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समाज

दोस्त बनाने और बोलने से भी डरते हैं चीनी छात्रः रिपोर्ट

१ जुलाई २०२१

मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा है कि ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले चीनी मूल के वे विद्यार्थी और शिक्षक जो चीन के आलोचक हैं, परेशान किए जा रहे हैं.

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प्रतीकात्मक तस्वीर, क्वीन्सलैंड यूनिवर्सिटी, ब्रिसबेनतस्वीर: picture-alliance/Newscom/R. Ben-Ari

बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालय चीन के आलोचक शिक्षकों और छात्रों की स्वतंत्रता की सुरक्षा करने में नाकाम रहे हैं. और, इन छात्रों को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की आलोचना करने के नतीजे भुगतने पड़ रहे हैं.

ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि जिन छात्रों और शिक्षकों ने लोकतंत्र के समर्थन में आंदोलन में हिस्सा लिया या उनका समर्थन किया, उन्हें चीन सरकार और उसके समर्थकों द्वारा परेशान किया जा रहा है.

‘हमारे डर को वे नहीं समझते'

102 पेज की अपनी रिपोर्ट ‘दे डोंट अंडरस्टैंड द फीयर वी हैव' में संस्था ने विस्तार से बताया है कि कैसे चीन ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों में पढ़ने और पढ़ाने वोलों को प्रभावित और परेशान कर रहा है. रिपोर्ट कहती है कि चीन की सरकार हांग कांग और बीजिंग से इन लोगों पर निगरानी रखती है, जिसके बारे में आमतौर पर लोगों को पता भी होता है, जिस कारण वे डर में रहते हैं.

रिपोर्ट कहती है, "बहुत से लोग अपना व्यवहार बदल लेते हैं. अपने ही सहपाठियों की धमकियों व प्रताड़ना से बचने के लिए और चीन में अधिकारियों को शिकायत कर दिये जाने से बचने के लिए अपने आप पर ही पाबंदियां लगा लेते हैं.”

जानिए, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की कहानी

रिपोर्ट तैयार करने वाली रिसर्चर सोफी मैकनील कहती हैं, "ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों का प्रशासन चीन से आने वाले विद्यार्थियों के अधिकारों की सुरक्षा का अपना फर्ज निभाने में नाकाम हो रहा है. ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों से मिलने वाली फीस पर निर्भर करते हैं जबकि चीनी अधिकारियों और उनके लोगों द्वारा छात्रों को दी जा रही प्रताड़नाओं के प्रति आंखें मूंदे रहते हैं.”

मैकनील ने कहा कि विश्वविद्यालयों को इस बारे में आवाज उठानी चाहिए और इन छात्रों व शिक्षकों की अकादमिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए.

खुद पर ही पाबंदी

अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए संस्था ने लोकतंत्र का समर्थन करने वाले 24 छात्रों से बात की, जो चीन व हांग कांग से आते हैं. इसके अलावा उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों में पढ़ा रहे 22 अध्यापकों से भी बात की. पिछले एक साल से ज्यादा समय से ऑस्ट्रेलिया की सीमाएं बंद हैं और नए छात्र यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए नहीं आ रहे हैं, लेकिन तब भी शिक्षा क्षेत्र देश के सबसे बड़े आर्थिक क्षेत्रों में शामिल है. बहुत से छात्र ऑनलाइन ही पढ़ाई कर रहे हैं.

ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि कम से कम तीन मामले उसे ऐसे मिले जिनमें ऑस्ट्रेलिया में पढ़ने वाले छात्रों के परिवारों से चीनी पुलिस ने संपर्क किया. कम से कम एक विद्यार्थी को ट्विटर अकाउंट खोलने और लोकतंत्र समर्थक संदेश पोस्ट करने के बाद पुलिस ने जेल में डाल देने की धमकी दी.

तस्वीरों मेंः चीन के कूटनीतिक विवाद

एक अन्य छात्र ने ऑस्ट्रेलिया में अपने सहपाठियों के सामने लोकतंत्र का समर्थन करने की बात कही तो घर लौटने पर उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया गया. संस्था ने जिन छात्रों से बातचीत की है, उन्होंने अधिकारियों द्वारा चीन में अपने परिवार को प्रताड़ित किए जाने का भय जताया. उन्होंने कहा कि वे क्लास में कुछ कहने से पहले भी सौ बार सोचते हैं और अब दोस्त बनाने के बारे में भी सोचने लगे हैं.

एक चीनी छात्र ने कहा, "मैंने खुद पर ही पाबंदी लगा ली है. यही सच्चाई है. मैं ऑस्ट्रेलिया आ गया हूं लेकिन आजाद नहीं हूं. मैं यहां कभी राजनीति की बात नहीं करता.”

सरकार की जिम्मेदारी

मैक्नील बताती हैं कि परेशान छात्रों में से ज्यादातर ने इस बारे में यूनिवर्सिटी प्रशासन से बात नहीं की. वह कहती हैं, "उन्हें लगता है कि उनके विश्वविद्यालय चीन की सरकार के साथ अच्छे रिश्ते बनाकर रखने की परवाह करती हैं ना कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थक छात्रों को अलग-थलग करने की.”

जिन शिक्षकों से बातचीत की गई, उनमें से आधे से ज्यादा को इसलिए चुना गया था कि वे या तो चीनी मूल के हैं या फिर चीन मामलों के विशेषज्ञ हैं. उन्होंने कहा कि वे चीन के बारे में बात करते हुए अपने आप पर पाबंदी लगाकर ही रखते हैं.

हालांकि मेलबर्न यूनिवर्सिटी के राजनीति विभाग में चीनी राजनीति पढ़ाने वाले प्रोफेसर प्रदीप तनेजा कहते हैं कि उनका ऐसा कोई अनुभव नहीं है. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "मैंने तो कभी अपने ऊपर किसी तरह की पाबंदी नहीं लगाई है.”

प्रोफेसर तनेजा हालांकि जोर देकर कहते हैं कि ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की आजादी होनी चाहिए और ऐसा सुनिश्चित करना यूनिवर्सिटी प्रशासन व सरकार की जिम्मेदारी है. उन्होंने कहा, "कुछ छात्रों ने कहा है कि वे चीन समर्थक छात्रों से खतरा महसूस करते हैं. अगर ऐसा है तो ऑस्ट्रेलिया की सरकार, राज्यों की सरकारों और यूनिवर्सिटी प्रशासन को सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसा न हो. किसी विदेशी सरकार को अधिकार नहीं होना चाहिए कि यहां रहने वाले लोगों की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सके. और यह सुनिश्चित करना सरकारों की जिम्मेदारी है.”

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