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क्यों नहीं हो रहा बिहार में बाढ़ का समाधान

मनीष कुमार
३० जुलाई २०२१

सब जानते हैं कि नेपाल के पहाड़ों से आने वाली नदियां बिहार में तबाही मचाती हैं. तो क्या भारत और नेपाल, दोनों ही इसके समाधान के प्रति उदासीन हैं?

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नेपाल से सटे बिहार के सात जिलों में नेपाल से निकलने वाली नदियां बाढ़ लाती हैं. तस्वीर: M. Kumar/DW

तभी तो नेपाल के बराह क्षेत्र में बांध निर्माण के लिए सर्वे का काम आज भी दोनों ही देशों की सरकारों के उदासीन रवैये के कारण अटका पड़ा है. नेपाल के साथ साथ भारत की केन्द्र सरकार भी इसके निर्माण में दिलचस्पी नहीं दिखा रही. एक तरफ बाढ़ की परियोजनाएं अधूरी पड़ी हुईं हैं तो नदियों को जोड़ने की योजनाएं भी धरातल पर नहीं उतर सकीं हैं. कइयों को तो अभी केंद्र सरकार की मंजूरी का इंतजार है. आजादी के बाद से ही हर साल बिहार बाढ़ की विभीषिका से जूझता रहा है. इस बार भी एनडीआरएफ की सात और एसडीआरएफ की नौ टीमें 11 लाख लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा चुकी है. करीब 15 लाख की आबादी बाढ़ से प्रभावित है.

बिहार भारत का सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित राज्य है. देश की कुल बाढ़ प्रभावित आबादी में 22.1 प्रतिशत हिस्सा बिहार का ही है. बिहार के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 73.06 फीसदी इलाका बाढ़ की मार झेलने को विवश है. बिहार में देश के अन्य बाढ़ प्रभावित राज्यों की तुलना में नुकसान ज्यादा होता है. राष्ट्रीय बाढ़ आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक देश के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का 16.5 प्रतिशत बिहार में है लेकिन इससे नुकसान 22.8 प्रतिशत का है.

वहीं यूपी में 25 फीसदी बाढ़ प्रभावित इलाके हैं लेकिन नुकसान सिर्फ 14.4 प्रतिशत का है. बिहार सरकार 1979 से बाढ़ के आंकड़े प्रकाशित करती आई है और तबसे अब तक बाढ़ से लगभग 10 हजार लोगों की मौत हो चुकी है. पिछले पांच साल से हर साल औसतन राज्य के 19 जिलों में बाढ़ आती है और इस दौरान करीब 130 करोड़ की निजी संपत्ति का नुकसान हुआ है.

Indien Bihar | Flut | Naturkatastrophe
बिहार में देश के अन्य बाढ़ प्रभावित राज्यों की तुलना में नुकसान ज्यादा होता है. तस्वीर: M. Kumar/DW

उत्तर बिहार में मुख्य तौर से गंगा, कोसी, महानंदा, बागमती, गंडक, बूढ़ी गंडक, कमला, अधवारा समूह और कनकई नदियां कहर ढाती हैं, वहीं दक्षिण बिहार में सोन, पुनपुन और फल्गु नदियों से बाढ़ आती है. बिहार में जो नदियां बहती हैं, उसका उद्गम स्थल ज्यादातर नेपाल में ही है. नेपाल से नदियां बहती हुई बिहार में आती है. नेपाल में जब बारिश अधिक होती है तो नदियों का जलस्तर बढ़ने लगता है और फिर बिहार में भी नदियां रौद्र रूप दिखाना शुरु कर देती है. करीब 50 छोटी बड़ी नदियां नेपाल से आए पानी से बाढ़ लाती हैं.

पानी के बदलते रंग से मिलती है बाढ़ की आहट

नेपाल से सटे बिहार के सात जिलों में इसका ज्यादा प्रभाव देखने को मिलता है. कोसी नदी को तो बिहार का शोक ही कहा जाता है. कोसी नदी भारत और नेपाल के बड़े इलाके में फैली हुई है. इसका जलग्रहण क्षेत्र 95,656 वर्ग किलोमीटर तक फैला हुआ है. 2008 में कोसी नदी के कारण ही कुसहा के पास बांध टूटा था जिससे बहुत बड़ी आबादी प्रभावित हुई थी और करोड़ों का नुकसान हुआ था. जिसके निशान अब तक सुपौल, सहरसा, मधेपुरा और अररिया जैसे जिलों में देखने को मिल रहे हैं. 

कोसी इलाके में लोग नदी में पानी के बदलते रंग को देख कर बाढ़ का अनुमान लगा लेते हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि जब नदी के पानी का रंग लाल होने लगता है तब लोग यह समझ लेते हैं कि नदी में हिमालय से पानी आने लगा है और लोग बाढ़ से बचाव की तैयारी शुरु कर देते हैं. अकसर मई के आखिरी हफ्ते और जून के पहले हफ्ते के बीच पानी का रंग लाल होने लगता है. जल विशेषज्ञ भगवानजी पाठक के मुताबिक, "कोसी रंग से ही पहचानी जाती है कि उसका रूप कैसा होगा. प्रारंभिक दौर में ललपनिया, रौद्र रूप में मटमैला जो उसके गुस्सा को दर्शाता है और सौम्य रूप में शांत, निर्मल और स्वच्छ दिखती है कोसी."

नदी जोड़ परियोजनाओं की हकीकत

बिहार समेत देश में नदियों को जोड़ने की परियोजना का शोर बहुत रहा है लेकिन जमीनी सच्चाई इससे कोसों दूर है. धरातल पर काम होता दिख नहीं रहा है. नदी जोड़ परियोजना का मुख्य मकसद था कि जिस नदी में पानी ज्यादा है उसे वैसी नदी से जोड़ना जिसमें पानी कम हो. इससे दो फायदे थे, पहला बाढ़ से बचाव होता और दूसरा सिंचाई की सुविधा भी मिलती. बिहार सरकार ने पहले बाढ़ के लिए जिम्मेदार दो मुख्य नदियों, बागमती और बूढ़ी गंडक को जोड़ने की योजना बनाई थी लेकिन इस पर केंद्र की मंजूरी नहीं मिली. केंद्र सरकार ने इसे व्यावहारिक नहीं माना.

बिहार में ऐसी आठ नदी परियोजनाएं प्रस्तावित हैं. कोसी मेची परियोजना को केंद्र सरकार की अनुमति मिल गयी है. बिहार सरकार की कोशिश है कि केंद्र इसे राष्ट्रीय योजना घोषित कर दे ताकि 4,900 करोड़ रुपये की इस परियोजना का 90 प्रतिशत खर्च केंद्र उठाए. इस योजना के तहत 76.20 किलोमीटर लंबी नहर बना कर कोसी के अतिरिक्त पानी को महानंदा बेसिन में ले जाया जाएगा. बिहार सरकार के अवकाश प्राप्त मुख्य अभियंता इंदुभूषण कुमार का कहना है कि "कोसी-मेची नदी जोड़ योजना बाढ़ की समस्या को कुछ हद तक कम करेगी. नदियों का अधिक पानी जब दूसरी कम पानी वाली नदी में जाएगा तो बाढ़ का कहर कम होगा."

वहीं बिहार के जल संसाधन मंत्री संजय झा के अनुसार, "बिहार सरकार जल्द अपने दम पर छोटी नदियों को जोड़ने का काम शुरु करेगी." बिहार के प्रसिद्ध भूगर्भ शास्त्री प्रो आरबी सिंह भी कहते हैं, "इससे बरसाती नदियों का कहर कम हो सकता है जो कम समय में ज्यादा तबाही मचा कर निकल जाती है. वैसी नदियों को जोड़ने पर बाढ़ से काफी राहत मिल सकती है."

कई परियोजनाएं पड़ी हैं अधूरी

सरकार ने बाढ़ से बचाव और सिंचाई की व्यवस्था को देखते हुई कई नदी परियोजना की शुरुआत की लेकिन इसका भी फायदा मिलता दिख नहीं रहा है. जमीन की कमी, स्थानीय लोगों का विरोध, लालफीताशाही और राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव के कारण योजनाएं मूर्त रुप नहीं ले पायी हैं. चाहे गंडक या महानंदा नदी परियोजना हो या फिर बागमती या कोसी नहर परियोजना हो, सभी अपने लक्ष्य से कोसों दूर है.

महानंदा नदी परियोजना से पूर्णिया, कटिहार,अररिया, किशनगंज की करीब पचास लाख की आबादी को बाढ़ से राहत मिलती, लेकिन यह योजना पूरी नहीं हो पायी है. बागमती परियोजना से सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, शिवहर जिले में बाढ़ से राहत मिलती. किंतु अधूरी परियोजना के कारण बाढ़ का पानी नए इलाके में फैल रहा है. मुजफ्फरपुर के औराई, कटरा और गायघाट ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं. सीतामढ़ी के पुपरी में पिछले दो साल से बांध टूट रहा है. स्थायी तौर पर मरम्मत नहीं होने से बाढ़ का खतरा बढ़ता ही जा रहा है.

पूर्वी चंपारण में बूढ़ी गंडक को सिकरहना नदी के नाम से जाना जाता है. वहां पर 93 किलोमीटर लंबा बांध बनना है लेकिन काम शुरु नहीं हो पाया है. गंडक नहर परियोजना के तहत 1,200 किलोमीटर लंबा बांध बनना है, लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के कारण योजना अधर में लटक गयी है. कोसी नहर योजना के तहत पश्चिमी कोसी नहर प्रणाली जमीन के अभाव में हाल तक अटकी पड़ी थी.

कब पूरी होगी कोसी हाई डैम परियोजना

बिहार के जलसंसाधन मंत्री संजय झा का साफ मानना है, "जब तक नेपाल में कोसी नदी पर हाई डैम नहीं बनाया जाता तब तक बिहार में बाढ़ की समस्या से निजात नहीं मिल सकेगी." नेपाल और भारत के बीच कई दौर की बातचीत के बावजूद कोसी हाई डैम परियोजना की शुरुआत तक नहीं हो पायी है. नेपाल में कोसी नदी पर बांध बनाने से कोसी के प्रवाह को नियंत्रित करने में सहायता मिलेगी क्योंकि कोसी का उद्गम स्थल नेपाल में ही है. इस परियोजना के पूरा होने से दक्षिण पूर्व नेपाल और उत्तर बिहार को बाढ़ से राहत मिलती वहीं जल विद्युत का भी उत्पादन होता. साथ ही दोनों देशों को सिंचाई और नौ-परिवहन की भी सुविधा मिलती. लेकिन नेपाल में स्थानीय लोगों के विरोध के कारण आज तक सर्वे तक का काम नहीं हो पाया है.

बिहार सरकार के प्रयास से 2004 में नेपाल के काठमांडू, लहान व विराट नगर में सर्वे के लिए कार्यालय खोले गए, किंतु स्थानीय लोगों के भारी विरोध के कारण काम नहीं हो सका. नेपाल के लोगों का मानना है कि कोसी पर हाई डैम बनने से पर्यावरण पर बुरा असर पड़ेगा और बहुत बड़ा भू-भाग डूब जाएगा. भारत और नेपाल के बीच हाईडैम को लेकर पिछले बीस साल में कई बार बातचीत हो चुकी है लेकिन नतीजा अब तक शून्य ही है. नेपाल सरकार हर बार आश्वासन देती है कि काम जल्द शुरु हो जाएगा लेकिन आश्वासन हकीकत में परिणत होता नहीं दिख रहा है.

जल्द उफान मारने लगीं हैं नदियां

नदियों में जमा होता गाद भी बिहार में बाढ़ का एक अन्य कारण है. नदियों की तलहटी की सफाई नहीं होने के कारण गाद जमा होता जाता है. गंगा के साथ ही कोसी और गंडक नदी में गाद की समस्या बढ़ती जा रही है. सरकार का ध्यान सिर्फ गंगा में गाद की समस्या पर ही है. फिर भी गंगा में गाद की समस्या का निराकरण नहीं हो रहा है. विशेषज्ञों के मुताबिक गंगा में गाद होने का बड़ा कारण फरक्का बराज है. अन्य नदियों से भी गाद गंगा में बाढ़ के पानी से आता है लेकिन वह बंगाल की खाड़ी में नहीं जा पाता है. क्योंकि फरक्का में बांध बन जाने के कारण गाद बांध पर रुक जाता है.

केन्द्रीय जल आयोग के अनुसार फरक्का में गंगा में गाद जमा होने की दर 218 मिलियन टन प्रति वर्ष है. गाद के कारण नदी की गहराई कम हो जाती है नतीजतन बारिश के कारण जलस्तर बढ़ने से नदी का पानी आसपास फैलने लगता है और वह बाढ़ प्रभावित क्षेत्र बन जाता है. गाद के कारण नदी की अविरलता प्रभावित होती है. बिहार के मुख्यमत्री नीतीश कुमार कई बार गंगा की अविरलता बनाए रखने की मांग उठाते रहे हैं. बाढ़ विशेषज्ञ दिनेश कुमार मिश्र भी मानते हैं कि  "बिहार में बाढ़ की समस्या की मूल वजह पानी की निकासी न होना और उसके साथ आने वाला गाद है."

विशेषज्ञों के अनुसार बिहार की भौगोलिक स्थिति ही ऐसी है कि यहां बाढ़ को टाला नहीं जा सकता है लेकिन सही प्रयास किया जाए तो उसके दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है. तभी तो बाढ़ विशेषज्ञ दिनेश कुमार मिश्र कहते हैं "बिहार में बाढ़ के आने को रोका जाना संभव नहीं है, लेकिन बेहतर प्रबंधन से आम जनजीवन को होने वाले नुकसान को अवश्य ही कम किया जा सकता है." इसलिए जरूरी है कि भारत और नेपाल सरकार के बीच बिना समय गवाएं सकारात्मक बातचीत हो, ताकि नेपाल के बराह क्षेत्र में बहुद्देशीय बांध निर्माण की बहुप्रतीक्षित योजना मूर्त रूप ले सके.