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मिल गया त्वचा को हमेशा जवान रखने वाला तत्व

४ अप्रैल २०१९

कौन नहीं चाहता कि चेहरा हमेशा चमकता दमकता और जवान दिखे. इसी ललक में लोग तरह तरह की महंगी क्रीम भी खरीदते हैं. वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने त्वचा को जवान रखने वाले तत्वों का पता लगा लिया है.

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DW Fit und gesund - Sendung 01.03.2019 |  Anti-Aging Mann mit Spiegel
तस्वीर: picture-alliance/BSIP

अकसर फिल्मी सितारों के बोटॉक्स इत्यादि इस्तेमाल करने की खबरें सामने आती रहती हैं. मकसद हमेशा यही होता है कि चेहरे पर झुर्रियां ना दिखें और बढ़ती उम्र के बावजूद त्वचा जवान दिखती रहे. अब वैज्ञानिकों ने एक ऐसा प्रोटीन खोज लिया है जो त्वचा को जवान दिखने में मददगार साबित हो सकता है. इस प्रोटीन का नाम है COL17A1. 

रिसर्च जापान स्थित टोक्यो मेडिकल एन्ड डेंटल यूनिवर्सिटी में की गई है. यहां के स्टेम सेल बायोलॉजी डिपार्टमेंट की एमी निशिमुरा ने बताया कि उम्र के बढ़ने से त्वचा में COL17A1 की मात्रा घटती रहती है. इसके अलावा सूरज की परा बैंगनी किरणें और तनाव भी इसके दुश्मन होते हैं.

हमारे शरीर में लगातार पुरानी कोशिकाओं के मरने और नई कोशिकाओं के बनने का सिलसिला चलता रहता है. ये त्वचा में भी होता है. COL17A1 की कमी के चलते कमजोर कोशिकाएं ही अपना प्रतिरूप बनाती रहती हैं. यानी जो नई कोशिकाएं त्वचा में आती हैं, वे भी कमजोर ही होती हैं. नतीजतन त्वचा पतली हो जाती है, उसे आसानी से नुकसान पहुंचने लगता है और कोशिकाओं की मरम्मत में भी ज्यादा वक्त लगता है. निशिमुरा ने बताया, "हर दिन हमारी त्वचा में थके और पुराने स्टेम सेल की जगह स्वस्थ स्टेम सेल ले सकते हैं."

इस शोध के लिए चूहे की पूंछ का इस्तेमाल किया गया जिसकी त्वचा इंसानी त्वचा से बहुत मेल खाती है. रिसर्चर जानना चाहते थे कि COL17A1 के पूरी तरह खत्म हो जाने के बाद भी क्या कोई ऐसी प्रक्रिया आजमाई जा सकती है जिससे यह प्रोटीन फिर से बनने लगे. इसके लिए उन्होंने दो रसायनों पर ध्यान दिया - एपोसिनीन और Y27632. इन दोनों ही रसायनों के सकारात्मक असर दर्ज किए गए. नेचर पत्रिका में छपी इस रिपोर्ट में लिखा गया है, "इन रसायनों के इस्तेमाल के बाद त्वचा पर हुए घावों पर काफी असर देखा गया और वे जल्द ठीक हो सके."

रिसर्च में शरीर में होने वाली "सेल कॉम्पिटीशन" यानी कोशिकाओं में प्रतिस्पर्धा की प्रक्रिया पर खास तौर से ध्यान दिया गया है. रिसर्च को रिव्यू करने वाले कोलोराडो यूनिवर्सिटी के दो प्रोफेसरों ने नेचर पत्रिका में लिखा है कि इससे पहले इस प्रक्रिया को केवल फलों में ही जांचा गया है. यह पहला मौका है जब इंसानी त्वचा पर इस प्रक्रिया के असर पर कोई शोध हुआ हो.

एमी निशिमुरा ने समचार एजेंसी एएफपी को बताया कि बहुत मुमकिन है कि इस शोध के सफल होने के बाद इन रसायनों और प्रोटीन का क्रीम या गोलियां बनाने के लिए इस्तेमाल होने लगे, "हम दवा और कॉस्मेटिक बनाने वाली कंपनियों के साथ मिल कर इस दिशा में काम करेंगे." उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य में इस बारे में भी शोध होंगे कि क्या इस तरह की प्रक्रिया शरीर के अन्य अंगों पर भी असर करती है क्योंकि ऐसे में खराब हो चके अंगों की मरम्मत की जा सकेगी.

आईबी/एके (एएफपी)

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