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“कराची अफेयर” की पूरी कहानी

१७ जून २०२०

1990 के दशक में हथियारों की बिक्री से जुड़े मामले में करोड़ों की घूस लेने के जुर्म में पेरिस की अदालत ने छह लोगों को दोषी करार दिया है. पाकिस्तान के कराची से इसका गहरा संबंध होने के कारण यह मामला “कराची अफेयर” कहलाया.

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फ्रेंच राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों जुलाई 2017 में एक फ्रेंच पनडुब्बी के दौरे पर.तस्वीर: Getty Images/AFP/Contributor

पेरिस की एक अदालत ने फ्रांस के तीन पूर्व वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों और तीन अन्य लोगों को घूस लेने के मामले में दोषी पाया है. मामला कई  करोड़ की घूस का था जो 1994 में पाकिस्तान और सऊदी अरब के साथ हुई हथियारों की डील से जुड़ा था. इतने लंबे समय तक चली कार्यवाही के बाद अदालत ने दोषियों को दो से पांच साल तक की जेल की सजा सुनाई है.  

मामला उस समय का है जब 1995 में फ्रांस के पूर्व प्रधानमंत्री एदुआर बालादूर देश के राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने की तैयारी में थे. उन पर आरोप है कि उन्होंने अपने चुनावी अभियान को फंड करने के लिए घूस स्वीकार की. हालांकि वे राष्ट्रपति नहीं बन पाए और उनकी कैबिनेट में रक्षा मंत्री रहे एक और नेता पर लगे घूस के आरोपों की सुनवाई अभी जारी है.

"कराची अफेयर” क्यों कहलाया

जब सन 2002 में कराची में बम धमाकों की घटना में मारे गए 11 फ्रेंच इंजीनियरों की मौत की जांच शुरु हुई तो बम धमाकों के लिए पाकिस्तानी प्रशासन ने इस्लामी आतंकवादियों को जिम्मेदार ठहराया था. लेकिन इस बात का संदेह भी उभर रहा था कि असल में यह बम विस्फोट बदले की कार्रवाई थी जो कि इसलिए की गई क्योंकि तत्कालीन फ्रेंच राष्ट्रपति जाक शिराक ने हथियारों की डील से जुड़े कमीशन को रोकने के आदेश दिए थे.

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सन 1993 से 1995 तक फ्रांस के प्रधानमंत्री रहे बालादूर सितंबर 2019 में पूर्व राष्ट्रपति जैक शिराक की अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए जाते हुए.तस्वीर: Getty Images/E. Feferberg

कमीशन फ्रांस से पाकिस्तान को बेची गई तीन पनडुब्बियों से जुड़ा था. कथित रूप से बालादूर ने इन कमीशनों को मंजूरी दी थी, जिसे फिर "रेट्रो-कमीशन" के तौर पर वापस यूरोप लाया गया, जिसे उनके राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के अभियान पर लगाया गया. अनुमान है कि करीब 1.3 करोड़ फ्रैंक यानि लगभग 20 लाख यूरो घूस के रूप में दिए गए. 

छह लोगों को सजा सुनाए जाने के बाद अब कराची बम धमाके में मारे गए फ्रेंच लोगों के परिजनों को बालादूर और उनके तत्कालीन रक्षा मंत्री को सजा मिलने का इंतजार है. अब 91 साल के हो चुके बालादूर 1993 से 1995 तक फ्रांस के प्रधानमंत्री रहे थे और इन दोनों नेताओं पर मई 2017 में पाकिस्तान डील के संबंध में "कॉर्पोरेट संपत्ति के दुरुपयोग और उसे छुपाने में संलिप्त होने" के आरोप तय हुए. आने वाले महीनों में एक खास ट्राइब्यूनल में इन पर लगे आरोपों की सुनवाई होगी.

आर्म्स डील और घूस का तंत्र

सन 1994 में जब बालादूर सरकार में पाकिस्तान को पनडुब्बियां और सऊदी अरब को युद्ध-पोत बेचने का समझौता हुआ, उस समय इनसे जुड़े लोगों को घूस देना आम चलन माना जाता था. लेकिन खुद घूस लेने पर प्रतिबंध था. जांचकर्ताओं का मानना है कि सात अरब यूरो के समझौते के लिए फ्रेंच पक्ष ने उस समय घूस के रूप में कई करोड़ यूरो दिए.

2018 में फ्रांस के एक और पूर्व राष्ट्रपति रहे निकोला सारकोजी पर भी कराची अफेयर की छाया पड़ी. लेकिन उन्होंने इससे कोई भी संबंध होने से इंकार किया. सारकोजी पर 2007 में अपने राष्ट्रपति चुनाव अभियान के लिए कई करोड़ यूरो की घूस और अवैध धन लेने के आरोप हैं, जिनकी सुनवाई भी इसी साल पेरिस की अपील कोर्ट में होने की खबरें हैं.

हथियारों की खरीद बिक्री पर शोध करने वाले स्वीडन स्थित शांति शोध संस्थान सिपरी का कहना है कि पिछले पांच सालों में दुनिया भर में एक तिहाई हथियार अकेले अमेरिका ने बेचे हैं. उसके बाद रूस और फ्रांस का नंबर है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने पाया कि 2015 से 2019 की अवधि में हथियारों की बिक्री में पिछले पांच साल के मुकाबले 6 फीसदी की वृद्धि हुई. 

भारत में भी पहले रक्षा सौदों से जुड़े रिश्वत के कई मामले सामने चुके हैं. चाहे वह रक्षा कंपनी फिनमेकानिका के भारत को 12 हेलिकॉप्टर बेचने का सौदा हो, जिसके लिए कंपनी ने भारतीय अधिकारियों को रिश्वत देने की बात मानी थी. या फिर बोफोर्स सौदा, जिसके कारण तत्कालीन केंद्र सरकार हिल गई थी. आरोप था कि कांग्रेस नेता राजीव गांधी के प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए भारत के कुछ बड़े नेताओं ने स्विट्जरलैंड की बोफोर्स कंपनी से सौदा करने के बदले घूस लिया था.

आरपी/एमजे (एएफपी)

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