेशन बोर्ड करता है. जांच रिपोर्ट की समीक्षा के बाद बोर्ड की सिफारिशों पर अमल की प्रक्रिया शुरू की जाती है.”

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वह बताते हैं कि इन घटनाओं पर अंकुश लगाने की दिशा में कई कदम उठाए जा रहे हैं. इनमें एटीसी अधिकारियों और पायलटों की दक्षता की नियमित जांच के अलावा एटीसी सेवाओं का आधुनिकीकरण और इन घटनाओं की विस्तृत जांच के बाद भविष्य में इनकी पुनरावृत्ति से बचने की ट्रेनिंग जैसे उपाय शामिल हैं.

इसके साथ ही विमानन कंपनियों को भ्रामक या मिलते-जुलते कॉल साइन से बचने के निर्देश दिए गए हैं. कॉल साइन विमानन की भाषा में वह संकेत है जिससे हवाई क्षेत्र में उड़ रहे किसी विमान की पहचान की जाती है. यह तमाम उड़ानों के लिए अलग-अलग होता है.

उड्डयन उद्योग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि भारतीय हवाई क्षेत्र में लगातार बढ़ता एयर ट्रैफिक भी कई बार विमानों के आमने-सामने आने जैसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार होता है. मौजूदा आधारभूत ढांचे के मुकाबले यह ट्रैफिक तेजी से बढ़ रहा है.

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नागरिक उड्डयन निदेशालय के पूर्व महानिदेशक कानू गोहांई कहते हैं, "बढ़ते एयर ट्रैफिक के साथ आधारभूत ढांचे को मजबूत करना और ट्रैफिक कंट्रोलरों की तादाद बढ़ाना जरूरी है.” फिलहाल देश में विभिन्न कंपनियों के 1632 से भी ज्यादा विमान पंजीकृत हैं. विभिन्न कंपनियों ने लगभग साढ़े आठ सौ नए विमानों की खरीद का ऑर्डर दिया है. इससे हवाई क्षेत्र में भीड़ और बढ़ने का अंदेशा है.

केंद्रीय नागरिक विमान मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए अब हवाई क्षेत्रों को दो हिस्सों में बांटने का फैसला किया गया है. तमाम व्यावसायिक उड़ानें हवा में 46 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ती हैं. अब इसे दो हिस्सों में बांटने का फैसला किया गया है. इसमें से 29 हजार फीट तक को निचले हवाईक्षेत्र की श्रेणी में रखा जाएगा और 29 से 46 हजार तक को ऊपरी हवाई क्षेत्र में.

सूत्रों के मुताबिक, इससे कंट्रोलरों को विमानों के संचालन पर निगाह रखने में सुविधा होगी और उन पर काम का दबाव कम होगा. इसी साल मई में यह फैसला किया गया था.

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भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) के अध्यश्र जीपी महापात्र कहते हैं, "इससे ट्रैफिक कंट्रोलरों को कामकाज में सहूलियत होगी और दक्षता बढ़ाई जा सकेगी. इससे विभिन्न विमानों के बीच की जगह को कम किया जा सकता है और उतनी ही जगह में ज्यादा विमानों को नियंत्रित किया जा सकता है.”

उड्डयन विशेषज्ञों का कहना है कि देश में एअर ट्रैफिक कंट्रोलरों की भी भारी कमी है. मौजूदा कर्मचारियों पर काम का बोझ करने के लिए कम से कम 12 सौ नई नियुक्तियां जरूरी हैं. बीते कई वर्षों से कंट्रोलरों की नियुक्ति लगभग ठप थी.

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