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शिक्षाविश्व

बच्चे किससे बेहतर सीखते हैं, किताबें या कंप्यूटर?

फ्रेड श्वालर
१६ फ़रवरी २०२४

कई जानकार कहते हैं कि कंप्यूटरों के मुकाबले किताबें सीखने-सिखाने का बेहतरीन जरिया हैं. हालांकि अलग-अलग परिस्थितियों में दोनों ही बहुत उम्दा हैं. किताब बनाम कंप्यूटर की बहस शिक्षा की असल समस्या गरीबी से ध्यान भटकाती है.

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कई जानकार कंप्यूटर की तुलना में किताबों को ज्यादा फायदेमंद बताते हैं.
सीखने का समृद्ध माहौल बच्चों के दिमाग को ज्यादा लचीला बनाता है. तस्वीर: Madeleine Kelly/ZUMA Press Wire/picture alliance

प्राचीन यूनानी दार्शनिक सुकरात ने कहा था कि चीजों को लिखने से लोग भुलक्कड़ हो जाएंगे. संयोग देखिए कि आज हम उनकी कही इस बात की चर्चा इसलिए कर पा रहे हैं कि यह बात लिखी गई थी.

टिप्पणीकार अक्सर कहते हैं कि लिखे गए शब्द, किताबें सबसे बढ़िया माध्यम हैं और कंप्यूटर सीखने की प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं. इन टिप्पणियों के पीछे लगभग वही कारण बताए जाते हैं, जिनके कारण सुकरात लिखने के खिलाफ थे. यह आधार था विस्मृति, यानी भूलने की प्रवृत्ति. जबकि याद रखना, सीखने की आधारशिला है. आपको हैरानी हो सकती है कि लोगों को नई तकनीकों से क्या शिकायत है?

जैसे-जैसे पढ़ाई-लिखाई प्रिंट की जगह ज्यादा-से-ज्यादा डिजिटल किताबों और ऐसी अन्य चीजों की ओर बढ़ रही है, शोधकर्ता बच्चों की शिक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव पर भी गौर कर रहे हैं. यह क्षेत्र नया है और साक्ष्य मिले-जुले हैं. इस बात पर कोई वैज्ञानिक सहमति नहीं है कि बच्चे की शिक्षा के लिए किताबें या डिजिटल उपकरण बेहतर हैं या नहीं.

उदाहरण के लिए, होंडुरास के प्राथमिक विद्यालयों में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि पाठ्यपुस्तकों की जगह लैपटॉप का इस्तेमाल करने से छात्रों के सीखने में कोई फर्क नहीं पड़ा. मतलब, यह न तो सकारात्मक था और न ही नकारात्मक. लेकिन क्या यह सामान्य ज्ञान की बात नहीं है कि सीखने के दोनों रूप, यानी प्रिंट और डिजिटल, व्यक्ति और स्थिति के आधार पर प्रभावी हो सकते हैं या नहीं? इस मामले को थोड़े विस्तार से समझते हैं.

प्रारंभिक शिक्षा दिमाग मजबूत करती है

इस विषय पर बात करने से पहले न्यूरो साइंस पर विचार करना महत्वपूर्ण है. इसके जरिए शिक्षकों को यह चुनाव करने में मदद मिल सकती है कि बच्चे के विकास के विभिन्न चरणों में कौन से उपकरण प्रयोग में लाए जाएं. तंत्रिका वैज्ञानिकों ने हमें दिखाया है कि सीखना और स्मृति का निर्माण मस्तिष्क को मजबूत और बेहतर बनाता है.

मस्तिष्क ‘प्लास्टिक' की तरह है. जैसे-जैसे हम यादें बनाते हैं, सीखते और भूल जाते हैं, यह बढ़ता है और न्यूरॉन्स के बीच संबंधों को काटता है. ऐसा हर उम्र में होता है लेकिन, बचपन में मस्तिष्क विशेष रूप से प्लास्टिक जैसा होता है. मस्तिष्क का यह लचीलापन काफी हद तक हमारे अनुभवों और वातावरण पर निर्भर करता है.

अध्ययनों से पता चला है कि बचपन में हमारे सीखने का माहौल जितना समृद्ध होता है, हम उतनी ही ज्यादा चीजें सीख लेते हैं. जीवन भर हमारा दिमाग जिस तरह नई चीजें सीखेगा, हम उन तौर-तरीकों को भी बदलते हैं. यहां सबसे अच्छा उदाहरण भाषा सीखना है. बच्चे, वयस्कों की तुलना में दूसरी भाषा बहुत आसानी से सीखते हैं क्योंकि उनका मस्तिष्क अधिक लचीला होता है.

इसके अलावा, जो वयस्क बचपन में दो भाषाएं सीखते हैं, वे उन वयस्कों की तुलना में तीसरी भाषा बहुत तेजी से सीख सकते हैं, जिन्होंने बचपन में केवल एक भाषा सीखी है. इसकी वजह यह है कि उनके दिमाग को भाषाएं सीखने के लिए प्रशिक्षित किया गया है. वहीं अगर बचपन में मस्तिष्क का इस्तेमाल कम होगा, यानी सीखने की प्रक्रिया कमजोर होगी, तो ऐसी स्थिति मस्तिष्क को स्थायी रूप से बदतर या कमजोर बना देती है.

तमाम अनुभवों से वंचित बच्चों के मस्तिष्क का तुलनात्मक रूप से उतना विकास नहीं हो पाता, जितना कि अनुभवों की दुनिया में रहने वाले बच्चों का होता है. उदाहरण के लिए यदि बच्चों का वयस्कों के साथ संपर्क और बातचीत कम हो, तो उनके मस्तिष्क का विकास कम हो पाता है. ये ऐसे बदलाव हैं, जिन्हें आगे चलकर बदलना अक्सर मुमकिन नहीं हो पाता.

बेहतर लर्निंग अनुभव के फायदे

शिक्षा के लिए इन सब बातों का क्या मतलब है? बच्चों को यथासंभव डिजिटल और भौतिक दोनों प्रकार के शिक्षण उपकरणों से अवगत कराया जाना चाहिए. इसका मतलब किसी चीज की स्थायी जानकारी के लिए किताबों और लिखावट दोनों का सहारा लिया जा सकता है. अध्ययनों से पता चलता है कि लिखने की क्रिया के लिए मस्तिष्क को नोट लेने की प्रक्रिया में सक्रिय भागीदार होने की आवश्यकता होती है, लेकिन टाइप करते समय मस्तिष्क कम सक्रिय होता है, इसलिए हाथ से लिखने से ज्यादा चीजें स्मृति में चली जाती हैं.

इसी तरह डिजिटल लर्निंग प्लेटफॉर्म का उपयोग करने का मतलब बहुत समृद्ध अनुभव हो सकता है. छात्रों को इंटरैक्टिव तरीकों से सीखने के लिए प्रेरित करने की दिशा में एनिमेटेड फिल्मों, शिक्षा से संबंधित ऐप्स, वर्चुअल क्लासरूम्स और चैटजीपीटी जैसे एआई टूल जैसी चीजों का सहारा लिया जा सकता है.

शोध से पता चलता है कि सीखने के संदर्भ में उपयोग किए जाने पर डिजिटल तकनीक साक्षरता और संख्यात्मक कौशल, हाथ से काम करने का कौशल और नेत्र संबंधी कामकाजी स्मृति को बढ़ाने में प्रभावी है. इसके लाभकारी परिणाम भाषा, कार्यात्मक साक्षरता, गणित, विज्ञान, सामान्य ज्ञान, रचनात्मक सोच सहित बच्चे के सीखने के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं. यह सूची काफी लंबी है.

बच्चों की पढ़ाई ज्यादा रोचक और इंटरैक्टिव बनाने के लिए कक्षाओं में डिजिटल उपकरणों का इस्तेमाल बढ़ रहा है.
दुनियाभर में ज्यादा से ज्यादा स्कूल बच्चों की शिक्षा में डिजिटल साधनों का इस्तेमाल बढ़ा रहे हैं. तस्वीर: Madeleine Kelly/ZUMAPRESS.com/dpa/picture alliance

कंप्यूटर्स का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

डिजिटल तकनीक से जुड़े कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं. कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि कंप्यूटर सचेत होने की क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है और बच्चे मस्तिष्क को सक्रिय रखने वाले शैक्षिक उपकरणों की जगह निष्क्रिय रूप वाले कंप्यूटर का उपयोग करते हैं. लेकिन यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि ये नकारात्मक प्रभाव अल्पकालिक हैं या दीर्घकालिक.

कुछ अध्ययन यह भी बताते हैं कि कंप्यूटर का अत्यधिक उपयोग शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है. लेकिन इसका संबंध कंप्यूटर के बजाय लंबे समय तक एक ही जगह पर बैठे रहने से भी हो सकता है. इसीलिए बाहर दौड़ना या गेंद को किक मारना बच्चों के विकास और उनके शैक्षणिक प्रदर्शन के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है.

शिक्षा के क्षेत्र में असल मुद्दा है गरीबी

एक बच्चे की शिक्षा में कई कारक भूमिका निभाते हैं. उनके घर का वातावरण भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना उनके सीखने में प्रयोग होने वाली सामग्री और उपकरण. शिक्षा के क्षेत्र में जो सबसे बड़ी समस्याएं हैं, उनमें से एक है गरीबी. इसकी वजह से बच्चों की किताबों और कंप्यूटर तक पहुंच कम हो जाती है.

यह मुद्दा कोरोना महामारी के दौरान तब और स्पष्ट हो गया, जब स्कूल बंद होने के दौरान गरीब पारिवारिक पृष्ठभूमि के बच्चों के पास घर पर कंप्यूटर या किताबों का अभाव था. उदाहरण के लिए, ब्रिटेन स्थित एक संस्था के सर्वेक्षण में पाया गया कि महामारी के दौरान वंचित क्षेत्रों में एक तिहाई छात्रों के पास घरेलू शिक्षण उपकरणों तक पर्याप्त पहुंच नहीं थी.

इसकी वजह से उनके शैक्षणिक प्रदर्शन में गिरावट देखी गई. कई अध्ययन बताते हैं कि हाई-स्कूल आयु वर्ग के बच्चों में सीखने के परिणामों में हाल के वर्षों में गिरावट आई है. इसके पीछे जो तमाम कारण हैं, उनकी तुलना में सामाजिक-आर्थिक कारक कहीं ज्यादा जिम्मेदार हैं. यह प्रवृत्ति किसी एक देश में नहीं बल्कि दुनिया भर में देखी जाने वाली प्रवृत्ति है और यह सीधे तौर पर बच्चों की शैक्षिक उपकरणों तक कम पहुंच से जुड़ी है.