1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाजब्रिटेन

ब्रिटेन में फब्तियां कसने वाले ड्राइवरों की शामत

स्वाति बक्शी
४ फ़रवरी २०२२

ब्रिटेन के ब्रैडफर्ड शहर में महिला पुलिस कर्मचारी सादे कपड़ों में सड़कों पर उतरेंगी. इसका मकसद उन कार-चालकों को धर-दबोचना है जो सड़क चलती लड़कियों और महिलाओं पर फब्तियां कसते हैं.

https://p.dw.com/p/46Y3X
Frankreich | Ein Migrant springt auf einen Lastwagen in Calais
तस्वीर: Christophe Ena/AP/picture alliance

उत्तरी-ब्रिटेन में बसे ब्रैडफर्ड शहर में कार में बैठे मर्दों की बेहूदा टिप्पणियां और अवांछित व्यवहार झेलने वाली लड़कियों व महिलाओं के लिए शायद ये खबर थोड़ी राहत लेकर आई है. कार में होने का फायदा उठाकर, सड़क पर चल रही महिलाओं को इस तरह परेशान करने वाले मर्दों को सबक सिखाने के लिए महिला पुलिकर्मियों को सादे कपड़ों में तैनात किया जा रहा है.

ये कदम ब्रैडफर्ड विश्वविद्यालय की छात्राओं की तरफ से आई कई शिकायतों के बाद उठाया जा रहा है. पुलिस कार्रवाई के तहत महिला पुलिसकर्मी वर्दी की जगह सादे कपड़े पहनकर शहर की उन सड़कों पर उतरेंगी जहां पर छात्राओं ने इस तरह की हरकतें झेलने की बात कही है. ब्रैडफर्ड विश्वविद्यालय तक जाने वाली ग्रेट हॉर्टन रोड इस तरह की घटनाओं के लिए कुख्यात है जहां महिलाओं का सुरक्षित चल पाना दूभर है.

व्हिस्की के कचरे से चलाया ट्रक

डर नहीं लड़कियों को तंग करने वाले मर्दों को

विश्वविद्यालय में एलजीबीटीक्यू+ अधिकारी मेग हेंडरसन ने मीडिया से बातचीत में कहा कि उन्हें उम्मीद है कि ये कार्रवाई कैंपस के पास इस तरह की हरकतें करने वाले कार-चालकों को रोकने में मदद करेगी. हेंडरसन का मत है कि ऐसा नहीं है कि फब्तियां कसने वाले मर्दों को किसी खास आयु-सीमा में बांटा जा सकता है. इसमें हर उम्र के मर्द शामिल हैं. उन्हें लगता है कि उनके और महिलाओं के बीच कार एक ऐसी दीवार है जिसके सहारे वो बच निकलेंगे.

यॉर्कशर लाइव अखबार से बातचीत में हेंडरसन ने कहा कि "कुछ इस तरह की शिकायतें भी आई हैं जहां लड़कियों का तब तक पीछा किया गया जब तक कि वो सड़क छोड़कर किसी बिल्डिंग में ना चली गई हों. ये निश्चित तौर पर स्वंतत्रता से जीने के अधिकार का हनन है और कुछ लोगों के ताकतवर महसूस करने का दुर्भावनापूर्ण तरीका है.”

ब्रैडफर्ड शहर में महिलाओं की सुरक्षा का मसला नया नहीं है और विश्वविद्यालय इस दिशा में जागरूकता के लिए प्रयासरत दिखता है. इसी कड़ी में पिछले साल दिसंबर में ‘रीक्लेम द नाइट' मार्च आयोजित किया गया था जिसमें कैंपस बिल्डिंग से शहर के मुख्य पार्क तक लोगों ने महिलाओं की सुरक्षा की मांग करते हुए जुलूस निकाला. कोविड के चलते करीब दो साल की बंदी के बाद कैंपस के फिर से खुलने पर छात्राओं के साथ अभद्र व्यवहार से जुड़ी शिकायतें तेजी से बढ़ी हैं.

पकड़े गए तो कोर्ट-कचहरी और जुर्माना

कार-चालकों के दुर्व्यवहार के विरुद्ध ये पुलिसिया कार्रवाई सार्वजनिक स्थल सुरक्षा आदेश के तहत की जा रही है जो पूरे ब्रैडफर्ड शहर में लागू है. ये मुख्य रूप से मोटर ड्राइवरों के ऐसे व्यवहार से जुड़ा है जो किसी को परेशान करे या पीड़ा पहुंचाए. पुलिस की कार्रवाई के दौरान जो ड्राइवर गाड़ी के भीतर से ऐसी कोई हरकत या टिप्पणी करते पाए जाएंगे उनके लिए सजा का प्रावधान है. पकड़े जाने पर पुलिस एक निश्चित जुर्माना राशि वसूलेगी और मामला बढ़ने पर कचहरी तक जा सकता है.

ऐसे मामलों में दोषी को एक हजार पाउंड तक का जुर्माना लगने की संभावना है. ब्रैडफर्ड शहर में डिटेक्टिव सुपरिंटेंडेट तान्या विलकिंस ने मीडिया से कहा कि क्रिसमस के पहले ही शहर की पुलिस को कार-चालकों के खिलाफ छात्राओं की इन शिकायतों के बारे में जानकारी दी गई थी. चूंकि ये शिकायतें सीधे पुलिस के पास नहीं आई हैं इसलिए वर्दी की जगह सादे कपड़ों में पुलिसकर्मियों की मदद से स्थिति को ठीक से समझने की कोशिश की जा रही है. इससे सटीक जानकारी जुटाई जाएगी कि आखिर हो क्या रहा है.

चीन सीमा पर ट्रकों का रेला

ब्रैडफर्ड में गंभीर है छेड़खानी की समस्या

ब्रैडफर्ड शहर वेस्ट यॉर्कशर काउंटी में आता है जहां महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले चिंताजनक हालात का नजारा पेश करता रहा है. स्थानीय अखबार लगातार इस तरह की रिपोर्टें छापते रहे हैं कि शहर में महिलाएं शाम को घर से बाहर निकलने में बिल्कुल सुरक्षित महसूस नहीं करतीं. वेस्ट यॉर्कशर की मेयर ट्रेसी ब्रबिन ने इन दिक्कतों से निपटने के लिए ‘सुरक्षित सड़कें' नाम के अपने विशेष प्रयास के लिए छह लाख पचपन हजार पाउंड यानी तकरीबन छह करोड़ चौंसठ लाख रुपए की सरकारी फंडिंग हासिल की है.

नई सरकारी फंडिग के तहत जनवरी से मार्च 2022 के बीच ऐसे कदम उठाए जा रहे हैं जिससे महिलाएं सड़कों पर निडर होकर चल सकें. खासकर विश्वविद्यालय की छात्राओं की शिकायत रही है कि वे कैंपस में तो सुरक्षित हैं लेकिन कैंपस से बाहर नहीं. प्रशासन और पुलिस की इन तीन महीने की कोशिशों का कोई नतीजा निकलता है या ये सिर्फ कागजी कैंपेन बन कर रह जाते हैं, ये अगले कुछ महीनों में साफ होगा.