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सावधान! आपको खून की जगह मौत चढ़ाई जा सकती है

वीके/आईबी (एएफपी)२१ जुलाई २०१६

जान बचाने के लिए जो खून चढ़ाया जा रहा है, वही जानलेवा साबित हो रहा है. और सरकार कहती है कि गारंटी नहीं दी जा सकती. भारत में खून की सप्लाई का पूरी सिस्टम बदलने की जरूरत है.

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Blutspende Camp organisiert vom DW Hindi Metali Listeners Club
तस्वीर: DW Hindi-Metali Listeners Club

7 साल की आरुषि को हर महीने अस्पताल जाना होता है, खून चढ़वाने. ऐसा पैदा होने के साथ ही शुरू हो गया था. उसे एक ऐसी बीमारी है जो दुनिया में बहुत कम लोगों को होती है. इसके लिए उसे हर महीने खून बदलवाना पड़ता है नहीं तो मर जाएगी. लेकिन, अब खून बदलवाने की वजह से उसकी जान पर बन आई है. पिछले महीने जो खून चढ़ाया गया था वह संक्रमित था. इस कारण उसे हेपेटाइटिस सी हो गया. आरुषि की मां सीमा मिश्रा कहती हैं, "यह नन्ही सी जान जब से जन्मी है, तकलीफें झेल रही है. इसे और कितना झेलना होगा?"

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भारत में जो खून ब्लडबैंकों में उपलब्ध है, उसकी सुरक्षा की ज्यादा गारंटी नहीं है. विशेषज्ञ कहते हैं कि इस खून की जांच में अक्सर गड़बड़ियां होती हैं. और ज्यादातर खून ब्लैक मार्किट से आता है जहां दलाल गरीब लोगों से खून खरीदते हैं. ऐसा ग्रामीण इलाकों में बहुत होता है. ये लोग बीमार या संक्रमित हो सकते हैं और तब भी इनका खून ले लिया जाता है क्योंकि यह बहुत महंगे दामों पर बिकता है. इसी साल जून में जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बीते 17 महीनों में कम से कम दो हजार लोगों को संक्रमित खून चढ़ाने की वजह से एचआईवी हो गया है. सरकार कहती है कि इनमें से कुछ लोग झूठ बोल रहे हैं, जरूर इन्होंने असुरक्षित सेक्स किया होगा और अब खून पर इल्जाम डाल रहे हैं. लेकिन रक्त विशेषज्ञ जे एस अरोड़ा कहते हैं कि आरुषि जैसे लोगों की संख्या ही डेढ़ लाख से ज्यादा है जो संक्रमित रक्त की वजह से बीमार हो जाते हैं. ऐसे लोगों को जीने के लिए खून की लगातार सप्लाई चाहिए और वह सप्लाई ही अगर मौत ले आए तो फिर क्या होगा? भारत की थैलसीमिया वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष अरोड़ा कहते हैं कि हेपेटाइटिस बी या सी के 40 फीसदी मरीज तो संक्रमित रक्त की वजह से ही बीमार हुए हैं. कुछ लोगों को एचआईवी भी इसी वजह से हुआ है.

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एक सच यह भी है कि हाल के सालों में संक्रमित खून के दान में काफी कमी आई है. इसका कारण है कि नियमों को सुधारा गया है और सख्त किया गया है. लेकिन विशेषज्ञ अब भी पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं. वे सप्लाई की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं. भारत में कुल 2670 रजिस्टर्ड ब्लड बैंक. सरकारी और निजी दोनों तरह के अस्पताल इन्हें चला रहे हैं. नियम है कि ब्लड को बैंक में स्टोर करने से पहले उसकी एचआईवी, हेपेटाइटिस और मलेरिया जांच होनी चाहिए. इसके लिए अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल आवश्यक है ताकि संदेह की कोई गुंजाइश ही न रहे. लेकिन ये तकनीकें महंगी हैं और सभी के पास उपलब्ध नहीं हैं. लेकिन विशेषज्ञ इससे आगे की बात करते हैं. वे चाहते हैं कि एक केंद्रीय एजेंसी हो जो खून के संग्रहण का काम करे. ऐसा कई देशों में होता भी है. दक्षिण भारत में खून की सप्लाई पर रिसर्च कर चुकीं शैलजा टेटली कहती हैं, "भारत एक विशाल देश है और सेवाओं की रेंज बहुत ज्यादा है. मतलब यहां बहुत ही अच्छी सेवा भी उपलब्ध है तो कहीं बहुत ज्यादा खराब भी है. इसलिए पूरे सिस्टम को बदलने की जरूरत है क्योंकि जिस तरह भारत में रक्त संग्रहण की सेवाएं काम करती हैं, वह तो बहुत ही खराब है."

तस्वीरेंः मलेरिया, मौत का एक डंक

सेवाओं का हाल कैसा है, गुजरात के 32 बच्चे इसकी जीती जागती लेकिन बहुत दुखद मिसाल हैं. ये बच्चे थैलसीमिया से पीड़ित हैं और 2011 में इन्हें एचआईवी हो गया. इनके वकील परेश वाघेला बताते हैं कि इनमें से 8 बच्चों की एड्स से मौत हो चुकी है. पुलिस एक बार तो केस बंद भी कर चुकी है. उसका कहना था कि किसी आपराधिक मंशा का पता नहीं चला है क्योंकि जिस अस्पताल ने खून चढ़ाया था उसे अलग-अलग जगह से सप्लाई मिली थी. इस केस को दोबारा खोलने की मांग हो रही है.

ब्लड ट्रांसफ्यूजन सर्विसेज के सह-महानिदेशक आर एस गुप्ता कहते हैं, "किसी भी देश में 100 फीसदी शुद्ध खून की सप्लाई की कोई गारंटी नहीं है." क्या यह बात 7 साल की आरुषि को समझाई जा सकती है?

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