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नेता राजू श्रीवास्तव से बातचीत

२० मार्च २०१३

बड़े बड़े नेताओं की नकल कर और अजीब भाव भंगिमाओं से लोगों को हंसा हंसा कर लोट पोट कर देने वाले लाफ्टर चैलेंज के बादशाह राजू श्रीवास्तव का असली नाम सत्य प्रकाश श्रीवास्तव है. अब जल्द वो वोट मांगते नजर आएंगे.

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स्वभाव से बहुत गंभीर हैं, जरूरत भर सधे हुए लहजे में नपी तुली बात करते हैं. लेकिन हास-परिहास उन्हें विरासत में मिला है. प्रसिद्ध हास्य कवि 'बलई काका' के बेटे राजू छह भाइयों में चौथे नंबर के हैं. अब वो राजनीति में उतरने जा रहे हैं. हाल ही में समाजवादी पार्टी ने उन्हें कानपुर संसदीय सीट से अपना उम्मीदवार घोषित किया है. नेता बनने के बारे में क्या सोचते हैं राजू श्रीवास्तव.

डॉयचे वेले: हमेशा आपने नेताओं का मजाक उड़ाया और अब खुद नेता बनने चल दिए तो कैसा महसूस कर रहे हैं?

राजू: अच्छा फील हो रहा है, नेताओं का मजाक उड़ाना खिंचाई करना जारी रखूंगा क्योंकि इसी से तो मेरी पहचान है और मैं तो ये भी चाहूंगा कि अगर मैं नेता बन जाऊं तो साथी कॉमेडियन को मेरा भी उसी तरह मजाक उड़ाना चाहिए. क्योंकि समाचार पत्रों के जरिए मंत्रियों की करतूत जनता तक पहुंचती है तो वो कम असर करती है. जब हंसा हंसा कर ऐसी तैसी करते हैं तो वो बात दिल तक पहुंचती है.

अच्छा आप को नहीं लगता कि राजनीति भी एक प्रकार की कॉमेडी बन चुकी है?

देखिए लोगों की खिदमत करना सेवा करना गंभीर विषय है. हास परिहास भी जीवन में चाहिए. अब तो डाक्टर भी मान चुके हैं कि लाफ्टर इज द बेस्ट मेडिसिन, जितना हंसेंगे उतना ठीक रहेंगे. हंसना तो योग की एक क्रिया है.

मतलब कि आप नहीं मानते कि कॉमेडी राजनीति का ही प्रतिरूप है?

जैसे हर जगह अच्छे बुरे लोग होते हैं, इसी तरह कुछ अच्छे नेता भी हैं. अच्छे बुरे लोग हर जगह हैं.

आप जब पहली बार मुलायम सिंह जी से मिले तो कैसा लगा, उनका तो आप काफी मजाक उड़ा चुके थे.

मुलायम सिंह जी की आवाज की नकल उतारना तो हमने कुछ दिन पहले ही शुरु किया है. उनसे मुलाकातें काफी अच्छी हैं. उनके गांव सैफई में हर साल सैफई महोत्सव होता है तो वहां अक्सर प्रोग्राम करने जाया करते थे. उनके परिवार के अन्य सदस्यों से भी मुलाकात होती रही है.

कभी राजनीति में आने के बारे में सोचा था?

सच कहूं तो कभी नहीं नहीं सोचा था.

पहले कांग्रेस से टिकट की बात चल रही थी तो फिर ये अचानक सपा से कैसे मैदान में गए?

मैंने कभी अपनी तरफ से नहीं कहा कि मैं कांग्रेस में जा रहा हूं. चूंकि मेरा पेशा है परफॉरमेंस करना, तो हर पार्टी के कार्यक्रम में हम जाते थे. हम ये सोच कर नहीं बुक होते थे कि कौन किस पार्टी का है. सबके साथ उठना बैठना था. हर पार्टी चुनाव लड़ने का प्रस्ताव देती थी. 2009 के चुनाव के समय लगा कि अभी जल्दी है, अभी और हंसना हंसाना चाहिए. लेकिन इस बार लगा कि अब सही समय है.

हंसने-हंसाने, आप हास्य व्यंग्य की विधा में कैसे गए?

बचपन से ही अमिताभ बच्चन जी की फिल्में देखने का शौक था. शोले पहली फिल्म देखी, उनका दीवाना हो गया. उनकी तरह आवाज निकालना और गाने गाना शौक हो गया. मुझे नहीं पता था कि आगे चलकर ये मेरा करियर बन जाएगा. मैं इतना मशहूर हो जाउंगा. मैं तो ऐसे ही, किसी ने कह दिया घर में बर्थडे है तो मैं चला जाया करता था, हमें नहीं पता था ये कोई काम है. घर वाले कहते थे नौकरी करो और मैं इसमें रम चुका था. कानपुर में पला बढ़ा तो वहां की बातें कर करके कि वहां गायें कैसे बैठी रहती हैं, बारात कैसे निकलती है, ट्रैफिक कैसे जाम रहता है. दुनिया भर में मशहूर हो गया. यह तो कानपुर का कर्ज भी है हम पर, उसे उतारने का वक्त आ गया है. इतना कुछ मिला है, अब उसे वापस करने का वक्त आ गया है.

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आपके लिए स्क्रिप्ट कौन लिखता है.

इस विधा में कोई कैसे स्क्रिप्ट राइटर आता जब इसे मान्यता ही नहीं मिली थी. जो कुछ भी है ज्यादातर भोगा हुआ यथार्थ है. बदकिस्मती से भारत में हंसने हंसाने को देर से स्वीकार किया गया. फिल्मी कामेडियन को लोग जानते थे, लेकिन स्टैंड अप कॉमेडियन को कोई नहीं. स्टैंड अप का मतलब स्टेज पर जो अकेला आए और परफॉर्म करे. लाफ्टर चैलेंज आया तो लोगों ने पहली बार देखा, तो ऐसे लिखने लिखाने का माहौल कहां से बनता .देर से ये आर्ट बनी. अब माहौल बदला है तो और अच्छे लोग आएंगे.

जयललिता से लेकर रेखा तक जाने कितने स्टार राजनीति में आए, किसी का कोई योगदान याद है.

सफल-असफल तो हर जगह होते हैं, सुनील दत्त साहब बहुत सफल रहे, बड़ी ईमानदारी से काम किया. राज बब्बर जी संघर्ष करते दिखते हैं. शत्रुघ्न जी, सिद्वू जी, ये सब भी हैं तो एक तरफ गोविंदा और अमिताभ जी भी हैं. जयललिता जी भी हैं जो मुख्यमंत्री हैं ही.

राजनीति में जाने का कोई खास मकसद.

जैसा कि मैंने बताया कि मुझ पर कानपुर के कर्ज हैं और जैसे मैंने ठान लिया कि अब न बंद एसी कमरे में रहूंगा और न एसी कार में चलूंगा. लोगों के बीच जाऊंगा काम करूंगा.

कोई रोल मॉडल, कोई राजनीतिक गुरु या आदर्श.

कला की दुनिया में तो अमिताभ की नकल करता ही था. शुरू में इसीलिए जूनियर अमिताभ कहा जाता था. राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी जी से काफी प्रभावित हूं. अन्ना भी हैं और मुलायम सिंह जी भी.

ये गजोधर का करेक्टर कहां से आया.

बचपन में जब गर्मियों की छुट्टियां होती थीं तो अपने नौनिहाल जाया करता था, जहां एक नाऊ गजोधर आया करते थे. बेहद बातूनी. उनके पास तरह तरह की बातें थीं, सच्ची झूठी और डाकुओं की. जब हम जाते तो सबसे पहले गजोधर मामा को ढूंढते और उन्हें घेर लेते, किस्से कहानियां सुनते. उनका कैरेक्टर जेहन में बस गया, तो जब बंबई पहुंचे तो उसी को उतारना शुरू कर दिया.

और ये नेता लोग.

अरे जब देखा कि लालू जी बोल रहे हैं और संसद में ठहाके लग रहे हैं तो सोचा ये तो बेस्ट कैरेक्टर है.

विरासत में मिला हास्य व्यंग्य आपके बच्चों ने भी स्वीकारा है.

बेटा आयुष्मान फुटबाल का दीवाना है, उसका फ्रांस जाकर खेलने का सपना है. बेटी अंतरा का झुकाव ड्रामे वगैरा की तरफ है, अभी नादिरा बब्बर जी के साथ कुछ काम किया है.

इंटरव्यू: सुहैल वहीद

संपादनः ओंकार सिंह जनौटी