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40 प्रतिशत चाहते हैं मैर्केल का इस्तीफा

महेश झा (रॉयटर्स, डीपीए)२९ जनवरी २०१६

शरणार्थियों का दिल खोलकर स्वागत करने की नीति के कारण जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल की जर्मनी के अलावा दुनिया भर में भी तारीफ हुई थी. अब चालीस प्रतिशत जर्मन शरणार्थी संकट के कारण मैर्केल का इस्तीफा चाहते हैं.

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Deutschland PK Angela Merkel
अंगेला मैर्केलतस्वीर: Reuters/F. Bensch

अनुदारवादी जर्मन पत्रिका फोकस द्वारा कराए गए एक सर्वे के अनुसार जर्मनी के 40 प्रतिशत लोग चाहते हैं कि शरणार्थी संकट के कारण मैर्केल को इस्तीफा देना चाहिए. मैर्केल के लिए अच्छी बात यह है कि 45.2 प्रतिशत का मानना है कि शरणार्थी नीति के कारण चांसलर को इस्तीफा देने की कोई जरूरत नहीं है. जनमत सर्वेक्षण संस्था इंसा द्वारा कराया गया सर्वे शरणार्थियों के मुद्दे पर जर्मन समाज के विभाजन को दिखाता है. यह प्रतिनिधि सर्वे 22 से 25 जनवरी तक कराया गया और इसमें 2,000 लोगों ने हिस्सा लिया.

शरणार्थी संकट पर मूड बदलने के पीछे चांसलर मैर्केल की अपनी कंजरवेटिव पार्टी और सहयोगी पार्टी सीएसयू में विरोध का होना तो है ही, नए साल के मौके पर कोलोन में महिलाओं के साथ हुए व्यापक यौन दुर्व्यवहार में शरणार्थियों की कथित भागीदारी ने भी अहम भूमिका निभाई है. चांसलर ने जो 'हम कर सकते हैं' का नारा दिया था, उस पर जर्मनी आ रही शरणार्थियों की भारी संख्या और उनके रजिस्ट्रेशन में आ रही दिक्कतों के कारण लोगों का विश्वास कम होता जा रहा है. इसके अलावा अलग अलग देशों द्वारा अपनी सीमाओं पर निगरानी की शुरुआत के बावजूद जर्मनी को शरणार्थियों के बंटवारे में यूरोपीय देशों का भी सहयोग नहीं मिल रहा है.

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गठबंधन के नेतातस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B. von Jutrczenka

स्थिति को संभालने के लिए चांसलर समस्या के तीन पहलुओं पर काम कर रही हैं. एक तो उच्चतम सीमा तय करने के बदले शरणार्थियों की संख्या को कम करने की कोशिश, दूसरे जर्मनी आए शरणार्थियों को समाज में जल्द घुलाने मिलाने की कोशिश और तीसरे यूरोपीय देशों को साझा शरणार्थी नीति के लिए राजी करवाने की कोशिश.

शरणार्थियों को हतोत्साहित करने के लिए जर्मनी के गठबंधन ने एक समझौता किया है जिसके तहत उन शरणार्थियों के परिवार वाले दो साल बाद जर्मनी आ सकेंगे जो फौरी तौर पर उत्पीड़न के शिकार नहीं हैं. इसके विपरीत तुर्की, जॉर्डन और लेबनान से लिए जाने वाले शरणार्थी अपने परिवार के साथ आ पाएंगे. समाज का हिस्सा बनने के लिए जरूरी भाषा सीखने के प्रोग्राम में अब शरणार्थियों को हर महीने 10 यूरो की फीस देनी होगी. भविष्य में प्रशिक्षण पा चुके शरणार्थियों को दो साल काम करने की छूट होगी. मोरक्को, ट्यूनीशिया और अल्जीरिया को सुरक्षित देश घोषित किया जाएगा और वहां के लोगों को शरण पाने का अधिकार नहीं होगा.

Köln Flüchtlinge Demonstration gegen Übergriffe in der Silvesternacht
सेक्सिज्म के खिलाफतस्वीर: DW/J. Ospina-Valencia

इसके अलावा सुरक्षित देशों से आने वाले लोगों के शरण के आवेदनों पर जल्द फैसले के लिए विशेष केंद्र बनाए जाएंगे ताकि शरण न मिलने पर उन्हें फौरन वापस भेजा जा सके. जर्मनी आ चुके शरणार्थियों को समाज का हिस्सा बनाने के लिए उनके प्रशिक्षण की संरचना बनाने पर जोर शोर से काम चल रहा है. गुरुवार को केंद्र सरकार और प्रांतीय सरकारों के प्रतिनिधियों के बीच इस पर बातचीत हुई. लेकिन इस पर होने वाले खर्च को लेकर अभी भी विवाद है. एसपीडी ने शरणार्थियों के समेकन के लिए स्कूलों, किंडरगार्टन और घरों के निर्माण में निवेश करने के अलावा उन्हें काम करने की अनुमति देने की मांग की है. मैर्केल समर्थकों को उम्मीद है कि इससे पैदा होने वाली आर्थिक गतिविधि का फायदा पूरे समाज को होगा.

जर्मन सरकार की तीसरी चुनौती यूरोपीय देशों को नई शरणार्थी नीति के लिए राजी करवाना है. विरोध करने वाले देशों में इटली, ब्रिटेन, पोलैंड और हंगरी जैसे देश हैं. रोम के प्रधानमंत्री मातेयो रेंसी के बर्लिन दौरे पर चांसलर मैर्केल उन्हें शरणार्थियों का कोटा स्वीकार करने के लिए मनाएंगी. स्थिर यूरोपीय संघ के लिए स्थिर जर्मनी जरूरी है. दूसरे देश भी समझने लगे हैं कि दबाव में आई चांसलर मैर्केल को उससे बाहर निकालना जरूरी है. अगले महीने होने वाली यूरोपीय शिखर भेंट में इसका मौका है.