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गया अरबों जुटाने का जमाना, हांफने लगे हैं भारत के यूनिकॉर्न

१९ मई २०२२

भारत के नेताओं ने जोर-शोर से यूनिकॉर्न स्टार्टअप वाला देश होने का प्रचार दुनियाभर में किया है. लेकिन ये यूनिकॉर्न अब हांफते दिखाई दे रहे हैं. नौकरियां जा रही हैं और कंपनियां लड़खड़ा रही हैं.

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शेयर बाजार में पेटीएम का बुरा हाल हो चुका है
शेयर बाजार में पेटीएम का बुरा हाल हो चुका हैतस्वीर: Rodrigo Reyes Marin/ZUMA Wire/picture alliance

दुनिया की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी एमेजॉन के प्रतिद्वन्द्वी के रूप में देखी गई भारतीय स्टार्टअप कंपनी मीशो में पिछले साल सॉफ्टबैंक और फिडेलिटी जैसे बड़े निवेशकों ने करोड़ों का निवेश किया तो कंपनी की बाजार कीमत दोगुनी से ज्यादा बढ़कर पांच अरब डॉलर यानी साढ़े तीन खरब रुपये पर पहुंच गई थी.

मीशो इतना ज्यादा निवेश पाने वाली अकेली भारतीय कंपनी नहीं थी. भारत में पिछला साल स्टार्टअप कंपनियों में भारी-भरकम निवेश का साल था. सफलता की लहर पर सवार इन कंपनियों ने रिकॉर्ड 35 अरब डॉलर यानी लगभग 27 खरब रुपये का निवेश जुटाया था. लेकिन सफलता की यह लहर जिस तेजी से आई थी, उसी तेजी से लौट भी चुकी है.

निवेश क्या, कर्ज की नौबत

वेंचर कैपिटल फर्म इंडियो कोशंट के आनंद लूनिया कहते हैं कि लहर का ऐसा लौटना तो कभी नहीं देखा था. 2012 से 70 से ज्यादा कंपनियों में निवेश कर चुकी इस कंपनी इंडिया कोशंट के लूनिया बताते हैं, "बीते पांच-छह साल में हमने ऐसी मंदी नहीं देखी थी. यह क्रूर होने वाला है. मैं तो बहुत सारे जॉम्बी यूनिकॉर्न देखने की तैयारी कर रहा हूं. ऐसी कंपनियां जो यूनिकॉर्न बन गईं लेकिन उनके पास कोई बिजनेस मॉडल नहीं है. उन्होंने लोगों की भर्ती बंद कर दी है. वे मर नहीं रही हैं लेकिन जल्दी ही अप्रासंगिक हो जाएंगी.”

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मीशो की हालत ऐसी ही है. अब वह खर्चा कम करने और कर्ज पाने की कोशिश में लगी है. हालात के जानकार कम से कम दो लोगों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया है कि हर महीने 45 मिलियन डॉलर का खर्च निवेशकों को चिंतित कर रहा है और हाल ही में एक अरब डॉलर जुटाने की उसकी कोशिश नाकाम हो गई. हालांकि मीशो ने ऐसी किसी बात से इनकार किया है. एक बयान में कंपनी ने कहा कि यह बात तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है कि उसकी धन जुटाने की कोशिश नाकाम हुई और सारी बात "सही साझीदार खोजने, सही शर्तों और सही कीमत” पर निवेश की है.

लगातार बैठ रही हैं कंपनियां

भारत में टेक कंपनियों के शेयरों की कीमतें लगातार गिर रही हैं. लेकिन निवेशकों का डर सिर्फ शेयरों की घटती कीमतें ही नहीं हैं. दो वेंचर कैपिटल निवेशकों के मुताबिक कॉरपोरेट गवर्नेंस को लेकर भी चिंता बढ़ी है. ये निवेशक कहते हैं कि चिंता इस बात की भी है कि इन कंपनियों के बाजार-भाव पहले से ही बहुत ज्यादा हैं, जबकि रेवन्यू की संभावनाएं कम हैं.

आठ वेंचर कैपिटल और स्टार्टअप एग्जेक्यूटिव कहते हैं कि निवेशकों में यह डर बढ़ रहा है कि कम होती फंडिंग कंपनियों के बाजार भाव को कम कर देगी, जिससे उनका विकास रुकेगा और लोगों की नौकरियां जाएंगी. लूनिया कहते हैं कि उनकी कंपनी ने जहां भी स्टार्टअप में निवेश किया है, वहां बताया है कि इस बात को सुनिश्चित किया जाए कि कम से कम 18 महीने का खर्च चलाने के लिए धन मौजूद हो, और जरूरी हो तो इसके लिए लोग व खर्च कम करें.

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पिछले हफ्ते ही भारत-पे नामक स्टार्टअप ने ऐलान किया था कि वह अपनी प्रशासनिक व्यवस्था में बदलाव करेगी. सेकोइया कैपिटल का निवेश पाने वाली भारत-पे ने अपनी आंतरिक समीक्षा के बाद यह ऐलान किया है. ऑनलाइन ट्यूशन उपलब्ध कराने वाले एक अन्य स्टार्टअप वेदांतु ने इसी मीहने दो सौ लोगों को नौकरी से निकाल दिया.

एक अरब डॉलर के बाजार भाव वाले वेदांतु को टाइगर ग्लोबल का निवेश मिला था. उसने कहा कि विकास के अनुमान के आधार पर लोगों को नौकरी से हटाने का फैसला किया गया. बुधवार को वेदांतु ने 424 और लोगों को हटाने का ऐलान किया. उसने कहा कि बाह्य बाजार माहौल को देखते हुए ऐसा लगता है कि आने वाले महीनों में धन की कमी होगी.

अब रिस्क नहीं लेना चाहते निवेशक

अब तक टाइगर ग्लोबल बड़े भारतीय स्टार्टअप में निवेश कर रही थी लेकिन अब उसने बैंकों से कहा है कि वह सिर्फ उन कंपनियों में निवेश पर विचार करेगी जिनका बाजार भाव 20 करोड़ डॉलर यानी करीब डेढ़ अरब रुपये से कम हो. मामले से परिचित दो अधिकारियों ने बताया कि कंपनी अपना रिस्क कम करना चाह रही है. टाइगर ग्लोबल ने इस बारे में औपचारिक रूप से भेजे गए सवालों के जवाब नहीं दिया.

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भारत में 60 हजार से ज्यादा स्टार्टअप शुरू हो चुके हैं और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि हर कुछ हफ्ते में नए यूनिकॉर्न सामने आ रहे हैं. यूनिकॉर्न उन स्टार्टअप कंपनियों को कहा जाता है जिनका बाजार भाव एक अरब डॉलर यानी करीब 75 अरब रुपये से ज्यादा हो. एक साल से ज्यादा समय में अप्रैल पहला ऐसा महीना बीता है जबकि एक भी  कंपनी यूनिकॉर्न नहीं बनी.

मार्च और अप्रैल में भारतीय स्टार्टअप कंपनियों ने 5.8 अरब डॉलर यानी लगभग साढ़े चार खरब रुपये का निवेश जुटाया, जो पिछले साल की इसी अवधि से लगभग 15 प्रतिशत कम है.

गया आसान धन का जमाना

ऐसा नहीं है कि बाकी देशों में स्टार्टअप कंपनियों की स्थिति बेहतर है. यूक्रेन युद्ध और ब्याज दरों में वृद्धि ने निवेश को बहुत अधिक प्रभावित किया है. भारत के टेक सेक्टर में सबसे बड़ा निवेशक जापान का सॉफ्टबैंक है. उसने 14 अरब डॉलर का निवेश किया है. लेकिन उसने कहा कि निवेश करने वाली उसकी शाखा विजन फंड को 26.2 अरब डॉलर का नुकसान हो चुका है.

सॉफ्टबैंक ने पेटीएम में निवेश किया था और पिछले साल नवंबर में पेटीएम का शेयर अपनी शुरुआत में ही 27 प्रतिशत तक लुढ़क गया. तब से पेटीएम का शेयर 62 प्रतिशत तक गिर चुका है. यही जोमैटो और नाइका का है जिन्होंने शुरुआत तो शानदार की थी लेकिन अपनी ऊंचाई से वे क्रमशः 67 और 37 प्रतिशत नीचे जा चुके हैं.

स्टार्टअप स्थापित करने वाले तीन लोगों ने बताया कि निवेश उन्हें कह चुके हैं कि आसान धन का जमाना अब जा चुका है और मुनाफा कमाना है तो साफ रास्ता साबित करना होगा.

वीके/एए (रॉयटर्स)