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हसदेव अरण्य में खनन योजना से आदिवासियों के उजड़ने का खतरा

हृदयेश जोशी
३ मई २०२२

हसदेव अरण्य का मामला एक ओर देश में कोयले की बढ़ती जरूरत से जुड़ा है तो दूसरी ओर पर्यावरण संरक्षण और लाखों आदिवासियों की जीविका से भी.

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Indien Proteste gegen Abholzung
हसदेव अरण्य को काटे जाने से बचाने के लिए विरोध प्रदर्शन करते स्थानीय लोग तस्वीर: Hridayesh Joshi

देश के सबसे घने जंगलों में एक छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में माइनिंग के लिये पेड़ काटे जाने पर विवाद बढ़ता ही जा रहा है. आदिवासियों के प्रतिरोध और धरने के कारण पिछले हफ्ते यहां पेड़ काटने का काम रोक दिया गया लेकिन ग्रामीणों को डर है कि यह कभी भी दोबारा शुरू हो सकता है. इस बीच नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) ने शुक्रवार को राज्य सरकार को नोटिस जारी कर इस बारे में तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी है.

हसदेव के लिये लड़ रहे आदिवासियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के संगठन 'छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन' ने शिकायत की थी कि राज्य सरकार ने पेड़ काटने से पहले एनटीसीए और नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ को सूचित नहीं किया. महत्वपूर्ण है कि इस प्रोजेक्ट के लिए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, हसदेव अरण्य के परसा कोल ब्लॉक में 95,000 पेड़ कटेंगे. हालांकि सामाजिक कार्यकर्ताओं का अनुमान है कि कटने वाले पेड़ों की असल संख्या दो लाख से अधिक होगी.

राजस्थान सरकार को चाहिये माइनिंग

हसदेव अरण्य छत्तीसगढ़ में बीस से अधिक कोल ब्लॉक्स में माइनिंग का प्रस्ताव है. यहां से राजस्थान सरकार पहले ही परसा ईस्ट केते बसान (पीईकेबी) खदान से कोयला निकाल रही है. राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड ने अडानी ग्रुप से अनुबंध किया है जो कि इन खानों का डेवलपर और ऑपरेटर (एमडीओ) है.

हसदेव के जंगल में बाघों और हाथियों का बसेरा है और यह जैव विविधता से भरपूर है. वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने पिछले साल अपने रिपोर्ट में इस क्षेत्र में माइनिंग न करने की चेतावनी दी थी. साल 2010 में (जब केंद्र में यूपीए की सरकार थी) तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इसे "नो-गो” जोन घोषित किया था लेकिन तब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने यहां खनन के लिये दबाव बनाया.

पिछले साल केंद्र ने दी थी अनुमति

पिछले साल अक्टूबर में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने हसदेव अरण्य के परसा कोल ब्लॉक में माइनिंग के लिये अंतिम स्वीकृति दे दी थी. परसा कोल ब्लॉक कुल करीब 1,250 हेक्टेयर क्षेत्रफल में है जिसमें 841.5 हेक्टेयर वन भूमि है जहां पेड़ काटे जा रहे हैं. केंद्र की मंजूरी के बाद इस साल अप्रैल में छत्तीसगढ़ सरकार ने भी यहां माइनिंग को हरी झंडी दे दी. ग्रामीणों का आरोप है कि हसदेव में खनन के लिये फर्जी प्रस्ताव के आधार पर ग्राम सभा की अनुमति हासिल की गई.

छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन के संयोजक और सामाजिक कार्यकर्ता आलोक शुक्ला कहते हैं, "परसा कोल ब्लॉक की वन स्वीकृति फर्जी ग्राम सभा प्रस्ताव के आधार पर हासिल की गई है. ग्रामसभाओं के प्रस्ताव कूटरचित तरीके से कंपनी और प्रशासन द्वारा मिलकर बनाये गए थे. सच्चाई यह है कि परसा कोल प्रभावित ग्राम सभाओं ने कभी भी खनन परियोजना को कोई भी स्वीकृति नहीं थी. आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को दरकिनार करके और पर्यावरण की चिंताओं को धता बताते हुए इसे आगे बढ़ाया जा रहा है.”

आदिवासियों की अपील के बावजूद चुप हैं राहुल गांधी

हसदेव अरण्य में रह रहे आदिवासियों के लिये यह जंगल उनका जीवन है. पिछले साल करीब 500 आदिवासियों ने हसदेव अरण्य में पेड़ों के कटाई के खिलाफ रायपुर तक करीब 300 किलोमीटर पैदल मार्च किया था. इसके बाद दिल्ली जाकर इन लोगों ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी से मुलाकात की थी. दिलचस्प यह है कि 2018 विधानसभा चुनावों से पहले राहुल गांधी ने खुद मदनपुर जाकर वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं की मौजूदगी में ग्रामीणों से कहा था कि हसदेव अरण्य को उजड़ने नहीं दिया जायेगा क्योंकि अगर जंगल है तभी आदिवासियों का वजूद हैं. साल 2011 में हसदेव में पहली बार माइनिंग खोली गई थी जब केंद्र में कांग्रेस सरकार थी. 

पत्रकार आलोक पुतुल कहते हैं, "कांग्रेस के केंद्र में सत्तारुढ़ रहते हसदेव में खनन की अनुमति इसी शर्त पर दी गई कि इसके बाद यहां और माइनिंग नहीं होगी. वर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तब विपक्ष में रहते माइनिंग किये जाने और अडानी को एमडीओ दिये जाने का विरोध किया था. लेकिन 2018 में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार बनते ही 2019 में अडानी के साथ अनुबंध कर लिया.”

महत्वपूर्ण है कि राहुल गांधी ने पहले ओडिशा के नियामगिरी में जाकर भी खुद को आदिवासियों का सिपाही कहा था लेकिन वह आदिवासियों की इस निर्णायक लड़ाई में चुप हैं.

कोयला नहीं मिला तो हो जाएगा अंधेरा'

राजस्थान सरकार का कहना है कि उन्हें पहले से जो पीईकेबी ब्लॉक आवंटित किया गया और उसका कोयला खत्म होने को है. इसलिये उन्हें नये कोयला खदान चाहिए. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इसी साल छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से 25 मार्च को मुलाकात की थी.

मुलाकात के बाद गहलोत ने पत्रकारों से कहा कि अगर छत्तीसगढ़ सरकार मदद नहीं करेगी तो राजस्थान में अंधेरा छा जायेगा क्योंकि 4,500 मेगावॉट के पावर प्लांट कोयला न मिलने के कारण बंद हो सकते हैं. गहलोत ने कहा कि पूरा राज्य (राजस्थान) संकट में है और भविष्य के लिये चिंतित है. उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार से इस बारे में जल्दी फैसला करने को कहा.

उधर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने परसा कोल ब्लॉक में माइनिंग को हरी झंडी देने से पहले यह कहा कि राजस्थान सरकार की अर्जी पर नियमों और कानून के हिसाब से ही अमल होगा. बघेल ने कहा कि उनकी सरकार को पर्यावरणीय सरोकारों और माइनिंग क्षेत्र में रह रहे लोगों की फिक्र है. गहलोत से इस मुलाकात के बाद ही बघेल सरकार ने परसा कोल ब्लॉक में माइनिंग की आखिरी स्वीकृति दी.

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