1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाज

अफगानिस्तान: महिला अधिकारों को लेकर चिंता

१६ अगस्त २०२१

तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे के साथ ही देश में महिला अधिकारों को लेकर गंभीर चिंता पैदा हो गई है. पिछले 20 सालों में जो तरक्की महिलाओं ने हासिल की है वह हाथों से निकलती दिख रही है.

https://p.dw.com/p/3z2E0
तस्वीर: DW/F. Zahir

अफगानिस्तान में कई लोगों को डर है कि तालिबान महिलाओं को मिले अधिकारों को वापस ले लेगा और जातीय अल्पसंख्यक, पत्रकारों और एनजीओ को उनके काम से रोकेगा. अफगानों की एक पूरी पीढ़ी एक आधुनिक, लोकतांत्रिक देश के निर्माण की उम्मीदों पर पली-बढ़ी. युवाओं ने बेहतर भविष्य के सपने देखे थे लेकिन तालिबान की वापसी जितनी तेजी हुई है वह सपने मुरझा रहे हैं.

रविवार को जब तालिबान काबुल में दाखिल हुआ तो सोशल मीडिया पर एक तस्वीर तेजी से वायरल हुई जिसमें ब्यूटी पार्लर का मालिक महिलाओं के पोस्टर को रंग से छिपा रहा था. युवा जो जींस और शर्ट पहने हुए थे वे अपने घरों की ओर भाग पड़े ताकि वे पारंपरिक सलवार कमीज पोशाक पहन सके.

युवतियों को भविष्य की चिंता

जिन शहरों में तालिबान ने कब्जा कर लिया है वहां सरकारी कार्यालय, दुकानें, बाजार और स्कूल बंद हैं. शहर के लोग ज्यादातर घर के भीतर ही रहना सुरक्षित मान रहे हैं. वहीं काबुल में लोग डर की वजह से शहर से भाग रहे हैं या फिर विदेश जाने के लिए विमान में सवार होने की कोशिश में लगे हुए हैं.

पश्चिमी शहर हेरात में 25 वर्षीय विश्वविद्यालय की छात्रा जो कि एक स्थानीय एनजीओ के लिए काम करती हैं वह बताती हैं कि लड़ाई के कारण वह घर से बाहर नहीं निकल पाई है. पिछले हफ्ते हेरात तालिबान के कब्जे में चला गया था. वह बताती है कि महिलाएं अब सड़क पर कम निकल रही हैं और यहां तक की महिला डॉक्टर भी घर पर रहना चाह रही हैं. उन्होंने हेरात से फोन पर बताया, "मैं तालिबान के लड़ाकों का सामना नहीं करना चाहती." वह तालिबान के डर के कारण अपना नाम नहीं बताना चाहती. वह कहती है, "उनके बारे में मेरी राय अच्छी नहीं है. महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ तालिबान के रुख को कोई नहीं बदल सकता है, वे अभी भी महिलाओं को घर पर रखना चाहते हैं."

उन्होंने इस साल हेरात विश्वविद्यालय में मास्टर डिग्री में दाखिला लेने की योजना बनाई थी, इस विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों में आधे से अधिक लड़कियां हैं. वह कहती हैं, "मुझे नहीं लगता है कि मैं बुर्का पहनने के लिए तैयार हो पाऊंगी."

तालिबान के हवाले अफगानिस्तान

तालिबान पर भरोसा बहुत कम

तालिबान ने अफगानों को आश्वस्त करने के उद्देश्य से बयान जारी कर कहा है सरकार या उसकी सुरक्षा सेवाओं के लिए काम करने वालों पर कोई बदला लेने वाला हमला नहीं होगा. साथ ही उसने कहा कि ''जीवन, संपत्ति और प्रतिष्ठा'' का सम्मान किया जाएगा. तालिबान ने अपने दौर में इस्लामी कानून की सख्त व्याख्या लागू की थी, जिसमें सार्वजनिक रूप से कोड़े मारना और पत्थर मारना जैसी सजाएं देना भी शामिल था.

2001 में अमेरिका के हमले के बाद वहां महिलाओं पर अत्याचार बंद हो पाया था. अमेरिकी नेतृत्व वाली विदेशी सेना की वापसी के साथ ही तालिबान ने तेजी से क्षेत्रीय बढ़त हासिल की और अब पूरे देश पर तालिबान का कब्जा है. तालिबान शासन के दौरान महिलाओं को शरीर और चेहरे को बुर्के से ढकने पड़ते थे. उन्हें शिक्षा से वंचित किया गया और काम नहीं करने दिया जाता था. महिलाएं बिना किसी पुरुष रिश्तेदार के घर से बाहर नहीं जा सकती थीं.

20 साल की आयु वर्ग की युवतियां तालिबान के शासन के बिना बड़ी हुईं, अफगानिस्तान में इस दौरान महिलाओं ने कई अहम तरक्की हासिल की. लड़कियां स्कूल जाती हैं, महिलाएं सांसद बन चुकी हैं और वे कारोबार में भी हैं. वे यह भी जानती हैं कि इन लाभों का उलट जाना पुरुष-प्रधान और रूढ़िवादी समाज में आसान है.

ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि तालिबान उन पत्रकारों और खासकर महिला पत्रकारों को धमकी देते हैं और हिरासत में लेते हैं जो उनकी आलोचना करते हैं.

एए/सीके (एपी)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी