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सात दशक बाद भी सवाल वही है: क्या आप आजाद हैं?

विवेक कुमार१२ अगस्त २०१६

भारत से बाहर बैठकर सिर्फ खबरों में देश को देख पाने वाले लोगों के लिए माहौल में जोश जरा भी नहीं है. क्या वाकई ऐसा है? क्या देश में स्वतंत्रता दिवस का जोश नहीं है?

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Indien Unabhängigkeitstag
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Panthaky

सरकार और सत्ताधारी पार्टियां स्वतंत्रता दिवस की तैयारियों में लगी है. आयोजनों की तैयारी में लगे अधिकारी और नागरिकों पर अच्छे प्रदर्शन का दबाव है. ब्राजील में ओलंपिक चल रहा है. एक के बाद एक खिलाड़ी मेडल की दौड़ से बाहर होते जा रहे हैं. मंत्रीजी देश का मजाक बनवा रहे हैं. खिलाड़ी सुविधाओं को रो रहे हैं. और लोग ट्विटर-फेसबुक पर मजे ले रहे हैं. भारत से बाहर बैठकर सिर्फ खबरों में देश को देख पाने वाले लोगों के लिए माहौल में जोश जरा भी नहीं है. क्या वाकई ऐसा है? क्या देश में स्वतंत्रता दिवस का जोश नहीं है? आजाद देश के रूप में सात दशक गुजार लेने का गर्व सीना नहीं फुला पा रहा है? क्या उस जोश पर गाय का गोबर फिर गया है? हमने अपने संवाददाताओं से कहा कि उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम पर जरा एक बार नजर दौड़ाएं देखें कि माहौल कैसा है. देखें कि नॉर्थ ईस्ट कुछ बदला है या नहीं. देखें कि विकसित पश्चिमी भारत में आजादी के क्या मायने बन पाए हैं. देखें कि उत्तर के लोग क्या चाह रहे हैं और दक्कन से कैसी आवाजें आ रही हैं. लीजिए, पेश हैं 70वें स्वतंत्रता दिवस पर चारों दिशाओं से आ रही सदाएं...

उत्तर में उत्तर प्रदेश चुनावों के मुहाने पर है और सबका ध्यान मुसलमानों पर है. लेकिन मुसलमानों का ध्यान किस पर है? वे कितने आजाद महसूस कर रहे हैं. सुहैल वहीद लिखते हैं कि हर तरफ उसे शक की निगाह से देखा जा रहा है और उसकी बात सुनने वाला कोई नहीं है. उसके दोस्त उससे भले ही हमदर्दी रखें, उसे उसके हाल पर छोड़ कर चलते बनते हैं. लेकिन फिर भी उसे चिंता जरा कम ही है, क्योंकि उसका अल्लाह पर भरोसा कुछ ज्यादा ही है. पूरी बात पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

गुजरात और महाराष्ट्र देश के सबसे विकसित राज्य हैं. यहां सबसे ज्यादा राजस्व जुटाया जाता है. लेकिन राजस्व विकास होता है क्या? विश्वरत्न लिखते हैं कि विकास के तमाम आकड़ों के बीच सरकार के ही आकड़ों के हिसाब से महाराष्ट्र में सवा दो करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा के नीचे का जीवन जी रहे हैं. गरीबी से उपजे कुपोषण से हर साल करीब 45,000 बच्चे मर जाते हैं. वहीँ यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात भी कुपोषण से जूझ रहा है. पढ़िये, यहां क्लिक करके.

उधर नॉर्थ ईस्ट चले जाएं तो हाल यह है कि अब तक बहस इस बात पर हो रही है कि वे हमें हिंदुस्तानी कहते हैं और हम उन्हें विदेशी. आज भी वे, वे हैं और बाकी इंडियन. और उनके लिए स्वतंत्रता दिवस का मतलब उग्रवादी संगठनों की हड़ताल है. पूरी बात पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

और सबसे परेशान है भारत के आदिवासी, जिनका ना ठौर बचा है ना ठिकाना. जंगल की रक्षा करते हुए वे विकास की मुख्यधारा में कैसे आएं. आधुनिक शहरी संस्कृति के संपर्क ने आदिवासी युवाओं को एक ऐसे दोराहे पर खड़ा कर दिया है, जहां वे न तो अपनी संस्कृति बचा पा रहे हैं और न ही पूरी तरह मुख्यधारा में ही शामिल हो पा रहे हैं. पूरी बात पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

कुलदीप कुमार बहुत सही लिखते हैं कि सरकार को आजादी का जश्न मनाने के लिए इतनी मेहनत इसलिए करनी पड़ रही है क्योंकि लोगों में उत्साह नहीं है. उनका लिखा पूरा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

आजाद होना एक मानसिक अवस्था नहीं है. आजाद होने के लिए आजाद नजर आना पड़ता है. उसे महसूस करना पड़ता है. जीना पड़ता है. और आजादी की रक्षा के लिए हर पल संघर्ष करना पड़ता है. राजनैतिक आजादी के अलावा आर्थिक और बौद्धिक आजादी भी जरूरी है. तो जवाब दीजिए, क्या आप आजाद हैं?