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हजारों नाबालिग रिफ्यूजी आईएस के निशाने पर

ऊटा श्टाइनवेयर/ईशा भाटिया२२ जुलाई २०१६

हाल ही में एक 17 साल के अफगान रिफ्यूजी ने जर्मनी में एक लोकल ट्रेन में हमला किया और चार लोगों को गंभीर रूप से जख्मी किया. इसके बाद से सवाल उठ रहे हैं कि यह लड़का अकेला अफगानिस्तान से जर्मनी कैसे आया.

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Deutschland Unbegleitete minderjährige Flüchtlinge
तस्वीर: picture-alliance/dpa/W. Steinberg

इस्लामिक स्टेट ने इस नाबालिग लड़के का एक वीडियो जारी कर हमले की जिम्मेदारी ली है. लेकिन अब तक यह साफ नहीं हो पाया है कि लड़का कट्टरपंथियों के साथ कैसे जा मिला. हमले के बाद से जर्मनी में मौजूद रिफ्यूजियों के बारे में फिर से तरह तरह के सवाल उठने लगे हैं. हमने कुछ सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की.

जर्मनी में इस तरह के और कितने नाबालिग रिफ्यूजी मौजूद हैं?

सरकारी आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2016 तक अकेले जर्मनी पहुंचे नाबालिगों की संख्या 60 हजार से ज्यादा है. इनमें से अधिकतर की उम्र 16 या 17 बताई जाती है. शरणार्थियों के लिए जिम्मेदार सरकारी विभाग के अनुसार पिछले साल ही नाबालिगों की ओर से जर्मनी में असायलम लेने के लिए 14 हजार 500 आवेदन आ चुके हैं. 2014 की तुलना में यह संख्या तिगुनी से भी ज्यादा है.

कहां से आ रहे हैं नाबालिग शरणार्थी?

2015 के आंकड़ों पर नजर डाली जाए, तो सबसे अधिक आवेदन आए हैं अफगानिस्तान, सीरिया, इरिट्रिया, इराक और सोमालिया से. हर तीसरा आवेदन अफगानिस्तान के नाबालिगों का है. सीरिया और इराक में छिड़ी जंग के बाद से जर्मनी में आ रहे शरणार्थियों की ओर पूरी दुनिया का ध्यान गया है. ऐसा नहीं है कि इन लोगों के आने के बाद से ही जर्मनी में शरणार्थियों पर चर्चा शुरू हुई. इसके विपरीत स्थिति को इस तरह से समझना जरूरी है कि इन लोगों ने जर्मनी की शरणार्थी नीति के चलते ही यहां का रुख किया. जर्मनी युद्धग्रस्त इलाके के लोगों को जान बचाने के लिए अपने यहां पनाह देता है.

जर्मनी आने के बाद क्या होता है?

सबसे पहले इन नाबालिगों के लिए रहने की जगह का इंतजाम किया जाता है. अगर उनके कोई रिश्तेदार जर्मनी में रहते हैं, तो बच्चों को उनके पास भेज दिया जाता है. अगर उनका जर्मनी में कोई नहीं है, तो फिर उन्हें किसी ऐसे परिवार के साथ रहने भेज दिया जाता है, जो उनकी देखभाल करेगा. कुछ मामलों में उन्हें यूथ सेंटर में अन्य नाबालिग रिफ्यूजियों के साथ भी रखा जाता है. देश में आने के बाद 14 दिन के भीतर तय किया जाता है कि उन्हें कहां भेजना है. कोशिश होती है देश के सभी राज्यों में उन्हें बराबरी से बांटने की ताकि कोई एक राज्य किसी एक देश से आने वालों का गढ़ ना बन जाए. हालांकि एक तथ्य यह भी है कि कागजी काम में कई बार इतना वक्त लग जाता है कि इनमें अपने भविष्य को ले कर अनिश्चितता बनी रहती है.

क्या वाकई ये सब नाबालिग ही होते हैं?

जर्मन सरकार अपने देश में आने वाले लोगों के सभी कागजों की जांच करती है. लेकिन जिन देशों से ये आते हैं, वहां जाली कागज बनवाना भी कोई मुश्किल काम नहीं है. सरकार भी यह बात जानती है. इसलिए सिर्फ कहे पर भरोसा नहीं करती. जिन लोगों पर शक होता है उनके कई तरह के मेडिकल टेस्ट किए जाते हैं. कुछ मनोवैज्ञानिक परीक्षण किए जाते हैं, दांतों का एक्सरे निकाल कर उम्र का पता किया जाता है. हालांकि कोई भी मेडिकल टेस्ट सिर्फ एक अनुमान ही दे सकता है, सटीक उम्र नहीं बता सकता.

क्या ये नाबालिग कट्टरपंथियों के निशाने पर नहीं हैं?

डॉयचे वेले ने जब यही सवाल जर्मनी की खुफिया एजेंसी से किया, तो आधिकारिक जवाब मिला कि उनके पास ऐसे कोई सबूत नहीं हैं जो इस ओर इशारा करते हों कि इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी गुट इन नाबालिगों के साथ संपर्क साधने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन इसके विपरीत अपना नाम ना बताने की शर्त पर एक प्रवक्ता ने यह भी कहा कि उन्हें करीब 300 ऐसे मामलों की जानकारी है, जहां कट्टरपंथियों ने शरणार्थी शिविरों में रह रहे युवाओं से संपर्क साधने की कोशिश की है.

क्या इससे बचने के लिए कुछ किया जा रहा है?

शरणार्थियों और उत्पीड़न के शिकार लोगों की मदद के लिए एक सेंटर चलाने वाले युएर्गन सॉयर का कहना है कि पिछले एक साल में कम से कम 180 नाबालिग रिफ्यूजियों को मनोवैज्ञानिकों के पास भेज उनकी काउंसलिंग कराई गयी है. वे बताते हैं कि ये ऐसी उम्र में हैं जहां "मैं कहां हूं और क्यों हूं" जैसे सवाल ज्यादा परेशान करते हैं. साथ ही ये अपने देशों में ऐसे दृश्य देख कर आए हैं, जो इन्हें लगातार परेशान करते रहते हैं. ऐसे में अगर जर्मनी में नए जीवन की आस लिए इन युवाओं को यहां भी ठीक से अपनाया ना जाए, तो इसके परिणाम बुरे हो सकते हैं. जर्मन सरकार भी यह बात बखूबी जानती है और इसीलिए समाज में शरणार्थियों के समेकन पर खूब जोर दे रही है.