1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

डच कंपनी ने बनाया ‘जिंदा ताबूत’

२४ सितम्बर २०२०

नीदरलैंड की एक कंपनी ने एक ऐसा ताबूत बनाया है जो दफनाने के बाद ना केवल खुद पूरी तरह से गल कर खत्म हो सकता है बल्कि उसमें रखे शव को भी पूरी तरह विघटित कर सकता है.

https://p.dw.com/p/3ivQY
Niederlande | biologische Särge aus Mycelium
तस्वीर: Esther Verkaik/Reuters

लूप नामक एक डच कंपनी ने एक नए तरह का ताबूत बनाया है. यह लकड़ी की बजाय फंगस से बना है और मृतक के शरीर समेत खुद को पूरी तरह विघटित कर सकता है. मृत्यु के बाद तो शरीर अपने आप ही धीरे धीरे विघटित होता है. लेकिन कंपनी का कहना है कि इस खास ताबूत की मदद से मृतक के शरीर को इस तरह विघटित किया जा सकेगा कि वह पेड़ पौधों के लिए पोषक तत्व के रूप में बदल जाए. यही कारण है कि कंपनी उसे "जिंदा ताबूत" कह रही है क्योंकि इसमें रखे गए व्यक्ति का शरीर प्राण छोड़ने के बाद भी अनगिनत पेड़-पौधों को जीवन दे सकेगा.

लूप ने जानकारी दी है कि ताबूत की बाहरी दीवारें जिस पदार्थ की बनी हैं उसे मायसीलियम कहते हैं. मशरूम जैसे किसी फंगस का मिट्टी के भीतर जड़ों जैसा दिखने वाला हिस्सा मायसीलियम कहलाता है. इसके अलावा ताबूत के भीतर काई की एक मोटी परत बिछाई गई है, जो विघटन को तेज करने में मदद करती है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में इसके निर्माता बॉब हेंड्रिक्स ने बताया कि असल में मायसीलियम प्रकृति के सबसे बढ़िया रिसाइकिल एजेंटों में से एक है. उन्होंने बताया कि मायसीलियम ”लगातार भोजन की तलाश करता रहता है और उसे पौधों के लिए पोषक पदार्थों में बदलता रहता है."

Niederlande | biologische Särge aus Mycelium
किसी फंगस का मिट्टी के भीतर जड़ों जैसा दिखने वाला हिस्सा है मायसीलियम.तस्वीर: Esther Verkaik/Reuters

इसका एक और अहम गुण यह है कि मायसीलियम जहरीले पदार्थों को भी खा सकता है और उन्हें भी पौधों के काम के पोषक तत्वों में बदल देता है. हेंड्रिक्स ने बताया कि कैसे इसी खास गुण के कारण परमाणु हादसा झेलने वाले चेर्नोबिल में मायसीलियम का इस्तेमाल मिट्टी को साफ करने में किया गया.” ताबूत बनाने में इसका इस्तेमाल करने के पीछे भी यही सोच थी. हेंड्रिक्स कहते हैं कि "शवों को दफनाने की जगह पर भी यही होता है. वहां भी मिट्टी बहुत प्रदूषित होती है और वहां मायसीलियम को उसकी पसंदीदा धातुएं, तेल और माइक्रोप्लास्टिक मिल जाते हैं."

इस ताबूत को बनाने की प्रक्रिया भी उतनी ही सजीव है जितना यह उत्पाद. असल में इसे किसी पौधे की ही तरह उगाया जाता है और एक ताबूत को उगाने में एक हफ्ते का समय लग जाता है. नीदरलैंड की डेल्फ्ट टेक्निकल यूनिवर्सिटी में ‘लूप' कंपनी के लैब में इसके लिए एक सामान्य ताबूत के सांचे के ऊपर इसे उगाने का काम होता है, मायसीलियम के फलने फूलने के लिए उसे लकड़ी की पतली पतली परतों के साथ मिला कर इस सांचे पर फैला दिया जाता है. करीब एक हफ्ते के बाद इसे सांचे से निकाल कर सुखाया जाता है और तब वह इतना मजबूत होता है कि 200 किलो तक का भार उठा सके. 

एक बार मृत शरीर के साथ मिट्टी में गाड़ दिए जाने के 30 से 45 दिनों में यह ताबूत धरती में मौजूद पानी के संपर्क में आकर गल जाता है. कंपनी का कहना है कि इसके बाद अगले केवल 2 से 3 सालों में ही शव पूरी तरह गल जाएगा. पारंपरिक ताबूतों में दफनाए जाने वाले शवों को इसमें 10 से 20 साल लगते हैं. अब तक कंपनी ने ऐसे दस ताबूत उगाए और बेचे हैं. ऐसे एक ताबूत की कीमत 1,500 यूरो यानि करीब सवा लाख भारतीय रुपये है.

आरपी/एके (रॉयटर्स)

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore