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70 पीढ़ी पहले शुरू हुई कट्टर जाति प्रथा

प्रभाकर५ फ़रवरी २०१६

संविधान में जाति के आधार पर भेदभाव पर रोक है, लेकिन समाज और सरकार उसे रोकने में पूरी तरह नाकाम रहे हैं. अब जैव वैज्ञानिकों ने जेनेटिक शोध से पता लगा लिया है कि 70 पीढ़ी से भारत कट्टर जातीयता का गुलाम है.

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Symbolbild Grundsatzurteil USA zur Patentierung menschlichen Erbguts
तस्वीर: Fotolia/majcot

भारत की मौजूदा आबादी पांच प्रकार के प्राचीन आबादी से मिलकर बनी है जो आपस में घुल मिलकर कर रहते थे और हजारों साल से क्रॉस ब्रिडिंग कर रहे थे. भारत में कठोर जाति प्रथा का सूत्रपात कोई 1,575 साल पहले हुआ. गुप्त साम्राज्य ने लोगों पर कठोर सामाजिक प्रतिबंध लगाए थे. उससे पहले लोग निरंकुश तरीके से आपस में घुलते-मिलते और शादी-ब्याह करते थे. पश्चिम बंगाल में नदिया जिले के कल्याणी विश्वविद्यालय की ओर से हुए एक आनुवांशिक अध्ययन में यह बात सामने आई है. इस अध्ययन के नतीजों को हाल ही में सार्वजनिक किया गया है.
अध्ययन
यह अध्ययन कल्याणी के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जेनोमिक्स के वैज्ञानिकों ने किया है. इससे साफ हुआ कि देश में मौजूदा दौर में जाति प्रथा का शोर भले ज्यादा हो, इसके बीज कोई सत्तर पीढ़ियों पहले ही पड़े थे. इससे पहले भारतीय व अमेरिकी वैज्ञानिकों की ओर से किए गए अध्ययनों से इस बात के संकेत मिले थे कि जाति प्रथा शुरू होने के दो हजार साल पहले से ही लोग बिना किसी वर्ग, जाति या सामाजिक बंधन के आपस में घुलते-मिलते व संबंध बनाते थे. इस अध्ययन की अगुवाई करने वाले कल्याणी संस्थान के निदेशक पार्थ मजुमदार कहते हैं, "हमने अब समय की एक ऐसी खिड़की तलाश ली है जिस दौरान देश में जाति प्रथा मजबूत हुई और सगोत्रीय विवाह का दौर शुरू हुआ."

यह अध्ययन सबसे पहले नेशनल एकेडमिक्स आफ साइंसेज नामक एक शोध पत्रिका में छपा था.अपने अध्ययन के दौरान मजुमदार और उनके सहयोगियों अनालाभ बसु व नीता सरकार राय ने भारत की विविधता को ध्यान में रखते हुए बीस अलग-अलग इलाकों से 367 लोगों को चुन कर उनकी आनुवांशिक बनावट का सूक्ष्म अध्ययन किया. इनमें उत्तर भारत के क्षत्रिय, बंगाल और गुजरात के ब्राह्मण, दक्षिण भारत के अय्यर व दूसरे द्राविड़ तबके के लोगों के अलावा माहाराष्ट्र के मराठा और मध्य, दक्षिण भारत और अंडमान निकोबार द्वीप समूह की विभिन्न जनजातियों के लोग शामिल थे.
मकसद
मजुमदार बताते हैं कि इस अध्ययन का मकसद देश की आबादी की आनुवांशिक बनावट का पुनर्निर्माण करना था. इससे उनको पूर्वजों के अलावा एक-दूसरे से आनुवांशिक अंतर का भी पता लगता. साथ ही इसका एक मकसद यह भी जानना था कि एक ही तबके के लोगों के आपस में शादी-विवाह करने की शुरूआत कब से हुई. उनका कहना है कि आनुवांशिक सबूतों से पता चला है कि ऊंची जातियों में अपनी ही जाति में विवाह करने की प्रथा कोई 70 पीढ़ी पहले शुरू हुई. उसके बाद आबादी के विभिन्न समूहों के बीच जीन का आदान-प्रदान अचानक बंद हो गया.

वैज्ञानिकों ने हर पीढ़ी के लिए 22 साल के औसत के आधार पर कहा है कि 1,575 साल पहले लोगों में दूसरी जाति में शादी-विवाह करने की प्रथा लगभग बंद हो गई थी. मजुमदार ने कहा कि इतिहास की पुस्तकों से साफ है कि वह गुप्त साम्राज्य का दौर था. इस अध्ययन से यह भी पता चला कि उस समय देश में हर जगह सगोत्रीय विवाह की प्रथा को तेजी से नहीं अपनाया गया था. बसु कहते हैं, "कम स्तर पर ही सही, लेकिन कुछ जातियों में जीन का आदान-प्रदान जारी रहा. मौजूदा आबादी में भी जीन के उस आदान-प्रदान के संकेत मिलते हैं." मिसाल के तौर पर पूर्वी व पूर्वोत्तर भारत में बंगाल के ब्राह्मण इंडो-तिब्बत समूह के लोगों के साथ आठवीं सदी तक संबंध बनाते रहे थे.
इन वैज्ञानिकों का कहना है कि संभवत: चंद्रगुप्त द्वितीय या कुमारगुप्त प्रथम ने एक विकासशील राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रशासनिक तंत्र का इस्तेमाल करते हुए लोगों पर कई तरह की नैतिक व सामाजिक बंदिशें लगा दीं. उसके बाद ही बेहद कड़ाई से बड़े पैमाने पर सगोत्रीय विवाह की प्रथा शुरू हो गई. इस अध्ययन से देश की आबादी के मूल स्रोत के बारे में भी कई जानकारियां सामने आईं हैं. इसमें कहा गया है कि पूरी आबादी मूल रूप से चार मूल के लोगों से बनी है. इनमें मूल उत्तर और दक्षिण भारतीय समूहों के अलावा मूल तिब्बतो-बर्मन समूह और मूल आस्ट्रो-एशियाटिक समूह शामिल हैं. मजुमदार कहते हैं, "इंडो-यूरोपियन या द्राविड़ भाषाएं बोलने वाले कई भारतीयों में अब भी मूल समूह से विरासत में मिले आनुवांशिक गुण मिलते हैं." उनका कहना है कि जीन के मुकाबले भाषा तेजी से विकसित होती है. भाषा के विकास ने आबादी के कुछ हिस्से की आनुवांशिक पृष्ठभूमि पर परदा डाल दिया है.