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प्रेस की आजादी की रैंकिंग में क्यों फिसला जर्मनी

निखिल रंजन
३ मई २०२३

जर्मनी प्रेस की आजादी के मामले में पांच स्थान नीचे लुढ़क गया है. पिछले साल वह वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 16 नंबर पर था अब 21वें नंबर पर आ गया है. यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में प्रेस की आजादी क्यों सिमट रही है?

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पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं
जर्मनी में प्रेस की आजादी सिमट रही हैतस्वीर: Reporters Without Borders

जर्मनी में मोटे तौर पर तो मीडिया आजाद दिखती है लेकिन पत्रकारों के खिलाफ हिंसा और जुबानी हमले बढ़ रहे हैं. एक प्रस्तावित कानून ने पत्रकारों के सूत्र की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा किया है. इसके साथ ही सूचना तक पहुंच बिखर रही है और मीडिया का बहुलवाद घट रहा है.

सालाना प्रेस फ्रीडम इंडेक्स जारी करने वाली संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने इसके लिए कई कारणों को जिम्मेदार माना है. बीते सालों में जिस तरह से मीडिया परिदृश्य पूरी दुनिया में बदला है उसका कुछ असर जर्मनी में भी दिख रहा है.

दुनिया भर में डेढ़ गुना बढ़ीं पत्रकारों की हत्याएं

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के मुताबिक1990 के दशक से ही जर्मनी में मीडिया की बहुलता आर्थिक वजहों से घट रही है. खासतौर से स्थानीय अखबारों के प्रकाशन के मामले में. देश के सबसे बड़े टेब्लॉयड बिल्ड ने अपने पाठक वर्ग का एक बड़ा हिस्सा खो दिया है, उदारवादी जुइडडॉयचे साइटुंग और रुढ़िवादी फ्रांकफुर्टर अल्गेमाइने साइटुंग के मुकाबले. इन दोनों अखबारों के ऑनलाइन संस्करणों की लोकप्रियता बढ़ रही है.

ऑडियो वीडियो क्षेत्र में जर्मनी में निजी और सरकारी दोनों तरह की मीडिया मौजूद है. सरकारी मीडिया में एआरडी, जेडडीएफ और डॉयचलांडफुंक हैं जो क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खबरें मुहैया कराते हैं.

जर्मनी में एएफडी के प्रदर्शनों में पत्रकारों पर हमले हुए
कोरोना से बचने के उपायों के विरोध में हुए प्रदर्शनों में कई बार पत्रकारों को निशाना बनाया गयातस्वीर: Christoph Schmidt/dpa/picture alliance

राजनीतिक संदर्भ

मीडिया की भूमिका लोकतंत्र में उस खंभे जैसी है जिस पर वो खड़ा होता है. जर्मनी का राजनीतिक वर्ग मोटे तौर पर मीडिया को लोकतंत्र के चौथे खंभे के रूप में स्वीकार करता है सिवाय अल्टरनेटिव फॉर डॉयचलैंड यानी एएफडी के. जर्मनी की इस धुर दक्षिणपंथी राजनीतिक पार्टी  के बारे में यह बात पक्के तौर पर नहीं कही जा सकती.

फिलीपींसः साथी की हत्या से सहमे पत्रकार

जर्मन मीडिया में लंबे समय से सरकार और विपक्ष दोनों के आलोचना की परंपरा रही है. ज्यादातर अखबारों की संपादकीय धुरी किसी ना किसी राजनीतिक गुट के करीब रहती आई है. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में राजनीतिक पत्रकारिता में सार्वजनिक क्षेत्र के प्रसारकों का दबदबा है. इनकी आजादी को कानून के जरिये संरक्षण दिया गया है. हालांकि कुछ निजी फैसलों को लेकर राजनीतिक दखलंदाजी के संदेह भी उभरते रहते हैं.

कानूनी ढांचा

ठोस संवैधानिक गारंटी और एक स्वतंत्र न्यायपालिका मीडिया की स्वतंत्रता के लिए उचित वातावरण बनाने में मदद करते हैं हालांकि सूचना कानूनों तक पहुंच अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से थोड़े कमजोर हैं. इसके साथ ही कई सरकारी अधिकारी और सांसद एक सुरक्षा कानून के लिए दबाव बना रहे हैं जिसके व्यापक असर हो सकते हैं. यह प्रस्तावित कानून लीक हुए डाटा के इस्तेमाल को आपराधिक बना देगा.

इसके साथ ही जर्मन खुफिया एजेंसियों को उपकरणों को हैक करने या फिर एनक्रिप्टेड संचार में दखल देने का अधिकार दे देगा वो भी बिना न्यायपालिका की अनुमति के. पत्रकारिता के अच्छे तौर तरीकों को स्वायत्त जर्मन प्रेस काउंसिल बढ़ावा देती है. वह प्रस्ताव तो पास कर सकती है लेकिन किसी पर प्रतिबंध नहीं लगा सकती.

अखबारों की प्रसार संख्या घटने से विज्ञापन पर असर पड़ा है
बिल्ड के पाठकों की संख्या लगातार नीचे जा रही हैतस्वीर: picture-alliance/R4200

आर्थिक मुश्किलें

जर्मनी की कई मीडिया कंपनियां आर्थिक रूप से संघर्ष कर रही हैं और यह चलन कोविड-19 के दौरान विज्ञापनों से होने वाली कमाई घटने के बाद और ज्यादा तेज हो गया. हालांकि इंटरनेट औऱ सोशल नेटवर्कों के खुलने के बाद अब स्वतंत्र पत्रकारिता ज्यादा आसान और सस्ती हो गयी है हालांकि लाइव प्रसारण के लिए अब भी लाइसेंस लेना जरूरी है.

ऑनलाइन और सोशल मीडिया के विकास के साथ पांपरिक मीडिया को विज्ञापनों से होने वाली आय में कमी आई है. इसी तरह अखबारों और पत्रिकाओं की बिक्री भी घटी है. जिसका असर मीडिया घरानों की आर्थिक आजादी पर हो रहा है. विज्ञापन के दबाव में तैयार होने वाले विवादास्पद मीडिया कंटेंट की शिकायत आने पर जर्मन प्रेस काउंसिल समय समय पर कड़ी निंदा करती है.

सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ

जर्मनी में पत्रकार किसी भी विषय के बारे में लिखने या बोलने के लिए स्वतंत्र हैं बशर्ते कि वो देश के संविधान के खिलाफ न जाता हो. हालांकि महिला पत्रकारों, अश्वेत लोगों और लैंगिक विषय या फिर नस्लभेद के बारे में खबरें देने वालों के साथ खासतौर से सोशल नेटवर्कों पर बदसलूकी बढ़ रही है.

जर्मनी में कोरोना वायरस पर रोक लगाने वाले उपायों के विरोधियों ने पत्रकारों पर सरकार के साथ जरूरत से ज्यादा दोस्ताना रिश्ते रखने के आरोप लगाये. उग्र दक्षिणपंथी और लोकलुभावन राजनेता लोगों में मीडिया और पत्रकारों को लेकर अविश्वास पैदा करने की कोशिश करते हैं.

पिछले साल जर्मनी की रैंकिंग 16 थी
जर्मनी प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 21वें नंबर पर चला गया हैतस्वीर: Reporters Without Borders

पत्रकारों की सुरक्षा

पत्रकारों को धमकियों, बदसलूकी और शारीरिक हमलों का सामना करना पड़ रहा है. इस तरह की सबसे ज्यादा गतिविधियों में दक्षिणपंथी या फिर धुर दक्षिणपंथी लोग शामिल हैं. कुछ हमले घोर वामपंथ के करीबी लोगों और पुलिस ने भी किये हैं. 2020 और 2021 खासतौर से बहुत हिंसक रहे हैं.

जर्मनी में पत्रकारों के खिलाफ हिंसा बढ़ रही है. आरएसएफ के मुताबिक पिछले साल कुल मिला कर जर्मन पत्रकारों पर 103 बार शारीरिक हमले हुए. 2015 से रिकॉर्ड रखना शुरू करने के बाद यह सबसे ज्यादा है. इनमें से कुछ मामलों की पुलिस छानबीन कर रही है. 2021 में ऐसे कुल 80 और 2020 में 65 हमले हुए थे. आरएसएफ ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, "103 में से 87 हमले विचारधारा को लेकर साजिश, यहूदीविरोध और धुर दक्षिणपंथ संदर्भों में हुए हैं. 2022 में कोरोना की महामारी कमजोर पड़ने के बावजूद प्रदर्शन जारी रहे. इस दौरान जमा हुई भीड़ पत्रकारों के लिए साल की सबसे खतरनाक जगह साबित हुई."

कोविड-19 से जुड़ी पाबंदियों का विरोध करने के लिए निकले प्रदर्शनों के दौरान दर्जनों पत्रकारों पर हमले हुए. आमतौर पर शारीरिक हिंसा के लिए तो मुकदमा चलता है लेकिन सोशल मीडिया नेटवर्कों पर जो प्रताड़ना मिल रही है उसे नजरअंदाज किया जा रहा है. उसके लिए कोई सजा नहीं मिलती. विरोध प्रदर्शन कवर करने गये कई पत्रकारों को गिरफ्तार करने की घटनाएं भी हुई हैं.

इन्हीं सब घटनाओं की वजह से जर्मनी प्रेस की आजादी सूचकांक में नीचे गया है.