जलवायु परिवर्तन से होने वाले हैं ये सात नुकसान
जलवायु परिवर्तन का नुकसान इंसानों के साथ-साथ दूसरी प्रजातियों पर होने लगेगा. पेड़, पौधों से जानवर तक इससे परेशान होने वाले हैं. कई प्रजातियों में तो नर और मादा की जनसंख्या का संतुलन भी बिगड़ने लगा है.
बढ़ जाएंगी जेलीफिश
भूमध्य सागर में मौजूद सारे पर्यटन स्थलों में जेलीफिश की संख्या बढ़ती जा रही है. हालांकि इसके पीछे और भी कारण हो सकते हैं लेकिन जलवायु परिवर्तन एक बड़ा कारण है. गर्म हो रहे समुद्र से जेलीफिश के प्रजनन के लिए नए इलाके बन रहे हैं और इन इलाकों में जेलीफिश का पसंदीदा खाना प्लैंकटन भी मिलता है.
अच्छी लकड़ी कहां मिलेगी
अपनी आवाज के लिए प्रसिद्ध स्ट्राडिवेरिअस लाखों रुपये में बिकती है. लेकिन अब ऐसा कम ही होने वाला है. वजह है लगातार आ रहीं प्राकृतिक आपदाएं. प्राकृतिक आपदाओं में पेड़ टूट रहे हैं. इटली के पानेवेजियो जंगल में मिलने वाली खास लकड़ियां भी इन प्राकृतिक आपदाओं की भेंट चढ़ रही हैं. वाद्य यंत्र बनाने के लिए 150 साल से पुरानी लकड़ी चाहिए. ऐसे में नए पेड़ किसी काम के नहीं हैं.
चैन की नींद तो भूल जाइए
गर्मी की रात में चैन से कैसे सो सकते हैं. अनुमान है कि 2050 तक यूरोपीय शहरों में गर्मियों का औसत तापमान 3.5 डिग्री तक बढ़ जाएगा. इससे ना सिर्फ नींद खराब होगी बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर होगा. इससे बचने का एक ही तरीका है कि छोटे गांवों और कस्बों में चले जाइए जहां इमारतें कम और हरियाली ज्यादा है.
आपकी नाक का क्या होगा
तापमान बढ़ने की वजह से बसंत भी जल्दी आने लगेगा. ये एलर्जी वाले लोगों के लिए बुरी खबर है. कम ठंड की वजह से पेड़ों के पास बढ़ने का ज्यादा समय होगा. इसके चलते परागकण भी ज्यादा समय तक पैदा हो सकेंगे और हवा में मिल सकेंगे. इससे बसंत का मौसम लंबा चलेगा और इंफेक्शन ज्यादा होगा. बची हुई कसर वायु प्रदूषण पूरी कर देगा. आपकी नाक इस सबका सामना करेगी.
मच्छर और बैक्टीरिया
गर्मी से ना सिर्फ हमें पसीना आता है बल्कि इससे हमारे स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है. दुनिया की तीन चौथाई जनसंख्या लू की चपेट में आ जाएगी. तापमान में बढ़ोत्तरी का मतलब डायरिया जैसी बीमारियों में बढ़ोत्तरी. बैक्टीरिया गर्म खाने और पानी में तेजी से पनपते हैं. मच्छर भी गर्मी के साथ बढ़ेंगे और अपने साथ मलेरिया जैसी बीमारियां लेकर आएंगे.
घर कहां बनाएंगे
उत्तरी ध्रुव के इलाके में गर्मियों में मिट्टी बहुत दलदली हो जा रही है. इसके कई कारण हैं. ज्यादा तापमान से जमीन अस्थिर हो जाती है और उसमें दरारें पड़ जाती हैं. ये दरारें घरों और सड़क में भी दिखने लगती हैं. और जब ठंडी जमी हुई मिट्टी पिघलेगी तो इससे कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन निकलेगी जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाएगी.
लिंग क्या होगा, पता नहीं
तापमान की वजह से कई प्रजातियों का लिंग भी प्रभावित हो रहा है. जैसे समुद्री कछुओं का लिंग उस मिट्टी के तापमान से तय होता है जहां उनके अंडे से जाते हैं. कम तापमान से नर बच्चों की ज्यादा संभावना होती है जबकि ज्यादा तापमान मादा बच्चे के लिए अनुकूल है. शोध से पता चला है उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के इलाके में करीब 99 प्रतिशत कछुए मादा हैं. इसकी वजह जलवायु परिवर्तन ही है.
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