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चीन को रोकने का लिए क्या क्या कर रहा है अमेरिका

३ सितम्बर २०२०

अगले दस सालों में चीन अपने परमाणु हथियारों का भंडार बढ़ा कर दोगुना कर सकता है. हथियार जुटाने की चीन की इस कवायद से ना केवल भारत जैसे पड़ोसी देश बल्कि अमेरिका तक खासा चिंतित है.

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China l Militärparade zur Feier des 70. Jahrestages der Gründung der Volksrepublik China
तस्वीर: picture alliance/Xinhua/L. Bin

चीनी सेना के बारे में अमेरिकी कांग्रेस में अपनी सालाना रिपोर्ट पेश करते हुए पेंटागन ने कहा है कि अगले एक दशक के अंदर चीन ना केवल अपने परमाणु हथियारों की संख्या दोगुनी कर सकता है बल्कि दुनिया का केवल तीसरा ऐसा देश भी बन सकता है जो जल, थल और वायु तीनों मार्गों से परमाणु हमले कर सकता है. इस सैन्य क्षमता को ‘ट्रायड' के नाम से जाना जाता है और फिलहाल विश्व में केवल दो ही देशों - अमेरिका एवं रूस - के पास ट्रायड क्षमता है.

करीब दो सालों से लगातार जारी चीन और अमेरिका के बीच का तनाव जल्दी खत्म होता नजर नहीं आ रहा है. इस समय अमेरिका एक बार फिर चीन पर उस परमाणु हथियार संधि पर हस्ताक्षर करने का दबाव बना रहा है, जो उसने रूस के साथ की हुई है. फिलहाल चीन ने पास 200 के आसपास परमाणु हथियार होने की जानकारी है.

पहली बार अमेरिकी सेना की ओर से इस संख्या का खुलासा किया गया है. चीन का कहना है कि उसे इसमें शामिल होने में कोई दिलचस्पी नहीं है क्योंकि अमेरिका ने खुद अपने पास चीन से 20 गुना बड़ा परमाणु हथियारों का संग्रह बनाया हुआ है. चीन साफ कर चुका है कि वह तभी सोचेगा जब अमेरिका पहले खुद अपने हथियार कम कर चीन के आसपास के स्तर पर आने को तैयार होगा. फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स के अनुसार, चीन के पास 320, अमेरिका के पास 3,800 और रूस के पास 4,300 परमाणु हथियार हैं. 

पेंटागन की ओर से चीनी हथियारों के जखीरे में जिस तरह की बढ़ोत्तरी की संभावना जताई गई है उसका आधार यह है कि चीन के पास परमाणु हथियार बनाने के लिए अभी ही इतना कच्चा माल मौजूद है. पेंटागन के इस अनुमान की पुष्टि उस विश्लेषण से भी होती है जो अमेरिका की ही डिफेंस एंटेलिजेंस एजेंसी ने किया है. इसी साल चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में लिखा गया था कि चीन ने बहुत कम समय में अपने परमाणु हथियारों की संख्या को 1,000 तक ले जाने का लक्ष्य रखा है.

अमेरिका की इस रिपोर्ट को खारिज करते हुए बीजिंग में चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनिंग ने इसे चीन के रणनीतिक इरादों की जानबूझ गलत तस्वीर पेश करना बताया. मंत्रालय ने कहा कि यह रिपोर्ट "पूरी तरह शीत काल के युद्ध वाली सोच से भरी हुई है.” इसे चीन की बदनामी की कोशिश बताते हुए चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि अमेरिका इससे चीन की मुख्यभूमि और ताइवान के बीच कठोर भावनाएं भड़काना चाह रहा है.

ताइवान और हांगकांग को लेकर अमेरिका लगातार चीन के खिलाफ बोल रहा है और अब उसने देश में चीनी राजनयिकों के लिए भी नई पाबंदियां लगा दी हैं. 2 सितंबर को अमेरिका ने कहा कि चीनी मिशन के अलावा कहीं भी अगर चीनी राजनयिक 50 से अधिक लोगों के समूह को संबोधित करना चाहते हैं तो उन्हें इसके लिए अमेरिकी सरकार से अनुमति लेनी होगी. वॉशिंगटन में स्थित कन्फ्यूशियस इंस्टीट्यूट यूएस को अगस्त में एक विदेशी मिशन के तौर पर रजिस्टर करना पड़ा है. अमेरिका ने संस्थान पर चीन का "बुरा असर” फैलाने का आरोप लगाया था.

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की सरकार चीनी राजनयिकों पर अमेरिकी वोटरों को प्रभावित करने और चीन के लिए जासूसी करने का आरोप भी लगा चुकी है. नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों के मद्देनजर उन्होंने चीन पर ऐसे आरोपों के हमले और तेज कर दिए हैं. चीन पर सख्ती ट्रंप की विदेश नीति का एक अहम स्तंभ है. 
आरपी/एनआर (रॉयटर्स)

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