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भारतीय विदेशी व्यापार पर भी होगा ओमिक्रॉन का असर

राहुल मिश्र
२९ दिसम्बर २०२१

महामारी के फिर से सर उठाने के डर की वजह से वजह से जापान, सिंगापुर और थाईलैंड जैसे एशियाई देशों ने अपनी सीमाओं को सैलानियों के लिए खोलने की योजना पर रोक लगा दी है. यह एक बुरी खबर है.

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तस्वीर: Rebecca Blackwell/AP/picture alliance

कोरोना महामारी का प्रकोप पिछले दो सालों से जारी है. दुनिया भर में 54 लाख से ज्यादा लोग इस महामारी की चपेट में आकर अपनी जान गंवा चुके हैं. अकेले भारत में ही लगभग 4 लाख 80 हजार लोग इसके शिकार हुए हैं. कोरोना वायरस के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन ने महामारी संबंधी चिंताओं को फिर से बढ़ा दिया है. लेकिन इन चिंताओं के बावजूद अंतरराष्ट्रीय उड़ान सेवाओं और राष्ट्र राज्यों की सीमाओं को खोलने और बंद करने की कवायद भी जारी है. इस मामले में मलयेशिया जैसे देशों ने काफी कदम भी उठाये हैं.

अमेरिका और यूरोप के तमाम देश भी सब कुछ पहले जैसा करने की कोशिश में हैं. कोविड महामारी की दूसरी लहर में बुरी तरह फंसे अमेरिका ने तो नवंबर 2021 में ही उन यात्रियों को अमेरिका में आने की छूट दे दी थी जिन्हें कोविड संबंधी वैक्सीन की दोनों खुराकें लग चुकी हों. हालांकि अफ्रीकी देशों से आने वाले यात्रियों पर प्रतिबंध अभी भी लागू हैं.

लेकिन सभी देश महामारी के खत्म होने को लेकर उतने आशावान नहीं हैं. महामारी के फिर से सर उठाने के डर की वजह से वजह से जापान, सिंगापुर और थाईलैंड जैसे एशियाई देशों ने अपनी सीमाओं को सैलानियों के लिए खोलने की योजना पर रोक लगा दी है. यह एक बुरी खबर है. कोविड महामारी की शुरुआत से ही जापान सैलानियों के आवागमन और विदेशियों के देश की सीमा में घुसने को लेकर सशंकित रहा है. यदा कदा इन कदमों के क्रियान्वयन में नस्लवाद की शिकायतें भी की गयी हैं. जापान इस मामले में अकेला उदाहरण नहीं है.

वैक्सीन का भी असर नहीं

कोविड के चलते हर देश में सरकारों और नौकरशाही के हाथों आम आदमी की स्वतंत्रताओं का हनन हुआ है. यूरोप में सिविल सोसाइटी के सरकारों के खिलाफ बढ़ते रोष के पीछे कहीं न कहीं यह वजहें भी हैं. सिंगापुर के हालत जापान से भी ज्यादा खराब हैं. दिल्ली के आकार के इस सिटी स्टेट में अब तक ओमिक्रॉन के 448 मामलों का पता चला है जिसमें से 370 मामले विदेश से आये लोगों के जुड़े हैं. हालात इस कदर चिंताजनक हैं कि सिंगापुर की सरकार इन मामलों को कम्युनिटी स्प्रेड के स्तर पर रख दिया है. ऐसा लगता है कि आने वाले दिनों में सिंगापुर में कोविड सम्बन्धी एहतियात और प्रतिबन्ध पहले से कहीं अधिक कड़े हो जाएंगे.

सिंगापुर में बद से बदतर होते हालात चिंता का सबब हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि सिंगापुर दुनिया के सबसे वैक्सीनेटेड देशों में से एक है. देश की 87 प्रतिशत जनसंख्या पूरी तरह वैक्सीनेटेड है. देश की एक तिहाई जनसंख्या को बूस्टर खुराक भी लग चुकी है. कल से देश में बारह साल से कम उम्र के बच्चों की भी वैक्सीन की खुराक शुरू कर दी गयी है.

ओमिक्रॉन वैरिएंट का पहला केस नीदरलैंड्स में पाया गया लेकिन दक्षिण अफ्रीका से इसकी उत्पत्ति मानी जा रही है. अब तक इसके 108 से अधिक देशों में 1.5 लाख शिकार पाए जा चुके हैं. जाहिर है ओमिक्रॉन का डर बड़ा है. भारत में अब तक कोविड के लगभग 600 मामले पाए जा चुके हैं.

सिंगापुर की मिसाल

फिलहाल ओमिक्रॉन के मामले में भारत की स्थिति बेहतर दिख रही है. अंतरराष्ट्रीय उड़ानों और विदेशी सैलानियों के भारत आने पर अभी भी प्रतिबंध है और इसके जल्दी हटने की संभावना भी कम है. लेकिन बड़ी चिंता की बात यह है कि एशिया में ओमिक्रॉन के फैलने और उसके फलस्वरूप फिर से बढ़ते प्रतिबंधों का भारत समेत तमाम एशियाई देशों पर असर व्यापक होगा. मिसाल के तौर पर सिंगापुर को ही लें. सिंगापुर एशिया के सबसे बड़े व्यापार केंद्रों में से एक है. चीन और भारत सरीखे देशों के व्यापार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा सिंगापुर के जरिये संचालित होता है.

चीन सीमा पर ट्रकों का रेला

सिंगापुर दक्षिणपूर्व एशिया में भारत के सबसे प्रमुख व्यापार सहयोगियों में से एक है. भारत में सीधे विदेशी निवेश के मामले में सिंगापुर पहले स्थान पर है. 2020-2021 में भारत में हुए कुल निवेश का 29 फीसदी सिंगापुर से आया है. अमेरिका इस श्रेणी में दूसरे स्थान पर है. भारत के कई महत्वपूर्ण स्टार्ट-अप और सर्विस सेक्टर संबंधी कंपनियां सिंगापुर में स्थित हैं. सिंगापुर के लिए भी भारत महत्वपूर्ण स्थान रखता है - भारतीय पर्यटकों के लिए सिंगापुर और थाईलैंड आकर्षण के बड़े केंद्र हैं. सिंगापुर, जापान और थाईलैंड में फिर से लगे प्रतिबंधों से भारत की अर्थव्यवस्था, व्यापार, और इन देशों में काम कर रहे भारतीयों के लिए एक बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है.

भारत को इन देशों खास तौर पर सिंगापुर के साथ मिलकर इस समस्या के संधान का रास्ता ढूंढ़ना पड़ेगा. ओमिक्रॉन की चुनौतियों से निपटने के लिए भारत को आगे आना होगा. यह भारत के अपने हितों के लिए भी जरूरी है. इसका असर 2022 में सिर्फ उनकी आर्थिक रिकवरी पर ही नहीं बल्कि भारत के साथ आर्थिक संबंधों को सुधारने को कोशिश पर भी होगा. देखना यह है कि भारत अपनी विदेशनीति और घरेलू स्थिति के बीच कितना सामंजस्य बिठा पाता है.

(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं.)