1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भारत में रेप रोकने का एक ही तरीका है

महेश झा३१ अगस्त २०१६

भारत में बच्चों के यौन शोषण के आंकड़े अगर आपको डराते नहीं हैं या यह एक डरावनी बात है क्योंकि हर बच्चा जरूरी है. सोचना होगा कि इसे रोका कैसे जाएगा.

https://p.dw.com/p/1JstH
Symbolbild Protest gegen Vergewaltigungen in Indien
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Saurabh Das

सरकारी आंकड़े डराने वाले हैं. एक साल में बच्चों के साथ बलात्कार के 8800 मामले. सवा अरब की आबादी में शायद इसे मामूली कहा जा सकता है, लेकिन बच्चे की निगाह से देखें तो हर बच्चा वेदना के सौ फीसदी अनुभव से गुजरा है. और ये आंकड़ा सिर्फ उन बच्चों का है जिनके बारे में रिपोर्ट दर्ज कराई गई है. असली संख्या कहीं ज्यादा होगी क्योंकि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े ये भी दिखाते हैं कि करीब 95 प्रतिशत मामलों में अपराधी बच्चों के परिचित ही थे.

आंकड़े समाज की आंखें खोलने के लिए होते हैं ताकि उन पर बहस हो सके और समस्या से निबटने का रास्ता निकाला जा सके. बलात्कारों और गैंगरेप के लिए नियमित तौर पर बदनाम होने वाले भारत के लिए यह मौका है कि बच्चों के यौन शोषण को रोकने के साथ शुरुआत हो. समस्या को समाप्त करने के लिए तीन स्तर पर सक्रिय होना जरूरी है. बच्चों और उनके माता पिता में सेक्स अपराधों के लिए जागरूकता पैदा करनी होगी. यह काम सभी बच्चों के लिए दसवीं कक्षा तक अनिवार्य पढ़ाई सुनिश्चित कर और स्कूलों में यौन शिक्षा के जरिये किया जा सकता है.

पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

बच्चों में किशोरावस्था में अपने बदलते शरीर के लिए काफी जिज्ञासा होती है. इस जिज्ञासा को वे मां बाप और समाज से छुपकर पूरा करते हैं. यौन शिक्षा उन्हें इनपर खुलकर बात करने का अवसर भी देगी, खतरों से परिचित कराएगी और उन्हें यौन संबंधों के बारे में फैसला लेने में सक्षम बनाएगी. रिश्तों और यौन विषयों पर खुलकर बातचीत करना उन लोगों को भी डराएगा जो बच्चों और किशोरों की मासूमियत का फायदा उठाकर उनका शोषण करते हैं. बच्चों को यौन हिंसा से बचाने के लिए घरों में और स्कूलों में इस विषय पर चर्चा को कोई विकल्प नहीं है. साथ ही शोषण के मामलों का पता चलने के बाद उससे निबटने की संरचना भी जरूरी होगी.

जानिए, रेप के लिए कहां कितनी सजा

यह काम स्कूलों में मनोवैज्ञानिकों की भर्ती के साथ किया जा सकता है जो स्कूली बच्चों को शोषण के ट्रॉमा से निकलने मदद दे सकें. पुलिस और न्यायपालिका की संरचना को भी बच्चों के उपयुक्त बनाने की जरूरत होगी ताकि ऐसे मामलों में दोषियों को जल्द सजा दी जा सके और बच्चों की मदद की जा सके. बच्चे समाज का भविष्य होते हैं. उन्हें शोषण और हिंसा से बचाकर ही उस भविष्य की नींव रखी जा सकती है जिसमें शोषण और हिंसा की कोई जगह न हो.

ब्लॉगः महेश झा