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समाज

ऑस्ट्रेलिया के सबसे बड़े राज्य में स्कूलों में कृपाण बैन

विवेक कुमार, सिडनी से
१८ मई २०२१

ऑस्ट्रेलिया के सबसे बड़े राज्य न्यू साउथ वेल्स ने अपने स्कूलों में सिख धार्मिक चिह्न कृपाण लेकर आने पर प्रतिबंध लगा दिया है. एक स्कूल में एक छात्र द्वारा कथित तौर पर कृपाण से दूसरे को घायल करने के बाद यह फैसला लिया गया.

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तस्वीर: Money Sharma/AFP/Getty Images

6 मई को सिडनी के ग्लेनवुड हाई स्कूल में पुलिस और एंबुलेंस बुलाई गई. एक छात्र लहुलुहान पड़ा था. पुलिस को बताया गया कि एक अन्य छात्र ने उसे चाकू मार दिया था. 16 साल के छात्र को फौरन अस्पताल ले जाया गया जबकि 14 साल के एक छात्र को गिरफ्तार कर लिया गया. उस पर जानलेवा हमला करने के आरोपों में मुकदमा दर्ज किया गया है और फिलहाल वह जमानत पर है.

दो छात्रों के बीच झगड़े का मामला लगने वाले इस वाकये में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लहर पैदा कर देने की संभावना है क्योंकि इस घटना के मूल में धर्म भी है बुलिंग भी. आरोप है कि सिख समुदाय से आने वाले आरोपी छात्र ने अपनी कृपाण से सहपाठी पर हमला किया था. इसके बाद ऑस्ट्रेलिया में स्कूलों में कृपाण  लेकर आने की इजाजत पर विवाद हो रहा है. न्यू साउथ वेल्स की मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्हें तो हैरत है कि छात्र स्कूलों में चाकू लेकर आ सकते हैं.

सरकार चिंतित

मीडिया से बातचीत में मुख्यमंत्री ग्लैडिस बेरेजिकलियान ने कहा, "छात्रों को किसी भी आधार पर स्कूलों में चाकू लेकर आने की इजाजत नहीं होनी चाहिए. मुझे तो लगता है कि सामान्य समझ भी यही कहती है. भले ही वे उन्हें हथियार के तौर पर इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, दूसरे उनसे ले सकते हैं. मुझे तो जब यह पता चला तो बड़ी हैरत हुई.”

इस बयान के एक ही दिन बाद ऑस्ट्रेलिया के सबसे बड़े राज्य ने स्कूलों में किसी भी तरह के चाकू को लाने पर प्रतिबंध लगा दिया. राज्य की शिक्षा मंत्री सारा मिचेल ने कहा कि एक गंभीर घटना ने कानून पर कई वाजिब सवाल उठाए हैं, खासकर समरी ऑफेंसेस ऐक्ट को लेकर जिसके तहत ‘वाजिब कारणों से' किसी व्यक्ति को सार्वजनिक स्थानों पर चाकू लेकर जाने की अनुमति दी जा सकती है.

उन्होंने कहा, "इसलिए हमने इस कानून की समीक्षा करने का फैसला किया है. हम देखेंगे कि क्या बदलाव किए जा सकते हैं ताकि स्कूलों में छात्रों और स्टाफ की सुरक्षा सुनिश्चित कि जा सके. तब तक हम सरकारी स्कूलों में किसी भी तरह के चाकू को प्रतिबंधित कर रहे हैं, फिर चाहे वह वाजिब धार्मिक कारणों से ही क्यों न हो.” मिचेल ने कहा कि इस मुद्दे पर बातचीत में सिख समुदाय को भी वह हिस्सेदार बनाना चाहती हैं.

सिख नाराज

ऑस्ट्रेलिया का सिख समुदाय सरकार के इस फैसले से ज्यादा खुश नहीं है. ऑस्ट्रेलियन सिख एसोसिएशन के अध्यक्ष रवींद्रजीत सिंह कहते हैं कि कृपाण को सिख सदियों से एक धार्मिक चिह्न के रूप में धारण कर रहे हैं. वह कहते हैं, "ब्रिटेन, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और अन्य कई देशों की सेनाओं ने पहले और दूसरे विश्व युद्ध में सिखों की बहादुरी को सम्मान देने के लिए कृपाण को मान्यता दी है. इसमें गलीपली की लड़ाई भी शामिल है.” पहले विश्व युद्ध में तुर्की के गलीपली में हुई लड़ाई में बहुत से सिख ऑस्ट्रेलिया की ओर से लड़े थे.

सिंह कहते हैं कि ग्लेनवुड हाई स्कूल की घटना दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन उसकी वजहों में बुलिंग भी हो सकती है जिसने एक बच्चे को अपने सहपाठी पर हमला करने के लिए उकसाया हो. वह बताते हैं, "ऑस्ट्रेलियन सिख एसोसिएशन पिछले हफ्ते से शिक्षा मंत्रालय के संपर्क में है. हम स्कूल की प्रिंसिपल से भी मिले थे और कृपाण के मुद्दे पर बात की थी. हम सरकार और पुलिस के साथ हर तरह की बातचीत के लिए तैयार हैं ताकि इस मुद्दे का हल धार्मिक भावनाओँ को ध्यान में रखते हुए निकाला जा सके.”

ग्लेनवुड सिडनी के पश्चिम में एक बड़ा इलाका है. ब्लैकटाउन काउंसिल के तहत आने वाले इस इलाके में सिख समुदाय की बड़ी आबादी रहती है. इसी इलाके में ऑस्ट्रेलिया के प्रमुख गुरुद्वारों में से एक पार्कली गुरुद्वारा भी है. ब्लैकटाउन के काउंसलर मनिंदर सिंह प्रतिबंध से सहमत नहीं हैं. वह कहते हैं कि सरकार को स्कूलों में हो रही घटनाओं को धार्मिक स्वतंत्रता पर पाबंदियां लगाने के बहाने के तौर पर इस्तेमाल करने से बचना चाहिए और उनके कारणों की जड़ में जाना चाहिए.

वह कहते हैं, "ब्लैकटाउन ऑस्ट्रेलिया के सबसे बहुसांस्कृतिक इलाकों में से है. यहां 188 देशों के लोग रहेत हैं. वे सिख धर्म के चिह्नों के बारे में अच्छे से जानते हैं. इस तरह के प्रतिबंध नई बहस को जन्म देंगे और असली मुद्दों से ध्यान भटकाएंगे.”

स्कूलों में बुलिंग

सिख समुदाय का कहना है कि 6 मई की घटना परेशान करने के कारण हुई है. हालांकि सीधे तौर पर कोई भी यह बात कहने से बच रहा है लेकिन नाम न छापने की शर्त पर कुछ लोग कहते हैं कि आरोपी छात्र को घायल छात्र लगातार परेशान कर रहा था जिसकी उसने शिकायत भी की थी. हालांकि डॉयचे वेले इन आरोपों की पुष्टि नहीं कर सकता. इस बारे में एक ऑनलाइन याचिका भी शुरू की गई है जिस पर 16 हजार से ज्यादा लोग दस्तखत कर चुके हैं. इस याचिका में सिखों के खिलाफ बुलिंग रोकने और स्कूल पर कार्रवाई करने की मांग की गई है. काउंसलर मनिंदर सिंह कहते हैं, "बुलिंग के कारण विभिन्न धर्मों के कई मासूम छात्र परेशान हुए हैं. स्कूल प्रशासन को इस घटना को गंभीरता से लेना चाहिए.”

ठोस नीति की जरूरत

रवींद्रजीत सिंह कहते हैं कि सिखों को कृपाण धारण करने की इजाजत समरी ऑफेंसेस एक्ट 1988 के तहत मिली है और कृपाण को स्कूलों या दफ्तरों में हथियार के तौर पर नहीं ले जाया जाता है बल्कि यह एक धार्मिक प्रतीक है. लेकिन ग्लेनवुड स्कूल की घटना ने इस कानून को बहस के केंद्र में ला दिया है. सरकार ने इस कानून की समीक्षा का फैसला किया है और बहुत से लोग इस समीक्षा को जरूरी मानते हैं.

मेलबर्न स्थित अकादमिक और फिल्मकार डॉ विक्रांत किशोर कहते हैं कि एक ठोस नीति की जरूरत है जिसमें सुरक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता दोनों का ध्यान रखा जाए. डॉ किशोर कहते हैं, "एक पिता होने के नाते तो मैं यही समझता हूं कि स्कूल में किसी भी तरह के हथियार पर पाबंदी होनी चाहिए, फिर आधार चाहे कुछ भी हो. लेकिन मैं इस बात को भी मानता हूं कि धार्मिक स्वतंत्रता को पूरा सम्मान मिलना चाहिए और सभी को धार्मिक स्वतंत्रता की पूरी समझ भी होनी चाहिए. इसलिए समुदाय से बात करके एक नीति बनानी चाहिए जिसमें छात्रों की सुरक्षा प्राथमिकता में रहे.”

वैश्विक बहस

कृपाण को लेकर बहस नई नहीं है. ऑस्ट्रेलिया में ही कृपाण को लेकर अलग-अलग वक्त पर कानून बदलते रहे हैं. 2012 में सरकार ने वेपन्स एक्ट 1990 में एक बदलाव किया था जिसके तहत कृपाण स्कूलों में प्रतिबंधित हो गई थीं. इसके खिलाफ तब सिख समुदाय ने काफी विरोध किया था.

लेकिन अन्य देशों की सरकारें भी कृपाण को लेकर पसोपेश में रही हैं. कनाडा में वहां के सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि धार्मिक चिह्नों को बैन करना संविधान का उल्लंघन है जिसके बाद वहां स्कूलों में सीलबंद करके कृपाण ले जाए जाने को इजाजत दी गई है. इसके उलट डेनमार्क में ही हाई कोर्ट ने छह सेंटीमीटर से ज्यादा लंबा चाकू रखने के लिए धर्म को आधार मानकर इजाजत देने से इनकार कर दिया था.

2017 में यही मुद्दा इटली में भी गरमा गया था जब एक सिख आप्रवासी कृपाण धारण करना चाहता था और उस पर जुर्माना लगा दिया गया था. इसके खिलाफ उसने अदालत में गुहार लगाई थी. तब देश के सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जो आप्रवासी इटली में रहना चुनते हैं उन्हें यहां के कानूनों का पालन करना होगा और लोगों की सुरक्षा सर्वोपरि है.