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समुद्र के अंदर बसे जीव कैसे निपटेंगे ग्लोबल वॉर्मिंग से?

महेश झा२८ जून २०१६

जीवन के स्रोत सागर ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते तबाही की राह पर चलें, इससे पहले वैज्ञानिक इस विनाश लीला पर ब्रेक लगाना चाहते हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/robertharding/A. Stewart

हेल्महोल्त्स सेंटर के समुद्रविज्ञानी इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि मौसम में बदलाव का समुद्र के नीचे के जीवन पर क्या असर होता है. खासकर कार्बन डाय ऑक्साइड समुद्री जीवन को कैसे प्रभावित कर रहा है. वैज्ञानिकों ने पाया है कि पानी में कार्बन डाय ऑक्साइड मिला देने से उसका PH वैल्यू को गिर जाता है और समुद्र का पानी अम्लीय हो जाता है. इसका असर समुद्री जलजीवों पर साफ दिखाई दे रहा है. अपने प्रयोगों में वैज्ञानिकों ने पाया है कि अम्लीय पानी में सीप का आकार छोटा हो जाता है. सीप, अल्गी और बैक्टीरिया समुद्र के संवेदनशील जीवों में शामिल हैं. इनमें से एक भी कारक बदलता है तो चेन रिएक्शन शुरू हो जाता है जो फिर सबको प्रभावित करेगा.

समुद्रविज्ञानी यह पता कर रहे हैं कि 2050 में पूर्वी सागर में कैसी परिस्थितियां हो सकती हैं. यदि समुद्र में जीवन खत्म हो जाएगा तो उसका असर दुनिया के पोषण पर पड़ेगा. समुद्रविज्ञानी प्रो. मार्टिन वाल कहते हैं,”समुद्र की हालत खराब हो सकती है, वह कम ऑक्सीजन वाला बदबूदार शोरबा बन सकता है. उम्मीद करें कि यह संतुलन लंबे समय तक बना रहेगा.“

देखें, प्लास्टिक मुक्त महासागर

समुद्री पानी के अम्लीकरण का पौधों पर क्या असर होता है, यह समुद्री घास के साथ यह टेस्ट से पता चला है. यदि pH अत्यंत कम हो जाता है तो प्रतिरोधी तत्वों का उत्पादन रुक जाता है. इससे समुद्री दीमक जैसे दुश्मनों के लिए घास स्वादिष्ट आहार बन जाता है. मार्टिन वाल कहते हैं कि जीवों की कोई 20 प्रजातियां हैं, जो सिर्फ समुद्र में पाई जाती हैं. और एक भी प्रजाति प्रभावित होती है तो पूरा जीवन प्रभावित होगा.

अत्यंत छोटे जीव भी परिवर्तन पर प्रतिक्रिया दिखाते हैं. रिसर्चर इस बात को जानने की कोशिश में लगे हैं कि कौन से जीव विभिन्न परिस्थितियों में कितनी तेजी से बढ़ते हैं. ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ने पर उन जीवों पर क्या असर होगा? प्रोफेसर वाल बताते हैं, “यदि हम कार्बन डाय ऑक्साइड का उत्सर्जन जारी रखते हैं, और हम यही कर रहे हैं, तो निश्चित तौर पर समुद्र का अम्लीकरण बढ़ेगा, फिर ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ेगी, फिर दबाव डालने वाले दूसरे कारक भी बढ़ेंगे. हम सिर्फ उम्मीद कर सकते हैं कि यह इतनी धीमी गति से हो कि जीव अपने को उसके अनुरूप ढाल सकें.“

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