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मिलिए इंसानों जैसे रोबोटों से

गोन्ना केटेल्स
३१ मार्च २०१७

अब हम ऐसे रोबोटों तक आ पहुंचे हैं, जो मशीन से ज्यादा इंसान जैसे दिखते और हरकतें करते हैं. रोबॉटिक्स और आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में हुए तेज विकास के कारण ही ऐसा हो सका है.

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Shift DW Faszination: Roboter 2
जापान की रोबो गर्ल कोडोमोरॉयडतस्वीर: DW

लंदन की एक प्रदर्शनी में दुनिया भर से 100 से ज्यादा ह्यूमेनॉयड पेश किए गए हैं. ह्यूमेनॉयड मतलब, इंसान जैसा रोबोट. वे लोगों के साथ बात कर सकते हैं, संपर्क साध सकते हैं. उनकी नकल कर सकते हैं. और कुछ तो काफी हद तक इंसान जैसे भी लगते हैं.

लंदन के साइंस म्यूजियम के मेहमान अब मशीनी इंसानों के बेहद करीब हैं. रोबो दस्पायन नाम के एक अदाकार रोबोट ने प्रदर्शनी में आए दर्शकों को बताया, "इंसानों और मशीनों का इतना करीबी आमना सामना हमेशा डरावना रहा है. हर शताब्दी में हर पीढ़ी ने इसे महसूस किया है, फिलहाल रोबोटिक फॉर्म में यह सामने है."

DW Euromaxx - Humanoide Roboter
तस्वीर: DW

रोबोट्स क्यूरेटर आना डारोन कहती हैं, "मुझे लगता है कि हमें शायद हमेशा मशीनी इंसान बनाने का विचार रोचक लगा. ह्यूमेनॉयड रोबोट्स के जरिये हम अपनी तकनीकी ऊंचाई भी दिखाते हैं. इंसान का शरीर बहुत ही जटिल है, इसे मशीन में ढालना हमेशा से चुनौती भरा रहा है."

प्रदर्शनी में कुछ मध्यकालीन रोबोट भी मौजूद हैं. जैसे कि 16वीं शताब्दी का उपासना करता संत. आना डारोन कहती हैं, "उनका मूवमेंट ज्यादातर घड़ी पर निर्भर था. वे पुनरावृत्ति करते थे. वे असली संसार में वैसे संवाद नहीं कर पाते थे जैसे हम करते हैं. लेकिन उसी के आधार पर आज के रोबोट बने हैं."

आज भी रोबोट तकनीकी संभावनाओं का ही नमूना हैं. लेकिन अब माहौल बदल रहा है. जापान की रोबो गर्ल कोडोमोरॉयड नजरों को धोखा दे देती है. वह पहली बार विदेश पहुंची है. आधुनिक रोबोट उद्योगों से लेकर रिसर्च तक, कई क्षेत्रों में इस्तेमाल किये जा रहे हैं.

रोबोटों को यहां तक पहुंचाने में इंजीनियरों की सालों की मेहनत लगी है. रोबोटिक्स इंजीनियर विल जैक्सन कहते हैं, "इतने सारे पार्ट्स हैं जो हिलते डुलते हैं. इस रोबोट में 12,000 पार्ट्स हैं और हर एक को हमने बनाया. और इनमें से भी एक भी खराब हो या ठीक से काम न करे तो, कुछ काम नहीं करता. इसीलिए ये बहुत ही जटिल है."

इंसान और मशीन के रिश्तों पर कलाकारों ने भी खूब वक्त लगाया है. साइंस फिक्शन फिल्में भी अपने दौर में इस रिश्ते को दर्शाती हैं कभी डर से तो, कभी ललक से. लेकिन सवाल यह है कि रोबोट का भविष्य कैसा होना चाहिए.

रोबोट्स क्यूरेटकर आना डारोन कहती हैं, "सोचना होगा कि यह टेक्नोलॉजी हमारे समाज की कैसे मदद कर पाएगी. यह भी देखना होगा कि रोबोट्स के साथ हम किस तरह का भविष्य चाहते हैं. मुझे लगता है कि यह समाज के लिए बड़ा सवाल है, यह सिर्फ ह्यूमेनॉयड्स के बारे में ही नहीं बल्कि पूरी रोबोटिक टेक्नोलॉजी को लेकर है."

रोबोट फिलहाल मशीन ही हैं. पर वक्त के साथ इंसान और रोबोटों के बीच अंतर कम होता जाएगा लेकिन इस दौरान भी इनसे ऊपजने वाली उम्मीदें, सपने और डर शायद बरकरार रहेंगे.