1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

40 साल पहले मिला स्पॉन्सर

१९ मार्च २०१३

खिलाड़ियों की जर्सी पर अलग अलग कंपनियों का विज्ञापन आज एक आम दृश्य है, पर चालीस साल पहले तक जर्मनी में ऐसा नहीं था. शराब की एक कंपनी ने एक क्लब को खरीद कर नया चलन शुरू किया.

https://p.dw.com/p/180C1
तस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मन फुटबॉल खिलाड़ी और यहां की फुटबॉल लीग बुंडेसलीगा दुनिया भर में जाने जाते हैं. खिलाड़ी और टीमें अपने प्रदर्शन के साथ साथ अपने स्पॉन्सर के लिए भी जानी जाते हैं. क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि इन खिलाड़ियों की जर्सी पर कोई भी विज्ञापन ना हो? 70 के दशक तक तो ऐसा ही था. जर्सी अलग अलग रंग की होती थी और उस पर केवल क्लब का लोगो और खिलाड़ी का नंबर हुआ करता था.

1973 में पहली बार जर्मनी के फुटबॉल क्लब आइनट्राख्ट ब्राउनश्वाइग ने दिखाया कि जर्सी के साथ ऐसा भी कुछ किया जा सकता है. शराब कंपनी येगरमाइस्टर के मालिक गुंटर मास्ट चाहते थे कि उनकी कंपनी देश भर में जानी जाए और लोगों तक पहुंचने का फुटबॉल से बेहतर और क्या जरिया हो सकता है?

Bildergalerie 40 Jahre Trikotwerbung
जर्सी से विज्ञापनतस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मन फुटबॉल संघ डीएफबी ने इसका विरोध किया. मास्ट का 2011 में 84 की उम्र में देहांत हो गया. अपने आखिरी दिनों में उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था, "उस समय लोग फुटबॉल को विज्ञापन और पैसे से दूर रखना चाहते थे." लेकिन मास्ट ने हार नहीं मानी. उन्होंने क्लबों की एक सूची बनाई और आइनट्राख्ट ब्राउनश्वाइग से संपर्क किया. दीवालिया होने के कगार पर पहुंच चुका क्लब ऐसे प्रस्ताव को ना कह ही नहीं सकता था. एक सीजन में उन्हें तीन लाख मार्क का फायदा मिला.

मास्ट ने चतुराई दिखाई और क्लब के लोगो में ही फेरबदल कर दिया. लोगो में क्लब के शेर की जगह अब येगरमाइस्टर का बारहसिंघा दिख रहा था. 24 मार्च 1973 को जब क्लब ने शाल्के के खिलाफ मैच खेला तो सबकी नजरें लोगो पर ही टिकी रह गईं. मीडिया में भी यह मामला बहुत उठाया गया. 1,000 से भी ज्यादा अखबारों में इस लोगो की तस्वीर छपी.

Bildergalerie 40 Jahre Trikotwerbung
जर्मन टेलीकॉम कंपनी का विज्ञापनतस्वीर: picture-alliance/dpa

येगरमाइस्टर को जो लोकप्रियता चाहिए थी, उसे मिल गयी. जल्द ही अन्य कंपनियां भी इसमें शामिल हो गयी. अगले ही सीजन में हैम्बर्ग, डुइसबर्ग, ड्यूसलडॉर्फ और फ्रैंकफर्ट के कुल चार क्लबों के पास स्पॉन्सर थे. 1978 तक बुंडसलीगा के सभी 18 क्लबों को कोई ना कोई स्पॉन्सर मिल गया था. दर्शकों को जर्सी पर विज्ञापन देखने की आदत धीरे धीरे ही लग पाई और कंपनियों के बीच होड़ लग गयी. स्पॉन्सरों को विज्ञापनों से इतना फायदा मिलना शुरू हुआ कि धीरे धीरे उन्होंने रकम बढानी शुरू कर दी. 1998 में बोरुसिया डॉर्टमुंड को एस ओलिवर से 1.25 करोड़ की स्पॉन्सरशिप मिली. 2003 में बुंडसलीगा को स्पॉन्सरों के जरिए 50 लाख यूरो मिल रहे थे. आज दस साल बाद यह रकम 65 लाख यूरो को पार कर चुकी है. अब बुंडसलीगा इंग्लिश प्रीमियर लीग के बाद यूरोप की दूसरी सबसे महंगी लीग है.

पिछले 40 साल में क्लब और कंपनियां अपनी गलतियों से भी बहुत कुछ सीख चुकी हैं. अब खिलाड़ियों और क्लबों को स्पॉन्सर के साथ जोड़ कर देखा जाता है. एक वक्त ऐसा भी था जब स्पॉन्सर क्लब बदल लिया करते थे. लेकिन वक्त के साथ उन्हें समझ आया कि यह उनके लिए अच्छा नहीं है. दर्शक स्पॉन्सरों की खिलाड़ियों के साथ ईमानदारी पसंद करते हैं. क्लब भी अब स्पॉन्सरों से मिलने वाली रकम पर इतना निर्भर करने लगे हैं कि उनके बिना उनका गुजारा नामुमकिन सा है. 2001 वेर्डर ब्रेमन को कोई भी स्पॉन्सर नहीं मिला. एक सीजन बिना किसी स्पॉन्सर के बिताना क्लब के लिए सजा जैसा था.

रिपोर्ट: गेर्ड मिषालेक/आईबी

संपादन: आभा मोंढे