1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

बच्चों को पढ़ाने के लिए कंटेनर में शुरू हुआ स्कूल

६ फ़रवरी २०१७

फुटपाथ पर रहने वाले बच्चे स्कूलों में दाखिला तो ले लेते हैं लेकिन बीच में ही छोड़ देते हैं. इसलिए अब प्रशासन ने स्कूलों को ही इन बच्चों के करीब ले जाने की पहल की है.

https://p.dw.com/p/2X3AO
Indien Straßenkinder in Neu Delhi
तस्वीर: Getty Images/AFP/C. Khanna

फुटपाथ पर जिंदगी गुजार रहे इन बच्चों के लिए स्कूलों तक जाना आसान नहीं है. इन बच्चों को स्कूलों तक लाने की कोशिशें लंबे समय से हो रही हैं. कई बार ये बच्चे स्कूलों में दाखिला तो ले लेते हैं लेकिन बीच में ही छोड़ देते हैं इसलिए अब प्रशासन ने स्कूलों को ही इन बच्चों के करीब ले जाने की पहल की है.

प्रशासन ने गैर लाभकारी संस्थानों के साथ मिलकर सिग्नल स्कूल और ऐसे छोटे स्कूलों को शुरू किया है जो इन बच्चों के रहने की जगह के एकदम नजदीक है. इसी तरह का पहला स्कूल पिछले वर्ष जून में मुंबई से सटे ठाणे में एक व्यस्तम फ्लाइओवर के नीचे शिपिंग कंटेनर में शुरू किया गया था.

ठाणे नगर निगम के डिप्टी कमिश्नर मनीष जोशी के मुताबिक "इन बच्चों के माता-पिता को इन्हें स्कूल भेजने के लिए तैयार करना आसान नहीं था, क्योंकि उनके लिए बच्चों के काम न करने से अतिरिक्त कमाई बंद हो जाती. लेकिन वे साथ आए और हमारी कोशिशों के साथ जुड़े. एक ऐसे शहर में जहां जगह की कमी है और बाहर से आने वाले लोग बड़ी संख्या में हैं वहां यह बेहतरीन उपाय रहा.”

यह भी देखिए, किस देश के बच्चे सबसे होशियार हैं

देश में सड़क-फुटपाथों पर रहने वाले बच्चों को लेकर कोई भी आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. निजी संस्थाओं के मुताबिक देश में करीब 10 लाख तक ऐसे बच्चे हैं. इनमें से कई तो वे हैं जो मौकों की तलाश में अपने परिवारों के साथ बाहर से यहां पहुंचे हैं. 

एक्शनएड और टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के डेटा के मुताबिक साल 2013 में मुंबई में ही 37 हजार से भी अधिक ऐसे बच्चे थे.

सस्ते घरों को भी न जुटा सकने वाले ये प्रवासी लोग अकसर मुंबई से सटे इलाकों में अपने ठिकाने बना लेते हैं. ठाणे में भी फुटपाथों और फ्लाइओवरों के नीचे रहने वालों की संख्या कोई कम नहीं जो छोटे मोटे काम कर तो कई बार भीख मांग कर भी अपनी जरूरतों को पूरा करते हैं.

देश में शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 14 साल से कम उम्र के बच्चों के निशुल्क शिक्षा पाने का अधिकार देता है लेकिन इसके बाद भी स्कूलों और चैरिटी संस्थानों के लिए सड़कों और फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों को स्कूलों तक ले जाना बहुत मुश्किल साबित होता है.

ठाणे में स्ट्रीट स्कूल चलाने वाले भाटू सावंत के मुताबिक इनके रहने के निश्चित ठिकाने न होना एक बहुत बड़ी समस्या है.

तस्वीरों में, कहां सबसे कम स्कूल जाते हैं बच्चे

फुटपाथ और फ्लाइओवर जैसे जगहों में स्कूल शुरू करने से पहले प्रशासन ने पूरी साफ-सफाई कराई. बच्चों के खेलने के लिए एक छोटा सा मैदान बनाने की भी कोशिश की गई और दरवाजे पर चौकीदार भी बिठाया गया. कंटेनर को भी चमकीले रंगों से पोता गया और इसमें पंखे और लाइटें भी लगाई गईं. इस क्लास में 35 बच्चे आ जाते हैं. साथ ही यहां टीचर रूम भी है. बच्चों का सामान सुरक्षित रहे इसके लिए अलमारियों की भी व्यवस्था है. स्कूल में यह भी सुविधा है कि बच्चे खाली समय में अपने मां-बाप का हाथ बंटाने जा सकते हैं. आम तौर पर स्कूल 7 घंटे रोजाना चलता है. इनकी सेहत का ध्यान रखने के लिए यहां एक डॉक्टर भा आता है.

सावंत कहते हैं कि आप बच्चों को जबरन स्कूल में नहीं ला सकते इसलिए हमें ही इनके हिसाब से कुछ बदलना होगा. 

शिक्षकों को ट्रेनिंग देने वाली आरती परम बताती हैं, "शुरुआती दिनों में इन बच्चों को एक जगह बैठाना बहुत मुश्किल था, ये आपस मे लड़ते थे और कई बार सो भी जाते थे."

पिछले महीने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि राज्य में इस तरह के सिग्नल स्कूल मॉडल को अन्य जगहों पर भी शुरू किया जाएगा.

एए/वीके (रॉयटर्स)