1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

मीडिया पर और शिकंजा कस रहा है चीन

२३ मार्च २०१८

चीन में सरकारी मीडिया सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी के ही नियंत्रण में रहा है, लेकिन अब शी जिनपिंग के अनिश्चित काल के लिए राष्ट्रपति बनने की संभावनाओं के बाद मीडिया पर सरकारी शिकंजा कड़ा हो रहा है.

https://p.dw.com/p/2uqDm
Zeitungskiosk in China
तस्वीर: picture-alliance/Godong/Deloche

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने घोषणा की है कि वह प्रसारकों और नियामकों पर सीधा नियंत्रण रखेगी और फिल्मों से लेकर टीवी, किताबों से लेकर रेडियो कार्यक्रम, सब पर उसकी कड़ी नजर होगी. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का कहना है कि अधिकारियों और नागरिकों के "विचारों में एकरूपता" होनी चाहिए. इसी को लागू करने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी ने चीनी मीडिया के जरिए प्रोपेगैंडा तेज करने का तरीका निकाला है. विश्लेषकों का कहना है कि मीडिया पर कड़े नियंत्रण के जरिए कम्युनिस्ट पार्टी अपने संदेश को घर घर पहुंचाना चाहती है. साथ ही वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि को भी चमकाने पर काम कर रही है.

चीन में शी के उदय से धराशायी लोकतंत्र की उम्मीद

पाकिस्तानी पतियों की चीनी बीवियां गिरफ्तार

हांगकांग की यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में सेंटर ऑन चाइना'ज ट्रांसनेशनल रिलेशंस के निदेशक डेविड स्वाइग कहते हैं, "यह एक बड़ी कोशिश है ताकि सब लोग एक साथ सोचें." कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ से घोषित योजना के मुताबिक, चाइना रेडियो इंटरनेशनल, चाइना नेशनल रेडियो और चाइना सेंट्रल टेलीविजन के साथ साथ उसकी विदेश प्रसारण शाखा चाइना ग्लोबल टेलीविजन नेटवर्क को मिलाकर एक प्रसारण संस्था बनाई जाएगी जिसके नाम का अनुवाद "वॉइस ऑफ चाइना" यानी चीन की आवाज होगा.

प्रेस और प्रिंट पब्लिकेशन, रेडियो, फिल्म और टेलीविजन की सरकारी नियामक संस्था को खत्म कर दिया जाएगा और इसकी जिम्मेदारी और संसाधन कम्युनिस्ट पार्टी के सेंट्रल प्रोपेगैंडा विभाग को दे दिए जाएंगे. इसी विभाग के पास फिल्म उद्योग का नियंत्रण भी होगा जिसमें फिल्मों का आयात और निर्यात भी शामिल होगा. चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ का कहना है कि नई मीडिया संस्था का काम मुख्य रूप से "पार्टी के प्रोपेगैंडा दिशानिर्देशों और नीतियों को लागू करना होगा".

कम्युनिस्ट पार्टी के अखबार ग्लोबल टाइम्स ने एक सरकारी विशेषज्ञ फेंग युए के हवाले से लिखा है कि इस कदम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन का प्रभाव सुधारने और विश्व मंच पर चीन की छवि को प्रोत्साहित करने के लिए सभी "संसाधन और शक्ति एक साथ आएंगे".

शी जिनपिंग और माओ में क्या है आम बात

शी जिनपिंग: आज के चैयरमैन, कल के तानाशाह?

वहीं हांगकांग यूनिवर्सिटी में चाइना मीडिया प्रोजेक्ट की वेबसाइट पर उसके संपादक डेविड बांडरुस्की लिखते हैं कि कम्युनिस्ट पार्टी का जो प्रोपेगैंडा विभाग पहले सिर्फ मोटामोटी दिशानिर्देश दिया करता था, अब मीडिया आउटपुट पर पूरी तरह उसका नियंत्रण हो गया है. वह कहते हैं, "इससे जो बात उभर कर सामने आती है वह है मीडिया और विचारधारा पर अधिक सख्त और अधिक केंद्रीकृत नियंत्रण."

राष्ट्रपति शी हमेशा पार्टी के मुखपत्र के तौर पर सरकारी मीडिया की भूमिका पर जोर देते रहे हैं. 2016 में उन्होंने शिन्हुआ और अन्य मीडिया संस्थानों का दौरा किया और कहा कि इस तरह के मीडिया आउटलेट्स को अपना सरनेम 'पार्टी' रखना चाहिए.

चीन में सरकारी मीडिया पर ऐसे समय में नियंत्रण मजबूत किया जा रहा है जब चीन को साउथ चाइना सी में अपने पड़ोसियों के दावों का सामना करना पड़ रहा है तो वहीं विदेशों में उसका आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव बढ़ता जा रहा है. इसके अलावा चीन ने बेहद महत्वाकांक्षी "वन रोड वन बेल्ट" परियोजना शुरू की है जिसमें पूरी दुनिया को सड़क, जल और रेलमार्गों के जरिए जोड़ने की योजना है.

चीन ने हाल के सालों में विदेशों में अपनी मीडिया मौजूदगी को बढ़ाने पर बहुत पैसा खर्च किया है. चीन के सीसीटीवी ने वॉशिंगटन और केन्या के नैरोबी में ब्यूरो खोले हैं. चीन का अंग्रेजी अखबार चाइना डेली पैसा दे रहा है ताकि उसे अमेरिका के वॉशिंगटन पोस्ट जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ वितरित किया जाए.

इन सब कोशिशों के बावजूद दुनिया में चीन की छवि वैसी ही होगी जैसी कम्युनिस्ट पार्टी चाहती है, यह कहना जरा मुश्किल है. उसे बीबीसी और सीएनएन जैसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों से मुकाबला करना है जिनकी चीन पर रिपोर्टिंग में कम्युनिस्ट पार्टी के प्रोपेगैंडा की कलई खुल जाती है.

एके/एमजे (एपी)