तालाबंदी में मजदूरों की बेबसी की तस्वीरें
भारत में 24 मार्च से अगले 21 दिनों के लिए लॉकडाउन है लेकिन उसके अगले दिन 25 मार्च से ही लोग पैदल अपने गांवों और कस्बों की तरफ जाने लगे. यह सिलसिला जारी है. देखिए...किस तरह से लोग जान जोखिम में डाल कर सफर कर रहे हैं.
घर जाने की बेताबी क्या होती है जरा इन लोगों से पूछिए. यह समूह किसी भी तरह से अपने घर, अपने गांव जाना चाहता है. जिंदगी को लॉकडाउन से बचाने लोग सिर पर गठरी और गोद में बच्चा लिए निकल पड़े हैं.
परेशान हाल मजदूर और उनके परिवार पिछले कुछ दिनों से इसी तरह से बदहवास हैं, पहले जनता कर्फ्यू और उसके बाद 21 दिनों का लॉकडाउन. उन्हें कोई भी गाड़ी नजर आती है तो वे उसे रुकने का इशारा करते हैं.
कुछ लोगों के पैरों में चलते-चलते छाले पड़ गए हैं. हाथों में एक बैग है. पानी-बिस्कुट के सहारे वह सफर तय करना चाहते हैं.
मुंबई, अहमदाबाद, सूरत, गुड़गांव, दिल्ली, नोएडा में हजारों लोग किसी तरह से अपने घरों को पहुंचना चाहते हैं. वे कहते हैं कि शहर में अब रहकर क्या करना जब कोई काम ही नहीं है.
कई लोगों का कहना है कि वे पिछले कुछ दिनों से भरपेट खाना नहीं खा पाए हैं. उन्होंने बताया कि वे जहां काम करते थे, वहां से उन्हें पांच-पांच सौ रुपये देकर जाने को कह दिया गया.
यह परिवार नोएडा में रहता था, लेकिन तालाबंदी की वजह से उसके पास काम नहीं है और ना ही इतने पैसे कि आगे का खर्च निकल पाए. इसलिए पति-पत्नी ने झांसी के लिए पैदल ही चलने का फैसला किया.
कुछ दिनों पहले तक यह लोग इस शहर का हिस्सा हुआ करते थे, लेकिन अब उन्हें इस शहर में अपना भविष्य नजर नहीं आता है. वे कहते हैं, “कोरोना से पहले, हमें भूख मार डालेगी.“
कई प्रवासी मजदूर छोटे बच्चे और महिलाओं के साथ सफर कर रहे हैं. सफर में जंगल से भी गुजरना होगा और सुनसान हाइवे से भी. खतरों के साथ उन्हें सैकड़ों किलोमीटर सफर तय करना है.
जो लोग अपने गांवों के लिए निकले हैं, उनके पास खाने-पीने का पर्याप्त इंतजाम नहीं है. ऐसे में कुछ लोग उन्हें खाने के पैकेट देकर मदद कर रहे हैं.
राज्य सरकारों ने ऐसे लोगों के खाने पीने का इंतजाम किया है. उत्तर प्रदेश सरकार ने फंसे हुए लोगों को निकालने के लिए बसों का इंतजाम किया है. दिल्ली सरकार ने लोगों से अपील की है कि वे जहां हैं, वहीं रहें.