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कोविड टीका लगाने से क्यों कतरा रहे हैं लोग?

६ अगस्त २०२१

कोविड-19 का टीका लगाने वालों की संख्या बढ़ने के साथ साथ इसे न लगाने का इरादा कर चुके लोगों की संख्या भी लगता है कम नहीं है. आखिर टीका न लगाने के पीछे उनकी दलील क्या है?

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तस्वीर: Philippe Lopez/AFP

नहीं नहीं, फोटो मत खींचिए और नाम न पूछिए, प्लीज़! मैं कोई सनक भरी कॉन्सपरेसी थ्योरी नहीं चला रहा हूं. मुझे ये ठप्पा नहीं चाहिए. मुझे बस वैक्सीन नहीं लगवानी!”

"मुझे लगता है, ठीक है. आइये मिलते हैं...रिचर्ड और सुजान से.”

कोलोन शहर के बाहर एक पार्क में मुझे ये जोड़ा मिला. रिचर्ड पैकेजिंग इंडस्ट्री में काम करते हैं और सुजान एक अस्पताल में प्रशासनिक काम से जुड़ी हैं. दोनों 50 के हैं और कोविड-19 के लिहाज से हाई-रिस्क ग्रुप में आते हैं.

हम मिलने को इसलिए राजी हुए क्योंकि मैं ये भी समझना चाहता था कि आखिर वे वैक्सीन लगाने के खिलाफ क्यों हैं. मै खुद कोरोना के संक्रमण से उबर कर निकला हूं और मैने टीका भी लगवा लिया है.

मैंने वायरस और उसकी वैक्सीनों के बारे में बहुत लिखा है. और मैं सोचता हूं- कुछ लोग वैक्सीन क्यों नहीं लगाना चाहते हैं? उनकी चिंताएं क्या हैं? उन्हें कहां से जानकारी मिलती है और अपनी दलील वे कैसे पेश करते हैं?

शक करने वालों की बढ़ती संख्या

रिचर्ड कहते हैं, "मुझे लगता है कि वैक्सीन मेरी देह में एक बहुत बड़ा दखल है. हर किसी को ये निर्णय करने का हक होना चाहिए. और सिर्फ इसलिए कि आप वैक्सीन नहीं लगवाना चाहते हैं इसका मतलब ये नही है कि आप गैरजिम्मेदार हैं या जिंदगी से थक चुके हैं.” सुजान, रिचर्ड की हां में हां मिलाती हैं.

ऐसा सोचने वाला ये अकेला जोड़ा नहीं है. और भी लोग हैं. 15 जुलाई तक के आंकड़ों के मुताबिक जर्मनी में करीब आधी आबादी (45 प्रतिशत) को टीके की दोनो डोज लग चुकी हैं और आधे से ज्यादा लोगों (59 प्रतिशत) को पहली डोज लग चुकी है. फिर भी टीकाकरण की दर में गिरावट आ रही है.

रिचर्ड और सुजान ये नहीं कहते कि वे वैक्सीन के सिद्धांत के खिलाफ रहे हैं. बचपन में उन्हें नियमित टीके लग चुके हैं. लेकिन उनका कहना है कि कोविड-19 के टीकों पर उन्हें भरोसा नहीं है. उनके दोस्तों और सहयोगियों को ये बात समझ नहीं आती.

वे कहते हैं कि उन्होंने खारिज कर दिए जाने और समझ की कमी का अनुभव किया है. सुजान अपना क्षोभ जाहिर करते हुए कहती हैं, "उन्हें लगता है कि वैक्सीन लगाने से वे अमर हो जाएंगे. लेकिन वैक्सीन लगाने के बावजूद भी उन्हें इंफेक्शन हो सकता है.”

तस्वीरों मेंः कोविड के खिलाफ कुछ कामयाबियां

नपा-तुला जोखिम?

लेकिन मैं कहता हूं, वैक्सीन आपमें गंभीर संक्रमण का जोखिम कम कर देती है.

रिचर्ड कहते हैं, "हो सकता है ऐसा होता हो लेकिन ये जोखिम के साथ फायदा देखने वाला हिसाब-किताब है बस, और कुछ नहीं. लेकिन ये हो भी जाए...मेरे बहुत से सहकर्मी और दोस्त हैं जिन्हें कोविड-19 था और उनके लक्षण या तो कमजोर थे या वो एक सामान्य फ्लू जैसा था.”

सुजान बीच में टोकती हैं, "मीडिया में गंभीर मामलों और मौतों की खबरें आप सुनते हैं कि लोग या तो सीधे तौर पर या अप्रत्यक्ष तरीके से कोविड-19 की वजह से मरे हैं. लेकिन तब आप पूछें कि उनकी उम्र क्या थी, तो आपको पता चलेगा कि वे 80-90 के हो चुके थे. अब ये दलील मुझे वैक्सीन लेने के लिए नहीं प्रेरित करती.”

जर्मनी के संघीय सांख्यिकीय कार्यालय के मुताबिक पिछले साल देश में कोविड-19 से 36,300 लोगों की मौत हुई थी. अपनी सबसे ताजा रिपोर्ट में कार्यालय कहता है कि 2020 के 30,100 मामलों में कोविड-19 कारण था. और  6,200 मामलों में अन्य बीमारियों के साथ कोविड-19 में भी एक बीमारी थी.

कोविड इंफेक्शन से मरने वाले अधिकांश लोग वाकई उम्रदराज या बुजुर्ग थे. लेकिन मरने वाले अकेले वही नहीं थे. लेकिन रिचर्ड और सुजान का इस पर तर्क है कि इसका संबंध इस बात से भी है कि आपका रहन-सहन कैसा है.

वह कहते हैं, "हम लोग शहर में नहीं रहते हैं, क्लब वगैरा नहीं जाते हैं और हर किसी से मुलाकात में गले नहीं लगते. हम नापतौल कर जोखिम उठाते हैं.”

देखिएः कहां कहां पहुंची वैक्सीन

वैक्सीन के प्रति इच्छा पर कोस्मो का अध्ययन

वैक्सीन लगाने के प्रति जर्मनी में लोगों की दिलचस्पी कम हो रही है. कोस्मो नाम के एक अध्ययन में 41 फीसदी लोगों ने कहा कि वे वैक्सीन लगावाना चाहते हैं. जून की शुरुआत में ये संख्या ज्यादा थी. तब 57 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन लगवाने से कोई गुरेज नहीं था.

रॉबर्ट कोष इन्स्टीट्यूट और दूसरी शोध संस्थाओं के साथ एरफुर्ट यूनिवर्सिटी के इस अध्ययन में 1011 लोग शामिल किए गए थे. 

 

इनमें से कई लोग, ठीक रिचर्ड और सुजान की तरह, नफा नुकसान तौलना चाहते थे. उन्हें टीके में भरोसा नही था या उन्हें लगता था कि दूसरे बहुत से लोगों को टीका लग जाने के बाद उन्हें चिंतित होने की जरूरत नहीं.

सुजान कहती हैं, "अगर आपको कोविड-19 की चिंता है तो वैक्सीन लगवा लीजिए. लेकिन मुझे संक्रमण होने की आशंका काफी कम है, क्योंकि इतने सारे लोगों ने टीका जो लगवा लिया है.” 

तस्वीरों मेंः टीका लगवाने पर दावत

मीडिया में तोड़मरोड़ कर पेश सूचनाएं

रिचर्ड और सुजान को ये भी लगता है कि मीडिया ने कोविड-19 के खतरों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया है.

रिचर्ड के मुताबिक, "हर बार वही एक्सपर्ट और वही बार वही राय.” वह कहते हैं, "जाहिर है, भारत से आई तस्वीरें स्तब्ध कर देने वाली थीं लेकिन क्या हम वाकई अपने हालात की तुलना उनके साथ कर सकते हैं? वहां के हाइजीन का स्तर देखिए और उनके अस्पतालों की भीषण बदहाली देखिए! मुझे तो लगता है कि वहां हर बीमारी तबाही में तब्दील हो जाती होगी. लेकिन यहां तो ऐसा नहीं है.”

बात को आगे बढ़ाती हुई सुजान कहती हैं, "एस्ट्राजेनेका को लेकर वो सारा टंटा देखिए- विरोधाभासी बयान आ रहे थे. या मिली-जुली वैक्सीन का मामला देखिए.” वह इस ओर इशारा करती हैं कि कैसे जानकार और एजेंसियां पहले मिली-जुली वैक्सीन के खिलाफ थे लेकिन अब आंशिक रूप से उसका समर्थन करते हैं.

वह आगे कहती हैं, "और बच्चों के लिए वैक्सीन... अमेरिका में कुछ सौ सवा सौ बच्चों पर कोशिश की गई. और इसका आधार ये था कि एफडीए (अमेरिका का फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) ने ये तय कर लिया था कि सभी बच्चों और किशोरों को टीका लगाना सही है. यूरोप के कुछ देश भी बच्चों को टीका लगाने को तैयार हैं लेकिन कई एजेंसियां अब भी मानती हैं कि ये काफी जोखिम भरा है. और इसे ‘विज्ञान पर आधारित' बताया जा रहा है है, क्या वाकई ऐसा है?”

बार बार अपनी दलीलें दोहराते हुए दोनों काफी उत्तेजित भी हो रहे थे. समझा जा सकता है कि इस बारे में अक्सर लोगों से उनकी कहा-सुनी हो जाती होगी.

सुजान कहती हैं, "हम दोनों ने बेशक इन तमाम मुद्दों के बारे में सोचने में काफी सारा समय लगाया है. किसी नासमझ की तरह जाकर टीका नहीं ले लिया.”

तस्वीरों मेंः वैक्सीन के साइड इफेक्ट

नौकरी के लिए जरूरी टीकाकरण

कोस्मो अध्ययन के शोधकर्ता कहते हैं कि कार्यस्थलों या शिक्षा सेक्टर में अभियान चलाने से टीकाकरण हासिल करने में सुधार आएगा. अपनी रिपोर्ट में जानकारों ने लिखा है कि इसके जरिए लोगों के उन विभिन्न समूहों तक पहुंचने में आसानी होगी जो दूसरे बहुत से लोगों के संपर्क में रहते हैं.  

जब मैंने सुजान और रिचर्ड से कहा कि कुछ दफ्तरों में तो वैक्सीनेशन को अनिवार्य बनाया जा रहा है तो वे संजीदा हो गए. सुजान कहती हैं, "ये तो बड़ी दिक्कत की बात है. हर किसी को तो वैक्सीन नहीं चाहिए, लेकिन समझा जा सकता है कि हमारे नियोक्ता इसकी मांग करे. और अगर आप मना करें तो उनके पास आपको हटाने का आधार हो जाएगा या आपका कॉन्ट्रेक्ट नहीं बढ़ाया जाएगा. रूस में यही हुआ. यहां ये शायद कानूनी न हो लेकिन संभव तो है.” 

सुजान आगे कहती हैं, "मैं अपने इम्प्लॉयर के जरिए अभी इस वक्त टीका ले सकती हूं.”

और ऐसा कहने के बाद कुछ पल के लिए खामोशी छा गई. हम लोगों ने पार्क में दूसरे लोगों की ओर देखा जो लगता था कि अपनी फिर से हासिल सामान्य जीवन का आनंद उठा रहे हैं.

अलविदा के शब्द और उलझनें कायम

स्वस्थ रहिए,” सुजान और रिचर्ड से विदा लेते हुए मैंने कहा. 

थोड़ा खिन्न से दिखते जोड़े ने कहा, हां में सिर हिलायाः "आप भी,” उन्होंने कहा. "और प्लीज हमें सनकी मत लिखिएगा. हमें बस यही लगता है कि हर किसी को अपने बारे में फैसला करने का हक है कि उन्हें टीका लेना है या नहीं. ये फैसला हमारा है, जोखिम हमारा है और बाकी हर किसी को भी इसे मान लेना चाहिए.”

मैंने पार्क में बैठे दोनों लोगों से विदा ली और सोचने लगा कि क्या उन्हें अपनी राय बदलने के लिए मुझे जोर देना चाहिए था. और अगर हां तो कैसे? मै सोचता हूं कि उनका वैक्सीन स्टेटस मेरी चिंता होनी भी चाहिए या नहीं और उन्हें किस हद तक अपने बारे में फैसला करने की छूट मिलनी चाहिए.

सुजान और रिचर्ड के साथ अपनी बातचीत से मैंने ये नतीजा निकाला कि मीडिया में आ रही भ्रामक और एकतरफा सूचनाओं से दोनों खासे परेशान और खिन्न हैं और उन्हीं वजहों से चिंतित और असुरक्षित महसूस करते हैं. 

लेकिन उनकी बहुत सी दलीलें अब भी मेरी समझ से बाहर हैं. मेरे तर्क भी उन्हें विचलित या प्रभावित नहीं कर पाए. मैं खुद भी उलझन में हूं और आखिरकार कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है. शायद वे भी महसूस कर रहे होंगे.

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