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जलवायु कार्यकर्ताओं के सामने डिजिटल चुनौती भी

१ जून २०२१

कोरोना महामारी के दौरान जब जलवायु कार्यक्रम ऑनलाइन होने लगे तो कई कार्यकर्ता खराब इंटरनेट की वजह से शामिल नहीं हो पा रहे हैं. खराब इंटरनेट जलवायु कार्यकर्ताओं के लिए समस्या पैदा कर रहा है.

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तस्वीर: DW

जाम्बिया की जलवायु प्रचारक प्रीशियस कलोम्बवाना अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति अल गोर के साथ ऑनलाइन ट्रेनिंग कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर उत्साहित थीं. लेकिन जब उनकी बोलने की बारी आई तो खराब इंटरनेट के कारण उनकी आवाज और लोगों तक नहीं पहुंच पाई. कोरोना महामारी के कारण आयोजन वर्चुअल तरीके से हो रहे हैं. इनमें यूएन की जलवायु वार्ता भी शामिल है, जो सोमवार, 31 मई से शुरू हुई. जलवायु कार्यकर्ता और विशेषज्ञों के लिए इस तरह के आयोजनों में डिजिटल रूप से शामिल होना आसान हो गया है, लेकिन दुनिया भर में कई ऐसे कार्यकर्ता भी हैं जो कहते हैं विश्वसनीय कनेक्टिविटी के बिना उनकी आवाज कहीं गायब हो जाती है. 

27 साल की कलोम्बवाना के लिए अल गोर के साथ कार्यक्रम निराशाजनक अनुभव था. वह कहती हैं, "जब आप कनेक्ट करने की कोशिश करते हैं और बोलना चाहते हैं, और ऐसा नहीं हो पाता है तो यह बहुत तनावपूर्ण होता है." कलोम्बवाना, सामुदायिक विकास के लिए नागरिक नेटवर्क जाम्बिया के लिए काम करती हैं, नेटवर्क जलवायु कार्रवाई के लिए एक गैर-लाभकारी अभियान चलाता है. थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन ने उन्होंने फोन पर कहा, "मैं उन बैठकों में भाग लेना चाहूंगी क्योंकि एक जलवायु कार्यकर्ता के रूप में मेरे लिए वह बहुत महत्वपूर्ण है. मैं उन बैठकों में लोगों के साथ विचार साझा कर सकती हूं. अगर मैं उन बैठकों में शामिल नहीं हो पाती हूं तो बहुत निराश होती हूं."

Pressebild Fridays for Future | Digitalized Climate Strikes | Indien
भारत में ऑनलाइन जलवायु हड़ताल करते पर्यावरण कार्यकर्तातस्वीर: Fridays For Future Digital

कोविड-19 से पहले जलवायु परिवर्तन पर होने वाले आयोजनों में शामिल होने के लिए भी कलोम्बवाना को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. कठिन वीजा व्यवस्था, लंबी यात्राएं और महंगे हवाई किराए से कई बार ऐसा संभव नहीं हो पाता था लेकिन आयोजन डिजिटल रूप से होने लगे तो यह आसान हुआ. डिजिटल आयोजन में सिर्फ लॉग इन करने की जरूरत होती है. लेकिन इस बदलाव ने डिजिटल विभाजन को भी उजागर किया है. खासकर गरीब क्षेत्रों और विकासशील देशों में रहने वाले जलवायु कार्यकर्ता अक्सर सबसे खराब कनेक्टिविटी से जूझते हैं. 

बहुत से लोग इंटरनेट के लिए अपने कार्यालय पर निर्भर हैं लेकिन महामारी के कारण वे वहां जा नहीं सकते हैं. जबकि अन्य लोगों को अधिकारियों द्वारा जानबूझकर इंटरनेट शटडाउन का सामना करना पड़ता है. म्यांमार जैसे देश में तो लोग खराब गुणवत्ता वाले मोबाइल फोन डेटा तक सीमित हैं. क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल में जलवायु प्रभावों पर वरिष्ठ सलाहकार हरजीत सिंह कहते हैं, "यह अनुचित परिणामों की ओर ले जाने वाला है और यह देशों के बीच मौजूद शक्ति असमानताओं को सुदृढ़ करने वाला और साथ ही विरोध की आवाज को बंद करने वाला है." 

ऑफलाइन समर्थन

सम्मेलन के प्रारूपों में बदलाव के अलावा, कार्यक्रम के आयोजक आर्थिक तौर पर कार्यकर्ताओं की मदद डिजिटल विभाजन को पाटने के लिए कर सकते हैं. कुछ संगठन इंटरनेट डेटा के लिए अनुदान भी देते हैं. यही नहीं कुछ ऐसे संगठन भी हैं जो कार्यकर्ताओं के अच्छे होटल में रहने और वहां से काम करने का खर्च उठाते हैं, जिससे पर्यावरण कार्यकर्ताओं को ऐसे सम्मेलनों में भाग लेने में कोई दिक्कत ना हो. सिंह कहते हैं नेपाल में संयुक्त राष्ट्र के एक कार्यालय ने उन कार्यकर्ताओं को आमंत्रित किया है जिनकी इंटरनेट के अच्छे कनेक्शन तक पहुंच नहीं हैं. ऐसे कार्यकर्ता कार्यालय में जाकर पर्यावरण से जुड़े सम्मेलनों में ऑनलाइन शामिल हो सकते हैं.

सिंह कहते हैं कि यूएन के कार्यक्रम गंभीर विषयों पर होते हैं और ऐसे में लोग घर के माहौल में रहते हुए उन आयोजन में शामिल होना एक मुश्किल कार्य मानते हैं. वे कहते हैं, "आपको उस विषय पर पूरा ध्यान देने की आवश्यकता है जिसका मतलब है कि आप घर वाले माहौल में कतई नहीं हो सकते हैं."

एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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